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________________ २० वरणानुयोग कृमि निकालने का प्रायश्चित सूत्र सत्र ३६६-३७३ आमंगेत्ता, ममखेसावा, मलकर बार-बार मलकर, अन्नयरेणं घूवणजाएणं, किसी एक अन्य प्रकार के धूप से, धूवेज्ज वा, पधूवेन वा, धूप दे, बार बार धूप दे, धूप दिलवावे बार-बार धूप दिलवावे, धूवंतं वा, पधूवतं वा साइज्मइ । धूप दिलवाने वाले का, बार-बार धूप दिलवाने वाले का अनुमोदन करे। सं सेवमाणे आवज्लाइ मातियं परिहारठाणं उग्धाइयं ।। उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि.उ. ४, सु. १७-७२ आता है। किमिणीहरण पायच्छित्तसुतं कृमि निकालने का प्रायश्चित्त सूच३७०. मे भिम अपणो पालु-हिमिपं वा, कृच्छिकिमियं या, अंगु- ३७०. जो भिक्षु अपनी गुदा के कृमियों को और कुक्षि के कृमियों सौए णिवेसिय षिवेसिय, णीहरह, पीहरतं या साइज को उंगली डाल-डालकर निकालता है, निकलवाता है, निकालने धाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवमा मासियं परिहारदाणं उन्धाइयं। उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि.उ.३, सु. ४० आता है। अण्णमण किमिणीहरणस्स पायच्छित्तसुतं- एक दूसरे के कृमि निकालने का प्रायश्चित्त सूत्र३७१. भिक्खू अण्णमयस्स पाखु-किमियं वा, कुच्छि-किमियं वा, ३७१. जो भिक्षु एक दूसरे के गुदा के कृमियों को, कुक्षि के अंगुली निवेसिय निरेसिय, नौहरा, नोहरेतं वा साइम्मद। कृमियों को उंगली डाल-डालकर निकालता है, निकलवाता है। निकालने वाले का अनुमोदन करता है। संसेवमाणे आवजा मासिवं परिहारहाणं उन्धाइयं । उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित) -नि. उ. ४,सु.७३ आता है। चमणाइ-परिकम्म-पायच्छितसुत्ताई वमन आदि के परिकर्म के प्रायश्चित्त सूत्र३७२. जे भिक्खू जपणं करेइ करत वा साइम्जा । ३७२. जो भिक्षु वमन करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू विरेयणं करो करतं या साइज। जो भिक्षु विरेचन करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। जे मिक्लू बमण-बिरेयकं करेइ करतं बा साहज्जा। जो भिक्षु वमन और विरेन करता है, करवाता है, करने बाले का अनुमोदन करता है। जे मिक्खू अरोगे परिकम्म को करतं वा साजइ । जो भिक्षु रोग न होने पर भी औषधि लेता है ,लिवाता है, लेने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमागे आवमा शाजम्मासियं परिहारट्रागं उग्घाइयं । उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि.उ. १३, सु. ४२-४५ आता है। गिहि तिगिच्छाकरण पायच्छित्तसुतं गहस्थ की चिकित्सा करने का प्रायश्चित्त सूत्र - ३७३. भिक्खू गिहितिगिराछ करेह करतं मा साइज। ३७३. जो भिक्षु गृहस्थ की चिकित्सा करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवमा चासम्मासियं परिहारहाणं अपुग्पाह। उसे चातुर्मासिक अनुद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि. उ.१२, सु. १३ आता है।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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