SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 284
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५.] वरणानुयोग पृथ्वीकाय आदि के भारम्भ करने का प्रायश्चित्त सूत्र सत्र ३५१-३५५ पुटवोकाइयाणं आरंभ करण पायच्छित्त सुत्त पृथ्वीकाय आदि के आरम्भ करने का प्रायश्चित्त सूत्र३५३. जे भिक्षु पुरावीकायस्स वा-जाव-वसकायस्म का फल- ३५३. जो भिक्ष पृथ्वीकाय-यावत्-वनस्पतिकाय का अल्प से मायमवि समारंभह समारंभतं वा साहमा । अल्प' भी आरम्भ करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेत्रमाणे आवाइ चाउम्मासियं परिहारट्टाणं उम्धाइयं। उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि, उ. १२, मु. ८ आता है। सचित्त पुढयोकाइए ठाणाइ करणपायच्छित्त सुत्ताई- सचित्त पृथ्वीकायिकादि पर कायोत्सर्ग करने के प्रायश्चित्त सूत्र३५४. जे भिक्खू अर्णतरहियाए पुढधोए १. हागं या, २. सेज्जं वा, ३५४. जो भिक्षु मदा सचित्त रहने वाली पृथ्वी पर कायोत्सर्ग ३. णिसेज्ज वा, ४. णिसीहियं या एप चेयंतं वा साइजए। करता है, सोता है, बैटता है, स्वाध्याय करता है, करवाता है करने वाले का अनुमोदन करता है जे भिक्खू ससिणिडाए पुहवीए ठाणं बा-जाद-णिसीहियं वा जो भिक्षु स्निग्ध पृथ्वी पर कायोत्सर्ग करता है- पावत्घेएर नेयंत वा साइज्जद । स्वाध्याय करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्कू ससरसाए पुदीए ठाणं वा जाव-णिसोहियं या जो भिक्षु सचित्त पानी से भीगी हुई पृथ्वी पर कायोत्सर्ग चेएइ वेपंतं वा साइज्जा । करता है यावत् - स्वाध्याय करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिषल मटियाकडाए पुढवीए सणं वा-जाव-गिसीहियं वा जो भिक्षु सचित्त रज वाली पृथ्वी पर कायोत्सर्ग करता है चेएइ चेयंत या साइजड । -यावत्-स्वाध्याय करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। जे मिक्खू वित्तमंताए पुतबीए ठाणं वा-जाव-णिसीहियं वा जो भिक्षु सचित्त पृथ्वी पर कायोत्सर्ग करता है—यश्वत्चेएए चेयंत वा साइज्जा। स्वाध्याय करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू चित्तमंताए सिलाए ठाणं वा-जाव-णिसोयिं वा जो भिक्षु सचित्त बिना पर कायोत्सर्ग करता है यावत् - चैएइयंतं वा साइज्जद। स्वाध्याय करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू चित्तमंताए लेखूए ठाणं वा जाव-णिसीहिमं वा जो भिक्षु सचित्त ढेले पर कायोत्सर्ग करता है-पावत्चेए चेयंत वा साइज्जद। स्वाध्याय करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। त सेवमाणे मावज्जद चाउम्मासियं परिहारहाण उग्धाइयं । उमे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि.उ. १३, सु. १७ आता है। सअंडाइए दारूए पाणाइ करण पायरिछत्त सुत्तं-- अंडों वाले काष्ट पर कायोत्सर्ग करने का प्रायश्चित्त सूत्र-- ३५५. जे मिक्खू कोलाबासंसि दारुए जोवपइदिए सडे-जाव- ३५५. जो भिक्षु कीड़े पड़े हुए काप्ट पर, सजीव काष्ट पर, संतामसि ठानं जा-जाब-णिसीहियं वा चेएइ चेयंत या अंडे प्राणी-यावतु-मकड़ी चल रही हो ऐसे काष्ट पर साइज्जह। कायोत्सर्ग करता है, यावत्-स्वाध्याय करता है या कायोत्रादि तीनों कार्य एक ही स्थान पर करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारद्वाजं जाघाइयं । उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि.उ.१३, सु.८ आता है।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy