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________________ २७० घरेणानुयोग जे मिक्यू अण्णउत्थिए था, गारस्थिएन वर, अपणो कार्यसि वादलवा, अन्नप्ररेणं तिषों में सत्थजाए, छाता र विना पूर्व वा सोचियं वा मोहराता वा विसावा सोभोग-वियण वा उसिणोग-विमडेण वा, उच्छवासा वा पाया अरे वाए, वासिताबा तेल्लेण वा जाव णवणीए था, अभंगावे या मखावेज वा अभंगातं वा मवायें या साइज । जे भिक्खू अण्णउत्थिएण था, मारथिएण या अप्पणी कार्यसि गंड वा जान भर्गबलं वा, अधमरेगं तिक्लेणं स वा विवा पूयं वा, सोणियं वा, नीता या वि सीमोहन विद उच्छोलावेला वा अपयरे असेवग जाएगं, विि वा उसियोदय-विद्वेग या वातावा कृमि निकलवाने का प्रायश्चित्त शुभ तेरुलेण वा जाव णदजीएण वा, असा यामा अमरेषणमा गावेापावे वा वावा. पवावेत या साइज्जइ । तं सेवमाणे आवास परिहारार्थ उत्पाद नि. उ. १५, सु. ३१-३६ किमिणीहरावणस्स पायसिसुतं३८४. भिक्खू अण्णउरिएण वा गाररियएग बा, किमियं वा मंलिए निवेशानिय निबेसबियनोहरावेदनीरात सा तं वमाणे आवश्यक भाउम्नासियं परिहारद्वाणं धायं । नि. उ. १५, सु. ३७ जो भिक्षु अन्यतीर्थिक से या गृहस्य से अपने शरीर के - गण्ड यावत्-- भगन्दर को. अन्य किसी एक प्रकार के तीक्ष्ण शस्त्र द्वारा, छेदन करवाकर, बार-बार छेदन करवाकर, पीप या रक्त को, निकलवाकर शोधन करवाकर अचित्त गीत जल से या अवित्त उष्ण जल से, धुलवाकर बार-बार धुलवाकर, अन्य किसी एक प्रकार का, लेप करवाकर बार-बार लेप करवाकर, तेल- यावत् मक्खन, मतवा, बार-बार मलवावे, मलवाने वाले का, बार-बार मलवाने वाले का अनुमोदन सूत्र ३८३-१८४ करे । जो भिक्षु अन्यतमे या गृहस्थ से अपने शरीर गण्ड- यावत् - भगन्दर को, अन्य किसी एक प्रकार के तीक्ष्ण शस्त्र द्वारा, छेदन करवाकर, बार-बार छेदन करवाकर, पीप या रक्त को, निकलवाकर, शोधन करवाकर, अति शीत जल से या अचित्त उष्ण जल से. धुलवाकर बार-बार धुलवाकर, अन्य किसी एक प्रकार के लेप का, लेप करवाकर, बार-बार लेप करवाकर, तेल - पावत् --- मक्खन, मलवाकर, बार-बार मलवाकर, अन्य किसी एक प्रकार के घूप से, दिवा वार-बार धूप दिलवाने, धूप दिलवाने वाले का बार-बार धूप दिलवाने वाले का अनुमोदन करे। उसे चातुर्मासिक उद्भाविक परिहारस्थान (मानव) आता है । - कृमि निकलवाने का प्रायदिचत सूत्र२०४. जो भिक्षु अन्यत गुवा के कृमियों को और कृति के कृमियों को उँगली बलवा डलवाकर, निकलवाने, निकलवाने वाले का अनुमोदन करे । उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायचित्त) आता है। 班
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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