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________________ अब ३३० पृथ्वीकायिक जीवों को देखना मानकर उनके आरम्भ का निषेध किया है चारित्राचार २ इमस घेग नीषियस्स, परिवरक मामण-पुषणाए जाती- कोई व्यक्ति इस जीवन के लिए, प्रशंसा-सम्मान और पूजा मरण-मोयनाए बुक्खपरिपातहे, के लिए, जन्म, मरण और मुक्ति के लिए, दुख का प्रतिकार करने के लिए। से सयमेव पुर्वावसत्यं समारंभति, अण्णेहि बा पुढविसत्यं स्वयं पृथ्वीकायिक जीवों की हिंसा करते हैं, दूसरों से हिंसा समारंभावेति, अग्ने वा पुढविसत्धं समारमंते, समाजागति, करवाते हैं, तथा हिंसा करने वालों का अनुमोदन करते हैं। त से अहिताए, तं से अबोहीए। वह (हिसावृत्ति) उसके अहित के लिए होती है। वह उसकी अबोधि अर्थात् ज्ञान-बोधि, दर्शन-बोधि और चारित-छोधि की अनुपलब्धि के लिए कारणभूत होती है। से तं संवुममाणे आयागीयं समुहाए। वह साधक (संयमी) हिमा के उक्त दुष्परिणामों को अपछी तरह समझता हुआ, आदानीय-संयम-साधना में तत्पर हो जाता है। सोचा भगवतो अणगारार्ण इहमे गेसि जातं भवति-एस कुछ मनुष्यों को भगवान के या अनगार मुनियों के समीप बतुनथे, एस खलु मोहे, एस खतु मारे, एस पपु गिरए। धर्म सुनकर यह शान होता है कि-"यह जीव-हिमा प्रन्थि है, यह मोह दे, घट मुत्य है और यही नरक है।" हसत्यं गदिए लोए, नमिणं विरूदरवेहि सत्येहि पुरवि- (फिर भी) जो मनुष्य सुख आदि के लिए जीवहिंसा में कम्मसमारंमेणं पुविसत्यं समारंममागे मागे मगर पाने आसक्त होता है, वह नाना प्रकार के शस्त्रों से पृथ्वी सम्बन्धी विहिति। हिसा-क्रिया में संलग्न होकर पृथ्वी-कायिक जीवों की हिंसा करता है, और तब वह न केवल पृथ्वीकायिक जीदों की हिंसा करता है, अपितु अन्य नानाप्रकार के जीवों को भी हिंसा करता है। से बेमि मैं कहता हूँअल्पेगे अंधमग्ने, अन्येगे अंधमाल, जैसे कोई किसी जन्मान्ध इन्द्रियविकल--पंगु, गंगा, बहरा, अक्ष्यवहीन को भेदे, मुद्गर आदि से चोट पहुँचाये थेये, (तसवार मादि से घाव को काटकर अलग कर दे) मप्येने पावमाने, अप्पेगे पाबमाछे, जैसे कोई किसी के पर को भेद, छेदे, भरपेगे गुरफमम्मे, अप्पेगे गुष्फमेसछे। जैसे कोई किसी के टखने को भेदे, छेदे, अप्पेगे जंघमम्भे. अप्पेगे मधमाछे, जैसे कोई किसी की जंघा को भेदे, छेदे, अप्पेगे जाणुमाने, अप्पेगे माणमाके, जैसे कोई किसी के घुटने को भेदे, छेदे, अप्पेगे हमामे, अप्पो उलमाछ, जैसे कोई किसी के उरु को भेदे, दे, भयो करिमसे, अप्पेगे डिमाछे, जैसे कोई किसी को कटि को भेदे, छेडे, अप्पेगे मामिमन्मे, मप्पो णाभिपच्छे, जैसे कोई किसी को नाभि को भेदे, छेदे, अपंगे उपरमम्मे, अप्पगे गरमच्छ, जैसे कोई किसी के उदर को भेदे, छेदे, अप्पेगे पासमम्मे, मपणे पासपाछे, जैसे कोई किसी की पावं (पसली) को भेदे, दे, अप्पेगे पिढिमग्भे, अप्पगे पिद्विमन्छे, जैसे कोई किसी को पीठ को भेदे, छेदे, मागे उरमाभे, अम्पेगे उरमन्छे, भैसे कोई किसी की छाती को भेदे, छेके, भयेगे हिवयमसे, अप्पेगे हियपमा, जैसे कोई किसी के हृदय को भेदे, छेदे, मध्येगे धनमम्भे, अप्पेगे पगमछे, जैसे कोई किसी के स्तन को भेदे, छदे,, अपंगे बंधमम्मे, अम्पेगे बंधमच्छे, जैसे कोई किसी के कंधे को भेदे, छेदे, भयगे बाहुमने, अप्पेगे बाहुमम्छे, जैसे कोई किसी की भुजा को भेदे, वेदे, मागे हापमम्मे, भगे हत्पमच्छे, जैसे कोई किसी के हाथ को भेदे, छेदे, भयेगे अंगुलिमम्भे, मप्पेगे अंगुलिमाछे, जैसे कोई किसी की अंगुली को भेदे, छेदे,
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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