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________________ सूर ३६६ एक दूसरे के गादि की चिकित्सा करने के प्रायश्चित्त सूत्र बारित्राधार २५६ ने भिक्खू अग्गमण्णस्स कार्यसि - गंड बा-जाव-भगरलं वा, अन्नपरेणं तिक्खेणं सत्यजाएगं, अन्डिरिता वा, विच्छिविता वा, पूर्य दा, सोषियं वा, नीहरिता बा, विसोहेत्ता वा. सोओरग वियोण या, सिषोदग विपण वा, उसयोलेत्ता वा, पधोएता वा, अनपरेग आलेवणजाएणं, आलिपेज पा, विलिपेज्ज बा, जो भिक्षु एक दुसरे के शरीर पर हुए गण्ड-यावत्भगन्दर को अन्म किसी प्रकार के तीक्ष्ण शस्त्र से, छेदन करके, बार-बार छेदन करके, पीप या रक्त को, निकालकर, शोधन कर, अचित्त शीत जल से या अचित्त उष्ण जन से, धोकर, बार-बार धोकर, अन्य किसी एक लेप का, लेप करे, बार-बार लेप करे, लेप करवावे, बार-बार लेप करवावे, लेप करने वाले का, बार-बार लेप करने वाले का अनुमोदन करे। आलिपेतं वा, विसिपेतं वा साहज्जा । * भिक्षु अण्णमाणस कार्यसि-गर या-जाव-भगंदस मा, जो भिक्षु एक दूसरे के शरीर पर हुए गण्ड--यावभगन्दर को अनमरेगं तिरखेणं सत्थजाएगं, अपिछविता वा, बिस्छिविता था, पूर्य का सोणियं वा, नोहरिता वा, विसोहेता वा, सीमोग वियहेज था, उसिणोग विपणा , उच्छोल्लेता था, पधोएता वा, अश्यरेणं आलेवणजाएग आसिपित्ता वा विलिपित्ता का, तेहलेण वा जाव-णवणीएण या, ममंगेज्ज वा, मरखेज्ज वा, अगभंगेत वा, मयत वा साइमइ। अन्य किसी प्रकार के तीक्ष्ण शस्त्र से, छेदन करके, बार-बार छेदन करके, पीप या रक्त को निकाले, शोधन करे, अचित्त शीत अल से या अचित्त उष्ण जल से, धोकर, वार-बार धोकर, अन्य किसी एक लेप का, लेप कर, बार-बार लेप कर, तेल-पावत्--मक्खन, मले, बार-बार मले, मलवाथे, बार-बार मलवावे, मलने वाले का, या बार-बार मलने वाले का अनुमोदन करें। जो भिक्षु एक दूसरे के शरीर पर हुए गण्ड-पावत्भगन्दर को अन्य किसी प्रकार के तीक्ष्ण शस्त्र से, छेदन कर, बार-बार छेदन कर, पीप या रक्त को, निकाल कर, शोधन कर, अचित्त शीत जल से या अचित्त उष्ण जल से, धोकर, बार-बार धोकर, किसी एक अन्य लेप का, लेप कर, बार-बार लेप कर, तेल-थावत्-मरखन, ने मिश्लू अण्णमग्णस्त कार्यसि -- गंड वा-जाव-भगवतं या, MAN अप्रयरेणं सिक्खेणं सत्यजाएगं, अभिकविता वा, विच्छिवित्ता वा, पूर्व वा सोषियं वा, नौहरिता वा, विसोहेत्ता वा, सीओबग वियडेग वा, उसिणीबग बियरेण वा, उच्छोलिता वा, परोसा था, अापरे आलेवणजाएणं, सिपिता वा, विलिपित्तावा, स्लेच वा-जाद-प्रवणीएण वा,
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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