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________________ भक्रियावादी का मिण्यार प्रयोग नाबार ११ अकिरिवाइस्स मिच्छावंडापओगो अक्रियावादी का मिथ्यादण्ड प्रयोग -- २४. (क) 1. सध्यानो पाणाहवायाओ अप्पडिविरए जावज्जो- २७४. (क) वह यावज्जीवन सर्व प्रकार के प्राणातिपात (जीववाए, घात) से अप्रतिविरत रहता है अर्थात् सभी प्रकार की जीव हिंसा करता है, २. सध्यायो मुसाबायाओ अप्पडिदिरए भावज्जीवाए, २. यावज्जीवन सर्वप्रकार के मृषावाद से अप्रतिदिरत रहता है, ३. सम्वामी अविनाराणाओ अप्पडिविरए जायजी- ३. यावज्जीवन सर्वप्रकार के अदत्तादान से अप्रतिविरत रहता है, ४. सम्याओ मेंडगाओ अपडिविरए जावज्जीयाए, ४. यावज्जीवन सर्वप्रकार के मयन-सेवन से अप्रतिविरत जाए, ५. सम्याओ परिगहामो अपडिविरए भावज्जीवाए, ६. सम्वाओ कोहाओ अप्पडिविरए जाकम्जीवाए, ७. सव्वाओ माणाओ अप्पडिविरए जावज्जीवाए, ८. सावाओ मायामओ अपरिविरए जावज्जीयाए, १. सम्याओ सोमाभो अप्पडिविरए जावज्जीवाए, १.. सखाओ पेक्जाओ अच्पतिविरए भावज्जीवाए, ५. यावज्जीवन सर्वप्रकार के परिग्रह से अप्रतिविरत रहता है अर्थात् त्याग नहीं करता है, ६. यावज्जीवन सर्वश्कार के कोध से अप्रतिविरत रहता है, ७. यावज्जीवन सर्वप्रकार के मान से अप्रतिविरत रहता है, ८. यावज्जीवन सर्वप्रकार के माया से अप्रतिविरत रहता है, ९. यावज्जीवन सर्वप्रकार के लोभ से अप्रतिविरत रहता है, १०. यावज्जीवन सर्वप्रकार के प्रेय (राग) से अप्रतिविरत रहता है, ११. यावज्जीवन सर्वप्रकार के देष से अप्रतिविरत रहता है, १२. यावज्जीवन सर्वप्रकार के कलह से मप्रतिविरत ११. सल्वाओ दोसाओ अप्पडिविरए भायज्जीवाए, १२. सच्चाओ कलहाओ अपरिषिरए जायज्जीवाए, १३. सम्वाओ अम्मक्खाणाओ अपडिविरए जाधज्जीयाए, १३. पावज्जीवन सर्वप्रकार के अभ्याख्यान से अप्रतिविरत रहता है, १४. सव्वानो पिसुण्गाओ अपरिधिरए जावज्जीवाए, १४. यावज्जीवन सर्वप्रकार के पंशुन्य से (चुगली करने से) अप्रतिविरत रहता है, १५. सन्चाओ परपरिवायाओ अपरिखिरए जावजीवाए, १५. यावज्जीवन सर्वप्रकार के पर-परिवाद (लोगों का पीठ पीछे अपवाद) करने से अप्रतिविरत रहता है, १६. सम्बाओ अरह रह अपरिविरए जावज्जोवाए, १६. यावज्जीवन सर्वप्रकार की रति (इष्ट पदार्थों के मिलने पर प्रसन्नता) और अरति (इष्ट पदार्थों के नहीं मिलने पर अप्रसन्नता) से अप्रतिविरत रहता है, १७. सव्वाओ मायामोसाओ अप्पडिषिरए जावज्जीवाए, १७. यावज्जीवन सर्वप्रकार की माया-मृषा (छलपूर्वक असत्य भाषण करने और वेष-भूषा बदलकर दूसरों को ठगने से) अप्रतिविरत रहता है, १८. सम्बाओ मिश्छादसणसल्लाओ अपरिषिरए जाब. १८. यावज्जीवन सर्वप्रकार के मिथ्यादर्शन शल्य से अप्रतिज्जीवाए। विरत रहता है अर्थात् जन्म भर उक्त पाप-स्थानों का सेवन -दसा.द. ६, सु. ६ करता रहता है। (a) सध्वामओ कसाय-चंतकटु-हाण-महा-विलेवण-सह- (ख) वह नास्तिक मिष्यावृष्टि सर्व प्रकार के कषाय रंग के फरिस - रस - रुव - संघमल्लालंकारामो अप्पडिगिरए वस्त्र, दन्तकाष्ठ (दातुन-दन्तधाधन) स्नान, मर्दन, विलेपन, शम्द, जामजीबाए, स्पर्श, रस, रूप, गन्ध, माला और अलंकारों (आभूषणों) से यावज्जीवन अप्रतिविरत रहता है।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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