________________
चरित्तायारो
चारित्राचार
चरणविहिमहत्तं
चरणबिधि का महत्व३०३. बरपविहि पवस्वामि, जीवत्स उ सुहावहं । ३०३. अब मैं जीव को सुख देने वाली उस वरण-विधि का जं चरित्ता बहू श्रीवा, तिम्णा संसारसागरं ॥ . कथन करूंगा जिसका आचरण कर बहुत से जीव संसार-सागर
-उत्त. अ. ६१, गा.१ से तिरगए । गोहि बाहिं संपन्ने अगगारे अणावीयं अणषयगं बहमदं विद्या और चरण (चारित्र) इन दोनों स्थानों से सम्पन्न चातसंसारकसारं वीस्विसेज्जा, तं जहा--विजाए चेय अणगार अनादि अनन्त दीर्घ मार्ग बाले एवं चतुर्गतिरूप संसार धरणेण चेव।
-ठाणं. अ. २, उ. १, सु. ५३ रूपी गहन वन को पार करता है, अर्थात् मुक्त होता है। गरिप आसवे संवरे वा, गेव सम्णं निवेसए ।
आश्रव और संवर नहीं है ऐसी श्रद्धा नहीं रखनी चाहिए अस्थि आसवे संवरे वा, एवं मण्ण मिवेसए ।
किन्तु आथव भी है और संबर भी है ऐसी श्रद्धा रखनी चाहिए। -सूव. सु. २, अ. ५, गा. १७ संवरस्स उप्पत्ति अणुप्पत्ति य -
संवर की उत्पत्ति और अनुत्पत्ति३०४. तो आमा पण्णता,
३०४. तीन घाम (प्रहर) कहे गये हैंतं जहा-पढ़में आमे, मजिसमे मामे, परिछमे जामे ।
यथा-प्रथम याम, मध्यम याम और अन्तिम याम । तिहि जामेहि माया केवलेणं संवरेणं संवरेज्मा,
तीनों ही यामों में आरमा विशुद्ध संवर से संवृत होता हैसं जहा-पदमे जामे, मगिरमे जामे, पच्छिमे जामे ।
यथा-प्रथम याम में, मध्यम पाम में और बन्तिम याम में। -ठाण. अ.२, उ. २, मु. १६३ १०-असोग्ना गं अंते । केवलिस वा-जाव-तप्पक्लिष- प्र.-मन्ते ! केवलि से-यावत्-केवलिपाक्षिक उपा
उवासिपाए या केवलेणं संवरेणं संधरेग्जा? सिका से बिना सुने कोई जीव संवर आराधन कर सकता है? २०-गोयमा ! असोच्चा णं केवपिस्स या-जाब-तप्पक्षिय- ०-गौतम ! केवलि से यावत् – केवलिपाक्षिक उपा
उवाप्तियाए वा अस्थेगत्तिए फेवलेण संवरेणं संबरेश्जा, सिका से सुने बिना कई जीव संवर आराधन कर सकते हैं और
अल्पेगत्तिए केवलेणं सवरेणं मोसंबरेज्जा। कई जीव संवर आराधन नहीं कर सकते हैं। ५०-से केपट्टणं भंते । एवं बह
प्रा-भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता हैअसोचा नं केलिस्स या-जाव-तप्पविखपउवासियाए केबलि से-पायल केवलि पाक्षिक उपासिका से सुने रिना बा अरयेगत्तिए केवलेणं संवरेण संवरेज्जा, आवेत्तिए कोई एक जीव संबर आराधन कर सकता है और कोई जीव केवले संवरेणं नो संबोजा?
संवर आराधन नहीं कर सकता? रा-गोयमा ! जस्स पं अजमवसापावरणिज्जाणं कम्माणं 30-गौतम ! जिसके अध्यवसानावरणीय कमों का आयो.
जोवसमे करे प्रबह से पं असोच्चा फेवलिस्स पर पशम हुआ है वह केवलि से-यावत-केवलि पाक्षिक उपासिका -जाव-तपस्वियउवासियाए वा केवलेणं संबरेणं संव- से सुने बिना संबर आराधन कर सकता है। रेक्सा ।
१ ठाणं, अ.२, उ०१, सु.६१