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________________ ! शुभ ३७४-३७६ निर्ग्रन्य द्वारा नित्य के पैरों आदि के परिकर्म कराने के सूत्र अगर वा गारस्थिए बा मज्जाबेज वा, एमज्जा वेश् वर, आमज्जायतं वा पमथावतं या साइज । (२) निग्रन्थ-निर्ग्रन्थिनी परस्पर चिकित्सा के प्रायश्चित्त णिग्गंथेण णिग्गंधस्सपायाह परिक्रम्म फारावण पायच्छित निर्ग्रन्थ द्वारा निर्ग्रन्थ के पैरों आदि के परिक्रमं कराने के सुत्ताई प्रायश्चित्त सूत्र - ३७४. जे ग्गिंध निरस पाए जा-भास गामाशुगामं हजमावस, अण्णउस्थिरण वा गारस्थिए वा सोमवारिय कारावेद, करावं यासा तं सेवमा आवश्य चान्यादि परिहारद्वाणं उत्पाह -- नि. उ. १७, सु. १५-६६ णिग्गंणा णिग्गंधी पायाइ परिकम्मका रावणस्स पाय सिलाई २०५ जागांची ए अण्णउत्थि एग बा, गारत्थएक बा आमज्जावेथ था, मज्जावेज वा आमज्जातं या, मज्जभ्वंतं वा साइज्जइ । जायजा निधी गिग्यंबोए मामाभुगामं दज्जमानीए अथिए वा गारत्वए चा करावे रात का सदम् । सेवमाने या परिष्द्वा" - नि.उ. १७, सु. १०० २३४ ग्गिंथीणा णिग्गंथ-क्षण' तमिच्छाकारावणस्स पायच्छित्त सुताई- २०६ जागांधी पिवत्स कासिवर्णअभ्यमिच या गारस्थिरण बा आमजावेज वा पावे घर आमज्जातं या पमज्जातं वा साइज्ज | ३७४. जो निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थ के पैर का दीपा गृहस्थ से मार्जन करवावे, प्रमार्जन करवावे, मार्जन करवाने वाले का मोदन करे, पारिवाधार २६१ - धाक्दो नि प्रामानुराम जाते हुए निर्बन्ध के मस्तक को, -- मस्तक को, प्रमार्जन करवाने वाले का अनु अन्यतीर्थिकमा गृहस्थ से, कवावे, रुवाने वाले का अनुमोदन करे। उसे चातुर्मासिक उद्घालिक परिहारस्थान (प्राय) आता है। निर्ग्रन्थी द्वारा निर्ग्रन्थी के पैरों आदि के परिकर्म कराने के प्रायश्चित्त सूत्र ३७५. जो निर्ग्रन्थी निर्ग्रन्थों के पैर का अभ्यधिक या गृहस्य से मार्जन करवावे, प्रमार्जन करवाने मार्जन करवाने वाली का, प्रमाजन करवाने वाली का अनुमोदन करे यावत् जो निधी प्रामानुसार नाती हुई निधी के अम्पती या मुल्य से, ढकवाती है, ढकवाने वाली का अनुमोदन करती है । उसे पातुमासिक उद्यानिक परिहारस्थान (प्राय) आता है । निर्ग्रन्थी द्वारा निर्ग्रन्थ के व्रणों को चिकित्सा करवाने के प्रायश्चित सूत्र ३७६. जो निर्मन्धी निर्त्रन्थ के शरीर पर हुए व्रण को - अभ्यर्थिया गुस्से, मार्जन करवावे, प्रमार्जन करवाये, मार्जन करने वाली का प्रभाजन करवाने वाली का अनुमोदन करे । १ उपरोक्त दोनों सूत्रों के जाब की पूर्ति के लिए देखिए ब्रह्मचर्य महाव्रत के प्रायश्वितों में निन्यनिधी के प्रायश्चित सूत्र । ये सूत्रांक का संस्करण गुटके से उद्धृत है।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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