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________________ २०६] बरगानुयोग सूई मावि परिस्कार के प्रायश्चित्त सूत्र से भिक्खू पित्ताई-वाह-वाणि वा-जाव-वेत-शाणि या जो भिक्षु रंगे हुए काष्ठ के दशष्ट का-पावत-सचित्त बेंत के दण्ड का परिभुंबड परि जतं वा साहज्जा। परिभोग करता है, करदाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू विश्चित्ताई–चारु-दंडाणि बा-जाव-वेत्त-णि या जो भिक्षु काष्ठ के दण्ड को-यावत्-वेंत के दण्ड को करेड, करतं वा साइजा। दुरंगा करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। जे मिक्बू विचित्ताई-वाह-वंजाणि दा-जाव-वेस-वंहाणिवा जो भिक्षु काष्ठ के दण्ड को-यावत-बत के दण्ड को धरेइ, घर वा साइन । दुरंगा करके धरा रखता है, धरा रखवाता है, घरा रखने वाले का अनुमोदन करता है। मे भिक्खू विचित्ताई- वाणिवा-जाव-बेत्त-शणि या जो भिक्षु दुरंगे काष्ठ के दण्ड का ---पावत् -दुरंगे बेंत के दण्ड का परि जह, परिश्रृंजतं वा साइज्जा। परिभोग करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। सं सेवमाणे आपम्जा मासिय परिहारद्वाणं उग्धाइम। उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित) -नि. उ. ५, सु. २५-३३ आता है। सुईयाईणं सरकरण पायच्छित्त सत्ता सूई आदि के परिष्कार के प्रायश्चित्त सूत्र३६४.जे मिक्खू सुईए उसरकरणं ३९४. जो भिक्षु सूई का उत्तरकरण (परिष्कार) सयमेव करत करत वा साइजह । स्वयं करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। मे भिक्खू पिप्पलएस्स उत्तरकरगं जो भिक्षु कैची का उत्तरकरण सयमेव करो, करतं या साइन । स्वयं करता है, करवाता है करने वाले का अनुमोदन करता है। के भिक्खू महन्छयणगस्स उत्तरकरणं - जो भिक्षु नखछेदन का उत्तरकरण सयमेव करे, रत वा साइमना । स्वयं करता है। करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। ने मिस कणसोहणगस्त उत्तरकरणं - जो भिक्षु कर्णशोधन का उत्तरकरण सपमेव करेइ, करस वा साइजर। स्वयं करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवजह मासिय परिहारहाणं उग्याइयं । उस भिक्षु को मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि. उ. २, सु. १४-१७ आता है। सूईआईणं अण्णउस्थियाइणा उत्तरकरणस्स पायच्छित अन्यतीथिकादि द्वारा सूई आदि के उत्तरकरण के प्रायसुत्ताई श्चित्त सूत्र३६. भिक्खू सुईए उत्तरकरण ३६५. जो भिक्षु सूई का उत्तरकरण (परिष्कार) भण्डस्थिएण बा, गारस्थिएण का, अन्यतीथिकों से या गृहस्थ से कारेति, कारेत या साइज्जइ । करवाता है, करवाने वाले का अनुमोदन करता है। हा
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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