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________________ २३२] चरणानुयोग तस्य खलु भगवता परिष्णा पवेदिता इमस्स बेब जीवितस्स परिवण-बाणण-पूययाए । जाती भरणमोबाएलहेतु से सपमेव उदयसर समारंभति अहि या समारंभावेति भासा समारंभ समजात । तं से अहिताए, तं से से संयमाने आयनीय समुद्वा । सोच्या भगवतो अणगारावं हमे गतं भवति एम मोहे एस एस चतुमारे, एस रिए , इत्थं गढिए लोए, जमिणं विरुषरूहि सत्येहि साथकम्मसमारंभेणं उपयसस्थं समारंभमाणे अपने व जे गरुवे पाणे विहिंसति । से बेमि संति पाणा उदयणिस्सिया जीवा अणेगा । हं अकायिक बीवों की हिंसा का निवेश खलु भो अणगाराणं उदय - जीवा विपाहिया । सत्यं चेत्थं अभी पास ! पुढो सत्यं पवेदितं । अदुवा अहिष्णादानं । कपड़ हमें में पा अदुवा विभुसाए। कप्पड़ पुढो सह विजन्ति । www. इस विषय में भगवान् महावीर स्वामी ने परिक्षा-विवेक का उपदेश किया है। सूत्र ३३२ कोई व्यक्ति इस जीवन के लिए, प्रशंसा सम्मान और पूजा लिए जन्म मरण और मुक्ति के लिए, दुख का प्रतीकार करने के लिए स्वयं कायिक जीवों की हिंसा करता है. दूसरों से हिसा करवाता है, तथा हिंसा करने वालों का अनुमोदन करता है। (वृत्त) उसके अहित के लिए होती है वह उसकी अयोधि अर्थात् ज्ञानबोधि दर्शन-योधि और चारशे की अनुfor के लिए कारणभूत होती है । वह साधक (संयमी ) हिंसा के उक्त दुष्परिणामों को अच्छी तरह समझता हुआ, आदानीय-संयम साधना में तत्पर हो जाता है। कुछ मनुष्यों को भगवान् के या अनगार मुनियों के समीप धर्म सुनकर यह ज्ञात होता है कि- "यह जीव-हिंसा ग्रन्थि है, यह मोह है है और यही नरक है।" ( फिर भी ) जो मनुष्य सुख आदि के लिए जीवहिंसा में नासक्त होता है, वह नाना प्रकार के शस्त्रों से जल-सम्बन्धी हिंसा-या में संलग्न होफर अपकारिक जीवों को हिंसा करता है और तब वह न केवल अकाधिक जीवों को हिंसा करता है, अपितु अन्य नाना प्रकार के जीवों को भी हिंसा करता है। मैं कहता हूँ जल के आश्रित अनेक प्रकार के जीव रहते हैं । हे मनुष्य ! इस अनवार-धर्म में, अर्थात् वहं में ज को "जी" ( सचेतन) कहा है। जलकाय के जो शस्त्र है, उन पर चिन्तन करके देखें ! भगवान् ने जलकाय के अनेक शस्त्र बताये हैं । जलकाय की हिंसा, सिर्फ हिंसा ही नहीं, वह अदत्तादान चोरी भी है। "हमें कल्पता है । अपने सिद्धान्त के अनुसार हम पीने के जल से सकते हैं। हम पीने तथा नहाने (विभूषा) के लिए भी जल का प्रयोग करते हैं ।" इस तरह अपने शास्त्र का प्रमाण देकर या नानाप्रकार के शस्त्रों द्वारा जलकाय के जीवों को हिंसा करते हैं । १ नियुक्तिकार ने जलकाय के सात शस्त्र इस प्रकार बताये हैं-(१) कुएं से जल निकालना। - (२) गालन-जल छानना । (३) धोजन-जल से उपकरण वर्तन आदि धोना । ( ६ ) तदुभय शस्त्र - जल से भीगी मिट्टी आदि । (७) भाव शस्त्र असंयम । ( 3 ) स्वकाय शस्त्र - एक स्थान का जल दूसरे स्थान के जन का शस्त्र है। (५) परकाय शस्त्र मिट्टी, तेल, क्षार, शर्करा, अग्नि आदि । - माचा. नियुक्ति गा. ११३, ११४
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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