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________________ २२.] धरणानुयोग अकायिक जीवों का आरम्म न करने की प्रतिज्ञा अप्परे गहमरने, अप्पेगे महमण्छे, जैसे कोई किसी के नख का भेदन करे, छेदन करे, अप्पेगे गौवमम्मे, अप्पेगे गौवम, जैसे कोई किसी की ग्रीवा (गरदन) का भेवन करे, छेदन करे, अप्पो हनुमग्भे, अप्पेगे हणुमच्छ, जैसे कोई किसी हनु (ड्डी) का भेदन करे, छेदन करे, अपंगे होटुमम्मे, अप्पेगे होगुमच्छे, जैसे कोई किसी के होंठ का भेदन करे, छेदन करे, मध्ये सरन, अन्य बैतम, जैसे कोई किसी के दांत का भेदन करे, छेदन करे, अप्पेगे जिम्ममम्भे, अप्पेगे जिम्ममध्छे, जैसे कोई किसी को जीभ का भेदन करे, छेदन करे, भप्पेगे तालुमम्मे, अप्पेये तालुमच्छ, जैसे कोई किसी के तालु का भेदन करे, छेदन करे, अपेगे गसमामे, अप्पेगे गलमन्छे, जैसे कोई किसी के गले का भेदन करे, छेदन करे, अप्पगे गंडमासे, अप्पेगे गंडमच्छ, जैसे कोई किसी के कपोल का भेदन करे, छेदन करे, अप्पंगे कण्णमग्ने, भरपेगे कायमच्छ, जैसे कोई किसी के कान का भेदन करे, छेदन करे, अपंगे णासमम्मे अप्पेगेगासमन्छे, जैसे कोई किसी नाक (नासिका) का भेदन करे, छेदन करे, अप्पो अपिछमाभे, अपेगे अच्छिमच्छ, जैसे कोई किसी की आँख का भेदन करे, छेदन करे, अयगे ममुहममें, आपेगे भमुहमच्छ, जैसे कोई किसी की भौंह का भेदन करे, छेदन करे, अप्पे गिजालमम्भे, अप्पो पिडालमाछे, जैसे कोई किसी के ललाट का भेदन करे, छेदन करे, अप्पो सीसमम्मे, अप्पंगे सोसमन्छे, जैसे कोई किसी के सिर का भेदन करे, ददन करे, मप्पगे संपमारए, अप्पेगे उपए। जैसे कोई किसी को गहरी चोट मारकर, मूच्छित कर दे, या प्राण-वियोजन ही कर दे उसे जैसी कष्टानुभूति होती है। वैसी ही पृथ्वीकायिक जीवों की वेदना समझनी चाहिए। एप सरपं। समारंप्रमाणस्स इच्छेते आरम्मा अपरिष्णाता जो यहाँ (लोक में) पृथ्वी कायिक जीवों पर शस्त्र का भवति। समारम्भ-प्रयोग करता है, वह वास्तव में इन आरम्भों (हिंसा सम्बन्धी प्रवृत्तियों के कट परिणामों व जीवों को वेदना) से अनजान है। एप सत्धं असमारंममाणस्स इम्ते आरम्भा परिणाता जो पृथ्वीकाधिक जीवों पर शस्त्र का समारम्भ-प्रयोग नहीं भवति । करता, वह वास्तव में इन आरम्भों-हिंसा-सम्बन्धी प्रवृत्तियों का झाला है, (वही इनसे मुक्त होता है) सं परिणाय मेहावी य स विसरण समारंभेज्जा, यह (पृथ्वीकायिक जीवों की अव्यक्त वेदना) जानकर बुद्धिभवहिं पुढविसस्य समारंभावेजा, जेवणे-पुतविसस्थ मान् मनुष्य न स्वयं पृथ्वीकाय का समारम्भ करे, न दूसरों से समारंमते समजाज्जा । पृथ्वीकाय का समारम्भ करवाये और न उसका समारम्भ करते वाले का अनुमोदन करे। बोते पुढविकम्मसमारंभा परिण्णाता भवति से हु मुणी जिसने पृथ्वीकाय सम्बन्धी समारम्भ को जान लिया अर्थात् परिण्णायकम्मे । हिसा के कटु परिणाम को जान लिया वही परिक्षातकर्मा (हिंसा) का त्यागी) मुनि होता है। तिमि । -प्रा. सु. १, अ.१ उ. २, सु.१०.१८ सा मैं कहता हूँ। नियुक्तिकार ने पृथ्वीकाय के दस शस्त्र इस प्रकार गिनाये हैं :१-कुदाल आदि भूमि खोदने के उपकरण । ६-उच्चार-प्रश्रवण (मल-मूत्र)। ३-हल आदि भूमि विदारण के उपकरण । ७-स्वकाय शस्त्र; जैसे—काली मिट्टी का शस्त्र पीली मिट्टी मावि। ३-मृग श्रृंग। ८--परकाप शस्त्र; जैसे----जल आदि । ४-का-लकड़ी तृण आदि । ६-तदुभय शस्त्र; जैसे-मिट्टी मिला जल । -अग्निकाय । १०-भावशस्त्र-असंयम । -आवारांग नियुक्ति गा, ९५-९६
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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