________________
सूत्र ३५०-३५२
सचित्त वृक्ष पर बढ़ने का प्रायश्चित सूत्र
चारित्राचार
[२४६
ने भिषय सचित्त-तक्य-मूलंसि ठिच्चा उच्चार या पासवगं जो भिक्षु सचित्त वृक्ष के मूल पर स्थित होकर चारपा परिवेइ परिवेतं वा साहज्जद ।
पासवण परठता है, परठवाता है परठने वाले का अनुमोदन
करता है। बेमिस्र सधिस-हक्ख-भूसंसि ठिकचा सम्झामं करे करतं जो भिक्षु सचित्त वृक्ष के मूल पर स्थित होकर स्वाध्याय का साइम।
करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू सचित्त-रुक्ख-मूलसि ठिच्चा सन्मायं उहिसह जो भिक्षु सचित्त वृक्ष के मूल पर स्थित होकर स्वाध्याय का उदिसतं वा साइम्जा।
उद्देसण (गरायण) करता है, करवाता है, करने वाले का अनु
मोदन करता है। ले भिक्खू सचित्त-हवख-मूलसि ठिच्चा सम्मायं समुसिइ जो भिक्षु सचिस वृक्ष के मूल पर स्थित होकर स्वाध्याय समुद्धिसंत बा साहामह।
की आज्ञा देता है, दिलवाता है, देने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू सचित्त-हक्ख-मूलसि हिचा सज्झायं अणुजामह जो भिक्षु सचित्त वृक्ष के मूल पर स्थित होकर स्वाध्याय अजाणतं वा साइज्जइ।
की अनुशा देता है, दिलवाता है, देने वाले का अनुमोदन करता है। जे मिक्ल सचित पख-मूलसि ठिचा समायं वाएइ वायंत जो भिक्षु सचित्त वृक्ष के मूल पर स्थित होकर सूत्रार्थ की का साइज्जइ।
वाचना देता है, दिलवाता है, देने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्षु सचित रुक्ख-मूलंसि ठिया सन्झाय परिषठाइ जो भिक्षु सचित्त वृक्ष के मूल पर स्थित होकर सूचार्य के परिच्छतं पा साइजह ।
मम्बन्ध में प्रश्न करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन
करता है। जे भिक्खू सचित्त-दरख मूलसि ठिचा समायं परियड जो भिक्ष सचित्त वृक्ष के मुल पर स्थित होकर सूत्रार्थ की परियन्तं वा साइज्जइ।
पुनरावृत्ति करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन
करता है। तं सेवमाण आधज्जद मासिय परिहारहाणं उन्धाय । उसे मासिक उद्घातिक परिहार स्थान (प्रायश्चित्त) आता है।
-नि. उ. ५, सु. १-११ सचित्तरक्ते दुरूहणस्स पायच्छित सुतं--
सचित्त वृक्ष पर चढ़ने का प्रायश्चित सूत्र३५१. जे भिक्खू सचित्तरुपखं बुरुहार, गुरुतं वा साहज्जा। ३५१. जो भिक्षु सचित्त वृक्ष पर चढ़ता है, चढ़ने के लिए कहता
है या चड़ने वाले का अनुमोदन करता है। सं सेवमाणे बावजा चाउम्मासिब परिहारहाणं जपाइय। उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहार स्थान (प्रायश्चित्त)
-नि.स.१२. सु. आता है। तसपागाणं बंधण-मोषण करण पायच्छित्त सुस-- त्रस प्राणियों को बांधने और बन्धनमुक्त करने के प्राय
श्चित्त सूत्र२५२. बे पिकवू कोसुण पडियाए अण्णर ससमागमाई १. सण- ३५२. जो भिक्षु करुणा भाव से किसी एक त्रस प्राणी को १. तृण
पासएग वा, २. मुंज-पासएण वा. ३.कट्ठ-पासएण था, के पाश से २. मुंज के पाश से, ३. काष्ट के पास से, ४. धर्म के ४. चम्म-पासएण श, ५. वेत्त-पासएण वा, ६. रज्जु पासएण पाश से, ५, वे पाश से, ६. रज्जू पाश से. ७. सूत्र पाश से, वा, ७. सुस-पासएग वा, बंधड बंधत वा साहज्जा। बांधता है, बंधवाता है. बाँधने वाले का अनुमोदन करता है। मे भिक्खू कोलुष-पडियाए अग्णयरि तसपाणमाई तन-वास- जो भिक्षु करुणा भाव से किसी एक त्रस प्राणी को तृण पाश एक घा-जाव-मुस-पासएण था बदल्लयं मुबह मुयंतं पा से-पालतू सुत्र पाश से बंधे हुए को मुक्त करता है, फरवाता साइन्न।
है, करने वाले का अनुमोदन करता है। के सेवमाणे आवज्जद चासम्मासिय परिवारवागं उग्बाइय। उसे चातुर्मासिक उद्वातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त)
-नि.उ. १२, सु. १.२ आता है।
। कुछ पत्तियों में चातुर्मासिक अनुद्घातिक प्रायश्चित्त का विधान है।