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________________ सूत्र ३४७.३४० अपतना का निषेध चारित्राचार २४० जसो से मारस्म अंतो ततो से दूरे। इसलिए वह मृत्यु की पकड़ में रहता है और इसीलिए अमृत (परमपद-मोक्ष) से दूर रहता है। व से अंतो व से दूरे। (कामनाओं का निवारण करने वाला) पुरुष न तो मृत्यु की सीमा (पकड़) में रहता है और न मोक्ष से दूर रहता है। से पासति कुसितमिव कुसम्ये पाण्यं शिवतितं बातेरितं । वह पुरुष कुश की नोंक को छुए हुए अस्थिर और वायु के झौके से प्रेरित होकर गिरते हुए बिन्दु को सरह जीवन को (अस्थिर) जानता देखता है। एवं बालम जीवितं मंवत्स अबिजाणतो। बाल (अज्ञानी), मन्द (मन्दबुद्धि) का जीवन भी इसी तरह अस्थिर है, परन्तु वह (मोहवश) (जीवन के अनित्यत्व) को नहीं जान पाता। कराणी कम्माणि शले पकुवमाणे तेण दुक्खेण मुठं विप्प- वह अज्ञानी हिंसादि क्रूर कर्म उत्कृष्ट रूप से करता हुआ रियासमुवेति, (दुःख को उत्पन्न करता है।) तथा उसी बुःख से मूक उद्विग्न होकर यह विपरीत दशा को प्राप्त होता है। मोहेण गन्म मरणाइ इति । उस मोह से वह बार-बार गर्भ में आता है जन्म-मरणादि पाता है। एत्य मोहे पुणो पुणो। इसमें भी उसे पुनः पुनः मोह उत्पन्न होता है । -आ. सु. १, अ. ५, उ, १, सु. १४७-१४६ अजयणा निसेहो अयतना का निषेध३४८, अमयं परमाणो उ, पाण-भूयाई हिसई । ३४८. अयतनापूर्वक चलने वाला अस और स्थावर जीवों की बंधी पायर्य कम्म, तं से होह काय फसं ॥ हिसा करता है । उससे पाप-कर्म का बन्ध होता है। यह उसके लिए कटु फल वाला होता है । अजयं चिटुमाणोच, पाण-पूयाई हिसई। अयतनापूर्वक खड़ा होने वाला रस और स्थावर जीवों की बंधई पाक्यं कम्म, तं से होइ कडयं फलं ॥ हिंसा करता है। उससे पाप-कर्म का बन्ध होता है। वह उसके लिए कटु फल वाला होता है। अजयं आसमापो उ, पाण-भूयाई हिसई। अवतमापूर्वक बैटने वाला वस और स्थावर जीवों की हिंसा संधई पावयं कम्म, तं से होद कयं फलं ॥ करता है। उससे पाप-कर्म का बन्ध होता है। वह उसके लिए कटु फल वाला होता है। अजयं स्यमाणो उ, पाण-भूबाई हिसई। अवतनापूर्वक सोने वाला अस और स्थावर जीवों की हिंसा बंधई पाययं कम्म, तं से होइ कड़यं फलं ॥ करता है । उससे पापकर्म का बन्ध होता है। वह उसके लिए कटु फल वाला होता है। अजयं मुंजमाणो उ, पाण-भूपाई हिंसई । ____ अयतनापूर्वक भोजन करने वाला प्रस और स्थावर जीवों की बंधई पावयं कम्म, तं से होइ कडयं फलं ।। हिंसा करता है । उससे पाप-कर्म का बन्ध होता है। वह उसके लिए कटु फल वाला होता है। -अयं भासमाणो स, पाण-भूगाई हिंसई । अयतनापूर्वक बोलने वाला घस और स्थावर जीयों की हिंसा बंधई पावयं कम्म, तसे होड़ करयं फस ।। करता है । उससे पाप-कर्म का बन्ध होता है। यह उसके लिए कटु फल वाला होता है। -कह चरे कह चिट्ठ, कहमासे कहं सए। प्र-कैसे चलें ? कैसे खड़े हो? कैसे बैठे? कसे सोए? कहं भुझंतो मासंतो, पावं कम्म न बंधई।.. कैसे खाए? कैसे बोले ? जिससे पाप-कर्म का जन्ध न हो।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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