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चरणानुयोग
सम्मार्ग-उम्मार्ग का स्वरूप
सूत्र २९१-२६३
जे य वुढा अतिकता,
जो बुद्ध (केवलज्ञानी) अतीत में हो चुके हैं, और जो बुद्ध जेय बुद्धा अणागता। भविष्य में होंगे, उन सबका आधार (प्रतिष्ठान) शान्ति ही संति तेसि पतिढाणं,
(कषाय-मुक्ति या मोक्ष रूप भाव मार्ग) है, जैसे कि प्राणियों का भूयाणं जगसी जहा ॥ जगती (पृथ्वी) आधार है। अहणं बतमाषण,
अनगार धर्म स्वीकार करने के पश्चात् साधु नाना प्रकार फासा उच्चावया फुसे। के अनुकूल प्रतिकूल परीषह और उपसर्ग स्पर्श करे तो साधु म तेमु पिणिहणज्जा,
उनसे जरा भी विचलित न हो, जैसे कि महावात से महागिरिबर वातेणेव महागिरी॥ मेह कभी विचलित नहीं होता। संडे से महापणे,
___ आश्रवद्वारों का निरोध (संबर) किया हुआ वह महाप्रज्ञ धीरे बसणं चरे। धीर साधु दूसरे (गृहस्य) के द्वारा दिया हुआ एषणीय-कल्पनीय निरे कालमाकखी,
आहार ही ग्रहण (सेवन) करे। तथा शान्त (उपशान्त कषाय एवं केमिणो मयं । निवृत्त) रहकर (अगर काल का अवसर आए तो) काल (पण्डित-सूप. सु. १, अ. ११, गा. ३२-३८ मरण या समाधिमरण) की आकांक्षा (प्रतीक्षा) करे, यही केवली
भगवान् का मत है। सुमगा-उम्मग्य सहवं
सन्मार्ग-उन्मार्ग का स्वरूप-- २६२. कुष्पहा यहयो लोए, जेहिं नासन्ति अंतवो। २६२. "गौतम ! लोक में कुमार्ग बहुत हैं, जिससे लोग भटक
अज्ञागे कह वट्टम्ते, तंन नस्ससि गोयमा ! ॥ जाते हैं । मार्ग पर चलते हुए तुम क्यों नहीं भटकते हो ?" जेय भागेण गमछन्ति, वे य उम्मग्गपट्टिया ।
"जो सन्मार्ग से चलते हैं और जो उन्मार्ग से चलते हैं, ते सव्वे विहया माने, तो न नस्सामहं मुणी! ॥ उन सबको मैं जानता हूँ। अतः हे मुने ! मैं नहीं भटकता हूँ।" मगोयबाचे वृत्त ? केसी गोयममनवी।
"मार्ग किसे कहते हैं ?" केशो ने गौतम को कहा। फेसिमेव बुवंत तु, गोयमो इणमस्यबी॥
केणी के पूछने पर गौतम ने यह कहा - कुष्पवयण - पासण्डी, सम्वे. उम्मग्गपट्टिणा।
"मिथ्या प्रवचन को मानने वाले सभी पाषण्डी-ती लोग सम्मगं तु जिणक्खाय, एस मग्गे हि उत्तमे ।। उन्मार्ग पर चलते हैं। सन्मार्ग तो जिनोपदिष्ट है, और यही
-उत्त. अ.२३, गा.६०-६३ उत्तम मार्ग है।" मोक्खमग्ग जिपणासा
मोक्षमार्ग जिज्ञासा२९३. कयरे मरगे अक्खाते, माहणेण मतीमता। २६३. अहिंसा के परम उपदेष्टा (महामाहन) केवलज्ञानी (विशुद्ध मग उज्जु पावित्ता, मोहं तरति युत्तर ॥ मतिमान) भगवान महावीर ने कौन सा मोक्षमार्ग बताया है।
जिस सरल मार्ग को पाकर दुम्तर संसार (ओघ) को मनुष्य
पार करता है ? तं मग्न अत्तरं युख, सम्पदुक्ख विमोक्खणं ।
हे महामुने ! सब दुःखों से मुक्त करने वाले शुद्ध और अनुखाणासि णं जहा भिक्षु, संमे हि महामुणी ॥ सर (सर्वश्रेष्ठ) उस मार्ग को आप जैसे जानते हैं, (कृपया) बह
हमें बताइये। माणे के पुलिछज्जा, देवा भव माणसा ।
यदि कोई देव अथवा मनुष्य हमसे पूछे तो हम उनको कोन तेसि तु कतरं मागं, आइक्लेम कहाहि ॥ सा मार्ग बताएँ ? (कृपया) यह हमें बताइये । गायो के पुच्छिज्जा, देवा अवुन माणसा।
यदि कोई देव या मनुष्य तुमसे पूछे तो उन्हें यह (आगे सेसिमं पहिसाहेज्जा, मागसारं सुह मे ॥ कहा जाने वाला) मार्ग बतलाना चाहिए। यह साररूप मार्ग
तुम मुझसे सुनो।