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________________ २०६] चरणानुयोग संबर को उत्पत्ति और अनुत्पत्ति सूत्र ३०४-३०५ जस्स गं अज्झवसाणावरणिज्जाणं करमागं खोषसमे जिम के अध्यवसानावरणीय कर्मों का क्षयोपशम नहीं हुआ है। नो करे भवइ, से णं असोच्या केलिस्स बा-जाव- बह केवलि से यावत्-केवलिपाक्षिक उपासिका से सुने बिना तपविखयउवासियाए वा केवलेणं संवरेण नो संवरेज्मा । संवर आराधन नहीं कर सकता है। से तेण?णं गोयमा एवं बुमचद गौतम ! इस कारण से ऐसा कहा जाता हैजस्स गं अज्ससाणावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे जिस के अध्यबसानावरणीय कर्मों का क्षयोपशम हुआ है वह करे भवइ, से पं असोपना केलिस्स बा-जाम-तप्प. केवली से-जावत्-वलिपाक्षिक उपासिका से सने विना पिखयजवासियाए वा केवलेणं संवरेणं संबरेज्मा। संबर आराशन कर सकता है। जस्स णं अवसाणावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे जिसके अध्यवसानावरणीय कर्मों का क्षयोपशम नहीं हुआ भोकडे प्रवइ, सेणं असोकचा केवलिस वा-जाव-सम्प- है वह केवली से-यावल-केवलि पाक्षिक उपासिका से सने पिखपउवासियाए वा केवलेग संवरेणं नो संबरेज्जा। बिना संवर आराधन नहीं कर सकता है । --वि. स. ७.११, सु. ११ प०-सोकचा गं मंते ! केबलिस वा-जाव-तप्पक्खियउवा- प्र.- भन्ते ! केवलि से-बावत्--केवलिपाक्षिक उपासियाए वा केवलेणं संवरेण संवरेज्जा? सिका से सुनकर कोई जीव संवर आराधन कर सकता है ? 30-गोयमा ! सोना में केवलिस्स वा-जाव-तप्पक्खिय- ०-गौतम ! कवलि से यावत- केवलिपाक्षिक उपा स्वासिमाए वा अत्थेसिए केवण संवरेणं संवरेज्जा, सिका के सुनकर कोई जीव संवर आराधन कर सकता है और मस्येगसिए केवलेणं संवरेणं नो संबरेजा। कोई जीव संवर आराधन नहीं कर सकता है। ५०-से केण? भंते ! एवं बुच्चद प्र०-भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता हैसोनमा ग केयलिस वा-जान-तापक्खियउवासियाए वा केवलि से-यावद-केवलि पाक्षिक उपासिका से सुनकर अत्यत्तिए केबसेणं संवरेणं संवरेज्जा, अत्गत्तिए कोई जीव संवर आराधन कर सकता है और कई जीव संवर केवलेणं संवरेणं नो संवरेज्जा ? आराधन नहीं कर सकता है? उ-गोयमा ! जस्स णं अज्ञवसाणावरणिजाणं कम्माणं उ०-गौतम ! जिराके अध्यवसानावरणीय कर्मों का आयो खोवसमे कडे भव से गं सोचा के लिस्स वा-जाव- पशम हुआ है वह केवलि से यावत् केवलि पाक्षिक उपासिका तम्पक्खिय उवासियाए वा के अनेगं संवरेगं संवरेज्जा। से गुनकर संवर भाराधन कर सकता है। जस्स अनशवसामावरणिज्जाणं कम्मागं खओवसमे जिसके मध्यवसातावरणीय कर्मों का क्षयोपशम नहीं हुआ नो कडे भवद से गं सोच्या केवलिस्स वा-गाव-तप्प- है वह केवलि से यावत्- केवलिपाक्षिक उपासिका से सुनकर विखपजवासियाए वा फेवलेणं संवरेणं नो संवरेज्जा । संघर आराधन नहीं कर सकता है। से तेण?णं मोयमा एवं बुच्च गौतम ! इस कारण से एसा कहा जाता हैअस्स गं अज्नवसागावरणिज्जार्ण कम्माणं खओक्समे जिसके अध्यावसानाधरणीय कर्मों का क्षयोपशम हुआ है को भवा, से सोच्चा केवलिस्स वा-जाव-तपक्षिय- वह केवलि से-यावत्-केवलिपाक्षिक उपासिका से सुनकर उवासियाए वा केवले संबरेणं संवरेज्जा 1 संवर आराधन कर सकता है। अस्त गं अज्ावसागावरणिज्जागं कम्माणं खोवसमे जिसके अध्यायसानाबरणीय कर्मों का क्षयोपशम नहीं हुआ नोकरे मवइ, से णं सोचा केलिस्स बा-जाव-तप्प- है वह केवलि से-यावत केवलि पाक्षिक उपासिका से सुनकर क्खियउवासियाए वा केवलेमं संवरेणं नो संवरेजा। संवर आराधन नहीं कर सकता है। -वि. स. ६, उ. ३१, सु. ३२ आसवस्स संबरस्सय विवेयो आश्रय और संवर का विवेक३०५. अमणुण्णसमुप्पाबं दुक्खमेव विजाणिया। ३०५, दुःख की उत्पत्ति का कारण जानना चाहिए, समुप्पावमयागंता किह नाहिति संवरं ।। दुःन की उत्पत्ति को बिना जाने कैसे संवर को जान पाएंगे। -सूय. सु.१, अ.१, उ.३, गा.१०
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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