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सूत्र २७४
अत्रियावादी का मिथ्यादा प्रयोग
वर्शनाचार
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ओसन्न संभार-कडेण कम्मुण्णा । से जहानामए- प्रायः स्वकृत कर्मों के भार से; जैसे, अयगोले दवा, सेलगोले हवा उवयंसि परिखते समागे लोहे का गोला या पत्थर का गोला जल में फेंका जाने पर उग-सलमहसिसा अहे धरणि-तले पहाणे भवा जल-तल का अतिक्रमण कर नीचे भूमि-तल में जा पैठता है, एषामेव सहप्पगारे पुरिसजाए वज्ज-बहुले, धुण्मा-बहुले, वैसे ही उक्त प्रकार का पुरुषवर्ग बनवत् पाप-बहुल, क्लेशपंक बटुले, वेर-बहुले बंभ-नियडि-साइ-बहुले, आसायणा- बहुल, पंक-बहुल, बैर-बहुल, दम्भ-निकृति-साति-बहुल, आशाबहुले, अयस-बहले, अधत्तिय बहुसे
तना-बहुल, अयश-बहुल, अप्रतीति-बहुल होता हुआ, ओस्सण्णं तस पाण-घाती कालमासे झालं किन्चा घरणि- प्रायः स प्राणियों का पात करता हुओ कालमास में काल सलमयत्तित्ता अहे नरग-धरणितले पहाणे भवइ । इम भूमि-तल का अतिक्रमण कर नीचे नरक भूमि-तल में जाकर
(मरण) करके प्रतिष्ठित हो जाता है। ते गंगरगा
ये नरकअंतो बट्टा, बाहि चरंसा, अहे-खुरप्पसंठाग-संहिआ, भीतर से वृत्त (गोल) और बाहिर चतुरस् (चौकोण) हैं, निच्चंधकार-तमसा,
नीचे झुरण (क्षुरा-उस्तरा) के आकार से संस्थित है, नित्य घोर
अन्धकार से व्याप्त है, ववगय-गह-यव-सूर-णखस-जोस पहा,
और चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र इन ज्योतिषकों की प्रभा से
रहित हैं, भेद वसा-मंस-बहिर पूय-पउल-चिक्खल - लिताणुलेवण- उन नरकों का भूमितल मेद-बसा (पी), माम, रुधिर, पुय तला,
(विकृल रक्त पीत्र), पटल (समूह) सी कीचड़ से लिप्त-अति
लिप्त है। असुइबिस्सा, परमवुम्मिगंधा,
वे नरक मल-मूत्रादि अशुचि पदार्थों से भरे हुए है, परम
दुर्गन्धमय हैं, का उय-अगणि-वण्णाभा, कक्खाइ-फासा पुरहियासा। काली या कपोत वर्ण वाली अग्नि के वर्ग जैसी आभा वाले
हैं, कर्कश स्पर्श वाले हैं, अतः उनका स्पर्श असह्य है, अमुमा नरगा। अभुभा नरएसु वेपणा ।
वे नरक अशुभ हैं अतः उन नरकों में वेदनाएँ भी अशुभ ही
होती हैं। मो चेव ण णरएसु नेरइया महायति वा, पयलायति उन नरकों में नारकी न निद्रा ही ले सकते हैं और न ऊंच वा, मुईया रई वा, घिई था, मह वा उवलभति। ही सकते हैं। उन्हें स्मृति, रति, धृति और मति उपलम्ध नहीं
होती है। से गं तत्थ
वे नारकी उन नरकों मेंउज्जल, बिउलं पगाद, कक्कस, कडु, वंडं, दुक्खं उज्ज्वल, विपुल, प्रगाढ़, कर्कश, कटुक, खण्ड, रौद्र दुःखकुग्ग, तिखं, निहवं पुरहियास नरएम रहया नरय- मय तीक्ष्ण, तीन दुःसह नरक-वेदनाओं का प्रतिसमय अनुभव मेयणं पच्च गुभवमाणा विहरति ।
करते हुए विचरते हैं। से जहानामए रुमसे सिया पठ्यया जाए, मूसमिछन्ने, जैसे पर्वत के अग्रभाग (शिखर) पर उत्पन्न वृक्ष मूल भाग अग्गे गहए,
के काट दिये जाने पर उपरिम भाग के भारी होने से जओ निम्नं, जो दुग्गं, जो विसमं तो पबति । जहाँ निम्न (नीचा) स्थान है, जहाँ दुर्गम प्रवेश है और एवामेव तहप्पगारे पुरिसजाए गम्भाओ गम्भ, जम्माओ जहाँ विषम स्थल है वहाँ गिरता है, इसी प्रकार उपयुक्त प्रकार जम्म, मारओ मार, बुक्खाओ दुषखं
का मिश्वास्वी पोर पापी पुरुष वर्ग एक गर्भ से दूसरे गर्भ में, एक जन्म से दूसरे जन्म में, एक मरण से दूसरे मरण में, और एक दुःख से दूसरे दुःख में पड़ता है।