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सूत्र २७४
• अक्रियावादी का मिश्यादा प्रयोग
बर्शनाचार
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से अहानामए के पुरिसे कलम-मतर-तिल-मूंग-मास- जैसे कोइ पुरुष कलम (धान्य), मसूर, तिल, मूंग, माष निष्फाव-कुलत्थ-आलिसवग-सेसीणा हरिमंथ जवजवा (उड़द) निष्पाव (बालोल, धान्यविशेष) कुलत्थ (कुलथी) आलिएवमाइएहि अयते करे मिरछा व पउंजद । सिंदक (चवला) सेतीणा (तुवर) हरिमन्थ (काला चना) जब
जत्र (जवार) और इसी प्रकार के दूसरे धान्यों को बिना किसी यतना के (जीव-रक्षा के भाव बिना) क्रूरतापूर्वक उपमर्दन करता हुमा मिथ्यादण्ड प्रयोग करता है, अर्थात् उक्त धान्यों को जिस प्रकार खेत में लुनते, खलिहान में दलन-मलन करते, मूमल से उखली में कूटते, चक्की से दलते-पीसते और चूल्हे पर रांघते
हुए निदेय व्यवहार करता है। एषामेव तहप्पगारे परिसजाए तित्तिर-वग-लायग- उसी प्रकार कोई पुरुष-विशेष तीतर, बटेर, लावा, कबूतर, कणेत-कपिजल-मिय-महिस-वाराहनगाह-गोह-कुम्मसरी- कपिजल (कुरज-एक पक्षि विशेष) मृग, भंसा, वराह (सूकर), सिचाविहि अयते करे मिच्छा दंड पउजड़। ग्राह (मगर), गोधा (गोह, गोहा), कठुआ और सर्प आदि
-दसा. द. ६, सु. ७.६ निरपराध शणियों पर अयतना से करतापूर्वक मिथ्यादण्ड का
प्रयोग करता है, अर्थात् इन जीवों के मारने में कोई पाप नहीं
है, इस बुद्धि से उनका निर्दयतापूर्वक घात करता है। (ग) जावि य से बाहिरिया परिसा भवति, तं जहा- (ग) उस मिथ्यादृष्टि को जो बाहरी परिषद् होती है. जैसे
दासे इ वा, पेसे दवा, भिलए दवा, भाहरूले था, दास (श्रीत किंकर) प्रेष्य (दत) भृतक (वेतन से काम करने कम्मफरे ६ वा, भोगपुरिसे इवा,
वाला) भागिक (भागीदार कार्यकर्ता) कर्मकर (घरेलू काम करने तेसि पि य अण्णयरगंसि अहा-सहयंसि अबराहसि वाला) या भोग' पुस्प (जसके उपाजित धन का भोग करने सयमेव गहयं बड निवतैति । तं जहा
बाला) आदि, उनके द्वारा अतिलघ गराध के हो जाने पर
स्वयं ही भारी दण्ड देने की आज्ञा देता है। इम बडेह, धर्म मुव्ह, इमं तह, इमं तालेड, मं जैसे--(हे पुरुषो), इसे डण्डे आदि से पीटो, इसका शिर अंदुप-बंधर्ण करेह, इम नियम-यंधणं करेह, इमं हडि- मुंडा डालो, इसे तजित करो, इसे थप्पड़ लगाओ, इसके हायों बंधणं करेह, इमं चारग-वंधणं करेह, इमं निथल-जुपल- में हथकड़ी डालो, इसके पैरों में बेड़ी डालो, इसे खोडे में डालो, संकोडिय-मोधियं करेह, इमं हछिन्नयं करेह, इमं इसे कारागृह (जेल) में बन्द करो, इसके दोनों पैरों को सांक पाय-छिन्नयं करेह, हम कण-छिन्नयं करेह, इमं नक्क- से कसकर मोड़ दो, इसके हाथ काट दो, इसके पर काट दो, छिन्नयं करेह, इम सीसछत्रयं करेह, इमं मुख-छिन्नये इसके कान काट दो, इसकी नाक काट दो, इसके ओठ काट दो, करेह, इमं वेय छिन्नयं करेह, इमं छिन्नयं करेह, इमं इसका शिर काट दो, इसका मुख छिन्न-भिन्न कर दो, इसका हियउप्पाडियं करेह
पुरुष-चिन्ह काट दो, इसका हृदय-विदारण करो। एवं नयण-बसण-बसण-वदण-जिम्म-उपाडियं करेह, हम इसी प्रकार इसके नेत्र, वृषण (अपएकोष) दशन (दति) उल्लंबियं करेह, इमं घासिय, इमं घोलियं, इमं सला. बदन (मुख) और जीभ को उखाड़ दो, इसे रस्सी से बांधकर इयं, इमं मूलाभिन्द, इम खारवत्तिय करेह, इमं दम- वृक्ष आदि पर लटका दो, इसे बांधकर भूमि पर घसीटो, इसका बत्तिय करेह, इमं सीह-पुक्छयं करेह, इस वसमपुछयं दही के समान मन्धन करो, इसे शूली पर चढ़ा दो, इसे त्रिशूल करेह, इमं दाग्गि-वयं करेह, हम काकणी मंस-खावियं से भेद दो, इसके शरीर को शस्त्रों से छिन्न-भिन्न कर उस पर करेह इमं भत्तपाण-निरमायं करेह इमें जावज्जीव- क्षार (नमक, सज्जी, मादि नारी वस्तु) भर दी, इसके घावों में बंधणं करेह, इस अनतरेणं असुभ-कुमारेषं मारेह। डाभ (तीक्ष्ण घास कास) चुभाओ, इसे सिंह की पूंछ से बांधकर
छोड़ दो, इसे देषभ सांड की पूंछ से बांधकर छोड़ दो, इसे दावाग्नि में जला दो, इसके मांस के कौड़ी के समान टुकड़े बना कर काक-गिद्ध आदि को खिला दो, इसका खान-पान बन्द कर
दो, इसे यावजीवन बन्धन में रखो, इसे किसी भी अन्य प्रकार .. ' . ' की कुमौत से मार डालो।
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