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________________ २५६] चरणानुयोग गण्यादि परिकर्म के प्रायश्चित्त सूत्र सूत्र ३६७.३९८ भामजतंबा, पमज्जत या साइज जे भिक्खू अण्णमण्यारस कार्यसि वर्णसंबाहेग्ज वा, पलिमद्देज वा, संबात वा, पलिमहेत वा साइज्जइ। जे मिक्खू अण्णमम्पस कायंसि वणं. तेल्लेण वा, जाव-णवणीएग वा, मक्खेज्ज वा, मिलिगेज्ज वा, मक्खेत वा, मिलिगत वा साइज्जइ । जे भिक्कू अण्णमण्णरस कार्यसि वर्गलोडण घा-जाव-वणेण या, उल्लोलेन्ज वा, उटवटेज वा, उल्लोलेंतं वा, उश्वदृत वा साइजह । मार्जन करने वाले का, प्रमार्जन करने वाले का अनुमोदन करे। जो भिक्षु एक-दूसरे के शरीर पर हुए बण का, मर्दन करे, प्रमर्दन करें, मर्दन करवावे, प्रमर्दन करवावे, मर्दन करने वाले का, प्रमर्दन करने वालो का अनुमोदन करें। जो भिक्षु एक-दूसरे के शरीर पर हुए व्रण पर, तेल-याबद-मक्खन मले, बार-बार मले, मलवावे, बारबार मलवादे, मलने वाले का, बार-बार मलने वाले का अनुमोदन करें। जो भिक्षु एक-दूसरे के शरीर पर हुए प्रण पर, लोध-यावत्-वर्ण का, उबटन करे, बार-बार उबटन करे, उबटन करवावे, बार-बार उबटन करवावे, उबटन करने वाले का, बार-बार उबटन करने वाले का मोरे। जो भिक्ष एक दूसरे के शरीर पर हुए व्रण कोअचित्त शीत जल से, अचित्त उष्ण जल से, धोए, बार-बार घोए, लवावे, बार-बार धुलवावे, धोने वाले का, बार-बार धोने वाले का अनुमोदन करे। जो भिक्षु एक दूसरे के शरीर पर हुए व्रण कोरंगे, बार-बार रंगे, रंगवाचे, बार-बार रंगवावे, रंगने वाले का, बार-बार रंगने वाले का अनुमोदन करे । उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है। जे भिषy अण्णमण्णस कार्यसि वणं-- सीओदग-बियण बा, उसिणोदग-वियडेण वा, उन्होलेग्ज वा, पधोएज्ज वा, उच्छोलत था, पधोएंत वा साइजह । जे भिक्खू अण्णमण्णस्स कार्यसि वर्णफूमेज्ज वा, रएज्ज वा, फूतं बा, रएंत वा साइजह। त सेवमाणे बाबजाइ माप्तियं परिहारहाणं साधाइयं । -नि. उ. ४, सु. ६१-६४ गंडा परिकास पायच्छित्त सुत्ताई३६८, जे भिषायू अपणो कार्यसि -- गं बा, पिथ्य वा अरइयं वा, असियं वा, भवसं वा, अग्णयरेण तिकोण सत्यजाएणं. अच्छिवेज्ज वा विच्छिवेज वा, अच्छियतं वा, विच्छिदंत वा साइजह । जे भिक्षू अपणो कार्यसि-गंड वा-जाव-भगंदलं वा, अण्णयरेणं तिक्वेण सत्यजाएणं, अच्छिरित्ता वा विच्छिविता वा, पूर्य वा, सोणिय वा पोहरेज वा विसोहेज वा, जोहरत वा विसोत वा सरहज्जह । जे भिक्खू अपणो कार्यसि वा-जाव-मगंबलं वा, अण्णायरेग सिमलेणं सत्यजाएणं, गण्डादि परिकर्म के प्रायश्चित्त सूत्र३६८. जो भिक्षु अपने शरीर के गर—यावत -भगन्दर को किसी एक प्रकार के तीक्ष्ण शस्त्र से, छेदन करे. बार-बार छेदन करें, छेदन करावे, बार-बार छेदन करावे, छेदन करने वाले का, बार-बार छेदन करने वाले का अनुमोदन करे। जो भिक्षु अपने शरीर के गण्ड पाबद-भगन्दर को --- अन्य किसी प्रकार के तीक्ष्ण शस्त्र से, छेदन करके, बार बार छेदन करके, पीब या रक्त को, निकाले, शोधन करे, निकलवावे, शोधन करवाये, निकालने वाले का शोधन करने वाले का अनुमोदन करें । जो भिक्षु अपने शरीर के गण्ड-यावत्-भगन्दर कोअन्य किसी प्रकार के तीक्ष्ण शस्त्र से,
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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