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________________ २७८ ] चरणानुयोग जे मिक्यू पारिहारि पियल जाइता - वत्थं छिस्तिमिति पायं छिवइ छिनं वा सादज्जइ । के पि बाहिरियं नष्ठेय नहं द्विदिसमिति मिपारिहारि रुग्ण मोहरतं वा साइज सोहम माइ निहरिस्तामिति तथा महामोहर सूईं आदि के अयोग्य प्रदान कर प्रायश्चित सूत्र आइसाकरकरे का तं सेवमाणे आवश्जद मातियं परिहारट्ठाणं अणुग्धाइपं । नि. उ. १, सु. २७-३० सूई आईनं अयमरणदास पायच्छित सुताई३१८. जे मिक्सु अपनो एवहस अट्ठाए सूई माताअयमरणस्स अनुप्यवेह अणूप्पर्वतं या साइज्जइ । जे भिक्लू अत्यको एगस्स अट्ठाए विलगं आइसाणणणुपदे या साइ जे भिक्खू अपणो एगस्स बट्टाए छेपण जातामस्त अणुपदे अध्वा साइज । भिम अपणो एगल्स अडाए कम्णसोहण जाइता--- क्षणमा अणुपदे अणुष्यवंत या साज्जइ । ४००. जे भिक्खू गिहू- धूमे तं सेवमाणे आवजह मासियं परिहारद्वाणं अणुग्धाह - नि. उ. १, सु. ३१-३४ अष्णउत्पिण गारत्विरण गिधूम परिसाच्य पायच्छित सुतं अम्पउथिए वा गारयिण वा परिवार साहन परि तं सेवमाणे आज माहि परिहारानं अनुन्धा जो पारिहार कमी की याचना करते"वस्त्र काटूंगा" ऐसा कहने के बाद पात्र काटता है, कटवाता है, काटने वाले का अनुमोदन करता है। वो को माना करके"नख कादूंगा" ऐसा कहने के बाद कांटा निकालता है,वाता है, निकालने का अनुमोदन करता है। जो भिक्षु पाडिहारिय कर्णशोधनक की याचना करके"कान का मैल निकालूंगा" ऐसा कहने के बाद दाँतों का या नखों का मैल मिलता है, निकलवाता है, निकालने वाले का अनुमोदन करता है । सूत्र ३६८-४०० उसे मासिक अनुद्घाटिक परिहारस्थान (प्रायश्चित जाता है । — सूई आदि के अन्योन्य प्रदान का प्रायश्चित सूत्र - ११. वो अपने लिए "ई" की याचना करता है (और वह याचित सूई) दूसरों दूसरों को देता है, दिल है, देने वाले का अनुमोदन करता है। जो भिक्षु केवल अपने लिए "कैची" की याचनाकरता है ( और वह याचित कंची) दूसरों दूसरों को देता है, दिलाता है, देने वाले का अनुमोदन करता है । जो भिक्षु केवल अपने लिए "नखवेदनक" की या वनाकरता है (और याचित नखच्छेदन) दूसरों दूसरों को देता है, दिलाता है, देने वाले का अनुमोदन करता है । जो भिक्षु केवल अपने लिए "कर्मशोधनक" की वाचनाकरता है और वह याचितकर्मशोधनक) दूसरों दूसरों की देता है, दिलाता है, देने वाले का अनुमोदन करता है । उसे मासिक अनुपातिक परिहारल्यान ( प्रायश्वित) आता है । अन्यतीर्थिक और गृहस्थ से गृहधूम साफ कराने का प्रायश्वित मूत्र- ४०० मि को - नि. उ. १, सु. ५७ आता है । 樂 -- अत्यधिक से या गृहस्थ से साफ करवाता है, साफ करवाते हुए का अनुमोदन करता है। उसे माfee अनुपातिक परिहारस्थान (प्रायश्वित)
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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