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________________ १७] चरणानुयोग एकान्त मानवादी सूत्र २७४-२७६ वाहिण-गामि पोरइए, काहपरिखए, आगमेस्साणं-जाब- वह दक्षिण-दिशा-स्थित घोर नरकों में जाता है, वह कृष्ण बुलाबीहिए यादि भवति । पाक्षिक नारकी आगामी काल में-यावत-दुर्लभबोधि वाला होता है। सेतं अकिरिया-वाईयावि भवा । उक्त प्रकार का जीव अत्रियावादी है। -दसा. द.६, सु. १२-१४ एगंतणाणवाई एकान्त ज्ञानवादी--- २७५. कल्लाणे पावए वा वि, २७५. यह व्यक्ति एकान्त कल्याणवान् (पुण्यवान्) है, और यह यवहारो ग विज्ञई। एकान्त पापी है, ऐसा व्यवहार नहीं होता, (तथापि) बालपण्डित बेरं तं न जाणंति. (सद-असद्-विवेक से रहित होते हुए भी स्वयं को पति मानने समणा बालपंचिया ॥ वाले) (शाक्य आदि) श्रमण (एकान्त पक्ष के अवलम्बन से उत्पन्न होने वाले), वर (कर्मबन्धन) नहीं जानते । असेसं अक्खयं वा वि, जगत् के अशेष (समस्त) पदार्थ अक्षय (एकान्त नित्य) है, सम्वनुक्खे ति वा पुणो। अथवा एकान्त अनित्य हैं, ऐसा कथन (प्ररूपण) नहीं करना बज्क्षा पाणा न बज्म त्ति, चाहिए, तथा सारा जगत् एकान्त रूप से दुःस्वमय है, ऐसा वचन इति वायं न नीसरे ॥ भी नहीं कहना चाहिए एवं अमुक प्राणी बध्य है, अमुक अवश्य है, ऐमा वचन भी साधु को (मुंह से) नहीं निकालना चाहिए । वीसंति समियाचारा, साधुतापूर्वक जीने वाले, (शास्त्रोक्त) सम्यम् आचार के भिक्षणो साहुजीवियो। परिपालक निर्दोष भिक्षाजीवी साधु दृष्टिगोचर होते हैं, इसलिए एए मिच्छोवजीवि ति, ऐसी दुष्टि नहीं रखनी चाहिए कि ये साधुगण कपट से जीविका इति बिढि न धारए ॥ (जीवननिर्वाह करते हैं। दमिखणाए पडिलंभो, ___ मेधावी (विवेकी) साधु को ऐसा (भविष्य) वन नहीं करना अस्थि नस्थिति वा पुणो। चाहिए कि दान का प्रतिलाभ अमुक से होता है, अमुक से नहीं म वियागरेम्स मेहावी, होता, अथवा तुम्हें आज मिक्षा-लाभ होगा या नहीं ? किन्तु संतिममा च व्हए। जिससे शान्ति की वृद्धि होती हो, ऐसा वचन कहना चाहिए। ...सूम. सु. २, अ. ५, गा. २६.३२ भणन्ता अकरेन्ता य, "ज्ञान से ही मोक्ष होता है"-जो ऐसा कहते हैं, पर उसके बन्धमोक्खपापिणो । लिए कोई क्रिया नहीं करते, वे केवल बन्ध और मोक्ष के सिद्धांत बायाविरिपमेण की स्थापना करने वाले है। वे केवल वाणी की वीरता से अपने समासान्ति अप्पयं ।। आपको आश्वासन देने वाले हैं। न चित्ता तायए मासा, विविध भाषाएँ प्राण नहीं होती। विद्या का अनुशासन भी कओ विजाणुसासगं । कहाँ त्राण देता है ? (जो इनको त्राण मानते हैं वे अपने आपको विसमा पावकम्मेहि पण्डित मानने वाले अज्ञानी मनुष्य विविध प्रकार से पाप कर्मों वाला पंडियमाणिणो ॥ में डूबे रहते हैं। - उत्त. अ. ६, गा. ६-१० अण्णाणवायं-- अज्ञानवाद२७६. जविणो मिगा जहा संता परिताणेण वज्जिता । २७६. जैसे परित्राण-संरक्षण से रहित अत्यन्त शोन भागने वाले - असंकियाई संकति संकियाई असकियो । मृग शंका से रहित स्थानों में शंका करते हैं और शंका करने योग्य स्थानों में शंका नहीं करते।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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