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[१९] मरणानुयोग
(ख) जं च मे पृथ्मो का सम्मं सुण बेसा । ताई पाउकरे बुझे, तं नाणं जिणसासणे ॥
किरियं च रोयए धीरे, अकिरियं परिवज्जए । विट्ठीए विद्विसम्पन्ते धम्मं वर सुदुच्चरं ॥
एवं पुष्णपर्य सोचा, अस्य मोसोहिये। भरो व भावानं साकामा पयए ।।
सगरो दि सागरन्तं भरह्वा नरः हिवो इस्सरियं केवलं हिच्चा, दयाए परिनिबुडे ||
चामारा, नश्वट्टी हिडिओ
म
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म नाम महाजो || सकुमारी मणुस्सियो, चक्कनट्टी महिडिओ । पुतं रज्जे विसानं, सो व या तवं धरे ॥ पदता भार वास, चनकट्टी महिम सन्ती सन्तिकरे लोए, पत्तो गमनुत्तरं ॥
मखागरायवसभो , कुन्यु नाम विद्यायको धिमं पत्तो सागरन्तं जहित्ताणं, भरहं हितार्थ भरहं असे अर पत्तो पत्तो
नराहियो । मरं ॥
नरवरीसरो । सरं ॥
इत्ता भारहं वासं चक्वट्टो नराहिओ ।
इत्ता उत्तमे मोए महापजमे तवं परे ।। एगच्छसं पसाहिता, महि माणनिसूरणरे । हरिसेणो मस्तिन्वो पत्तो मरं ॥
अनिओ र तोहि सुपरवाई जो
पत्तो
परे गद्दमत्तरं ॥
दसणरज्अं मुह, पत्ता मुणी परे णमो विश्वस्तोओ ।।
नमी गमे अध्या, सवं सबकेण चोइजो चऊ गेहं यदेही सामणे पज्जुवडिओ ॥
करकण्डू कलिगे, पंचालेसु य बुभ्नुहो । नमो राया विदेहेसु गन्धारेसु प माई ॥
मैत्री भावना
सूत्र २१६
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(ख) 'जो तुम मुझे सम्यक् शुद्ध चित्त से काल के विषय में पूछ रहे हो, उसे बुद्ध- सर्वेश ने प्रकट किया है। अतः वह ज्ञान विद्यमान है।"
"धीर पुरुष किया में रुचि रखे और अनिया का त्याग करे । सम्यदृष्टि से दृष्टिनम्पन्न होकर तुम दुश्चर धर्मं का आचरण करो ।
और धर्म मे उपयोजित इस पुण्यपद (पवित्र उदेश ब) को सुनकर भरत भवतीं भारत और कामभोगादि का परित्याग कर प्रब्रजित हुए थे।"
"सागर चक्रवर्ती सागर पन्त भारतवर्ष एवं पूर्व ऐश्वर्य को छोड़कर दया अर्थात् संयम की साधना से परिनिर्वाण को प्राप्त हुए।"
"महान् ऋद्धि-सम्पन्न महान यशस्वी मघवा नामक चकवर्षों से भारतवर्ष को छोड़कर स्वीकार की ।"
"महान् द्धिसम्म मनुष्येन्द्र सनरकुमार च को राज्य पर स्थापित कर तप का आचरण किया।"
महान् ऋद्धि-सम्पन्न और लोक में शान्ति करने वाले शान्तिनाथ ने भारतवर्ष को छोड़कर अनुत्तर नति प्राप्त की।"
"इक्ष्वाकु कुल के राजाओं में श्रेष्ठ नरेश्वर, विख्यातकीति, धृतिमान्नाथ ने अनुत्तर गति प्राप्त की।"
"सागरपर्यन्त भारतवर्ष को छोड़कर कर्म-रज को दूर करके नरेश्वरों में श्रेष्ठ "अर" ने अनुतर गति प्राप्त की ।"
"भारतवर्ष को छोड़कर, उत्तम भोगों को त्यागकर "महापद्मवर्ती ने तप का आचरण क्रिया ।"
"शत्रुओं का मानमर्दन करने वाले हरिषेण चक्रवर्ती ने पृथ्वी पर एकछत्र शासन करके फिर अनुसार गति प्राप्त की ।"
"हजार राजाबों के साथ श्रेष्ठ त्यागी जय चक्रवर्ती ने राज्य का परित्याग कर जिन भाषित दम (संयम) का आचरण किया और अनुत्तर गति प्राप्त की ।"
"साक्षात् देवेन्द्र से प्रेरित होकर दमा-भद्र राजा ने अपने सब प्रकार से प्रमुदित दशार्ण राज्य को छोड़कर प्रव्रज्या ली और मुनि-धर्म का आचरण किया।"
"साक्षात् देवेन्द्र से प्रेरित होने पर भी विदेह के शब्दा शनि श्रामण्य धर्म में भविथति स्थिर हुए और अपने को अति नम्र बनाया ।"
"कलिंग में करकण्डु पांचाल में दिमुल, विदेह में नवि राजा और गन्धार में नग्गति