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घरणयोग
विवाद कर दिया प्रयोग
सहवाओ
---लि-सोपा संदभाणिया सणास पण जाणवाहण मोयण पबित्थर विहिनो अविर जीवा
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साओ आवहत्य-गो महिल-गवेल-मे बाद दासीअविर जीए
साओ कम-विकासासरूपसंहाराओ अव्यतिरिए जावज्जोवाए
सदवाओ हिरण्या सुयण्ण घण धनमणि- मोत्तिय संखविडिवर जावजीबाए
सध्या तुकूमाणाओ अप्पतिविरए जायजोगाए
आरम्भ-समारंभाओ अदिविए जावनी
वाए; साओ पण पायणामी अपविविए जावोवाए
राज्याकरण-करायणाओ अविर जीवा
सम्मान पिट्टणाओ जताया हु परिकिसान अपडिरिए जावज्जीयाए;
जे पावणे हत्यारा सावज्जा नबोहिया कम्मा पर पाण-परियावण कडा कज्जति ततो वि य अपडिविरए जावजीबाए।
सूत्र २७४
वह सर्वप्रकार के शकट, रथ, यान, युग, गिल्ली, दिल्ली, शिविका, स्यन्दमानिका, शयन्दासान, यात, बाहन, भोजन और प्रविष्टर विधि (गृह-सम्बन्धी वस्त्र - पात्रादि) से यावज्जीवन प्रतिविरत रहता है। (अर्थात् सभी प्रकार के पंडियों के विषय सेवन में अति आसक्त रहता है, सभी प्रकार की सवारियों का उपभोग करता है और नाना प्रकार के गृह-सम्बन्धी वस्त्र, आभरण, भोजनादि का संग्रह करता रहता है ।)
वह मिध्यादृष्टि सर्व हस्ती (गाव) ह (भैंस पाड़ा), गबेलक ( बकरा-बकरी), मेष ( भेड़- मेषा), दास, दासी और कर्मकर ( नौकर-चाकर आदि) पुरुष-समूह से यावज्जीवन रूपतिविरत रहता है।
वह सर्व प्रकार के क्रय (खरीद) विक्रय (विकी) माषाभाष ( मासा, आधाणासा) संयवहार से जीवित
रहता है।
मह सर्व हिरण्य (चांदी) सुवर्ण, धन-धान्य, मणि-भौतिक, (ग) से विरत रहता है। मला मान हीनाधिका से बाबजीयन अतिविरत रहता है।
के
वह सर्व आरम्भ समारम्भ से यावज्जीवन अप्रतिविरत रहता है।
यह सर्व प्रकार के पचन-पाचन से सावज्जीवन अप्रतिविरत रहता है।
यह गई कार्यों के करने-कराने से जीवन अप्रतिविरत रहता है।
यह सर्वप्रकार के कुटने-पीटने से सर्जन सान बन्ध और परिक्लेश से यावज्जीवन अप्रतिविरत रहता है।
या जितने भी उक्त प्रकार के साथ (पापयुक्त) अबोधिक ( मिथ्यात्ववर्धक ) और दूसरे जीवों के प्राणों को परितापाने वाले कर्म किये जाते है उनसे भी वह यावज्जीवन अविवरत रहता है। अर्थात् उक्त सभी प्रकार के कार्यों एवं आरम्भ समारम्भों में संलग्न रहता है ।
( वह मिथ्यादृष्टि पापात्मा किस प्रकार से उक्त पाप-कार्यो के करने में लगा रहता है, इस बात को एक दृष्टान्त द्वारा स्पष्ट करते हैं)