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घरेणानुयोग
जे मिक्यू अण्णउत्थिए था, गारस्थिएन वर, अपणो कार्यसि
वादलवा,
अन्नप्ररेणं तिषों में सत्थजाए,
छाता र विना पूर्व वा सोचियं वा मोहराता वा विसावा सोभोग-वियण वा उसिणोग-विमडेण वा, उच्छवासा वा पाया
अरे वाए,
वासिताबा
तेल्लेण वा जाव णवणीए था,
अभंगावे या मखावेज वा
अभंगातं वा मवायें या साइज ।
जे भिक्खू अण्णउत्थिएण था, मारथिएण या अप्पणी
कार्यसि
गंड वा जान भर्गबलं वा,
अधमरेगं तिक्लेणं स
वा विवा
पूयं वा, सोणियं वा, नीता या वि सीमोहन विद उच्छोलावेला वा अपयरे असेवग जाएगं,
विि
वा उसियोदय-विद्वेग या वातावा
कृमि निकलवाने का प्रायश्चित्त शुभ
तेरुलेण वा जाव णदजीएण वा,
असा यामा
अमरेषणमा
गावेापावे
वा वावा. पवावेत या साइज्जइ ।
तं सेवमाणे आवास परिहारार्थ उत्पाद नि. उ. १५, सु. ३१-३६
किमिणीहरावणस्स पायसिसुतं३८४. भिक्खू अण्णउरिएण वा गाररियएग बा, किमियं वा मंलिए निवेशानिय निबेसबियनोहरावेदनीरात सा
तं वमाणे आवश्यक भाउम्नासियं परिहारद्वाणं धायं ।
नि. उ. १५, सु. ३७
जो भिक्षु अन्यतीर्थिक से या गृहस्य से अपने शरीर के -
गण्ड यावत्-- भगन्दर को.
अन्य किसी एक प्रकार के तीक्ष्ण शस्त्र द्वारा, छेदन करवाकर, बार-बार छेदन करवाकर, पीप या रक्त को,
निकलवाकर शोधन करवाकर
अचित्त गीत जल से या अवित्त उष्ण जल से,
धुलवाकर बार-बार धुलवाकर,
अन्य किसी एक प्रकार का,
लेप करवाकर बार-बार लेप करवाकर,
तेल- यावत् मक्खन,
मतवा, बार-बार मलवावे,
मलवाने वाले का, बार-बार मलवाने वाले का अनुमोदन
सूत्र ३८३-१८४
करे ।
जो भिक्षु अन्यतमे या गृहस्थ से अपने शरीर
गण्ड- यावत् - भगन्दर को,
अन्य किसी एक प्रकार के तीक्ष्ण शस्त्र द्वारा, छेदन करवाकर, बार-बार छेदन करवाकर, पीप या रक्त को,
निकलवाकर, शोधन करवाकर,
अति शीत जल से या अचित्त उष्ण जल से.
धुलवाकर बार-बार धुलवाकर, अन्य किसी एक प्रकार के लेप का,
लेप करवाकर, बार-बार लेप करवाकर,
तेल - पावत् --- मक्खन,
मलवाकर, बार-बार मलवाकर,
अन्य किसी एक प्रकार के घूप से,
दिवा वार-बार धूप दिलवाने,
धूप दिलवाने वाले का बार-बार धूप दिलवाने वाले का अनुमोदन करे।
उसे चातुर्मासिक उद्भाविक परिहारस्थान (मानव) आता है ।
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कृमि निकलवाने का प्रायदिचत सूत्र२०४. जो भिक्षु अन्यत
गुवा के कृमियों को और कृति के कृमियों को उँगली बलवा
डलवाकर, निकलवाने, निकलवाने वाले का अनुमोदन करे ।
उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायचित्त) आता है। 班