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सूत्र ३६६-१६७
चिकित्साकरण प्रायश्चित्त - ५
(१) परस्पर चिकित्सा करने के प्रायश्चित्त
वण-परिकम्मावच्छित सुताई६६. जे अपणो कार्यसि कर्ण
अमजेज वा पमज्जेज्ज था.
आमज्जतं वा पमतं वा साइज्जइ ।
व्रण परिकर्म के प्रायश्चित सूत्र
जे भि अपनो कार्यसि बर्ष
बाबा पनि
वा
बाबा
या साह
जे मिलू अध्यको कार्य
तेल्लेग वा जान-गवणीएण वा अवमंज्ज वा, मक्लेज्ज वा
अगं या मतं या साइज्ज
जे भिक्खू अप्पो कार्यसि वर्ण
सोद्वेग वाजवणे वाउलोले नाथा
उस्सोतं षा उभ्यट्टन्तं वा साइज ।
जे मिक्यू अपणो कार्यसि वर्ण-सीओवग-वियडेग वा, उसिणोग-विमद्वेग वा इण्डोन्सा योग्य वा
छो वा पोतं या साइज ।
जे मिम्णू अध्यणो कार्यसि वर्ण
फूलंत वा श्यंतं वा साइज्जइ ।
तं सेवमाने आवज्जद मातियं परिहारद्वाणं उधाइ ।
- नि. उ. ३, सु. २८-३३ अणमण्ण-वण- सिगिकछार पायच्छितसुताई३६७. जे भिक्खू अणपण्णस्त कार्यसि वर्णआमज्जेज्ज वा, पमज्जेज वा,
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चारित्राचार २५५
-परिकर्म के प्रायश्चित्त सूत्र
३६६. जो भिक्षु अपने शरीर के व्रण का, भार्जन करें, प्रमार्जन करे ।
पान करना है प्रमार्जन करवाने,
मार्जन करने वाले का प्रमार्जन करने वाले का अनु. मोदन करें ।
जो भिक्षु अपने शरीर के
का
मर्दन करे, अर्दन करे मर्दन करावे, प्रमर्दन करावे,
मर्दन करने वाले का प्रमदंग करने वाले का अनुमोदन करें।
जो अपने शरीर के
र
तेल यावत्- मक्खन, मो बार-बार मले,
मतवावे बार-बार
मलने वाले का बार-बार मन्नने वाले का अनुमोदन करे ।
जो भिक्षु अपने शरीर के व्रण पर,
लोध यावत्-वर्ण का उबटन करे, बार-बार उबटन करे,
उबटन करवावे, बार-बार उबटन करवावे,
उबटन करने वाले का बार-बार उबटन करने वाले का अनुमोदन करे।
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जो भिक्षु अपने शरीर के प्रण क
अचित्त शीत जल से या अचित्त उष्ण जल से,
धोये, बार-बार धोये,
भुलाये मार-पार धुलवावे
धोने वाले का, बार-बार धोने वाले का अनुमोदन करे ।
जो भिक्षु अपने शरीर के व्रण को
रंगे, बार-बार रंगे,
रंगवावे, बार-बार रंगवावे,
रंगने वाले का, बार-बार रंगने वाले का अनुमोदन करे । उसे उद्घाटक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है।
परस्पर व्रण की चिकित्सा के प्रायश्चित सूत्र
३६७. जो भिक्षु एक-दूसरे के शरीर पर हुए व्रण का, मार्जन करे, प्रमार्जन करे,
मान करवावे
करवा