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सूत्र २६५-२६८
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२. उसक्कत्ता,
२. सोम
४. डिम
५. मइसा,
-ठाणं. अ. ६, सु. ५१२
जे मिक्स परंपरा विपरिणतं वा सा
तं सेवमाने आवक चाम्मासयं परिहाराचं अनुवाद। - नि. उ. ११, सु. ७०-७१ (६४) अल्पउत्थियागं चउरो वाया२६७. सारि समोसरणाणिमाणि पावाया जाई पुढो वयंति। Parti अरियं विजयंति तयं. अण्णाणमाहं थमेव ॥ - सूय. सु. १, अ. १२. ग. १
किरियावा सडा२६८. ०-से किं तं किरिया बाई यावि भवति ? उ०- किरिया वाई, भवति ।
सं जहाहिं बाई, आहिय पण्णे, आहिय- बिट्ठी,
विपरीत प्ररूपणा का प्रायश्चित्त
६.
विवरीयपरूयणस्स पार्याच्छ-
२६६. जे मिव अध्याणं विप्परिया सेइ विपरिपातं वा साइज्जइ । २६६. जो भिक्षु अपनी विपरीत धारणा बनाता है, बनवाता है,
अनुमोदन करता है।
जो भिक्षु दूसरे की विपरीत धारणा बनाता है, बनवाता है, दाने वाले का अनुमोदन करता है।
सम्माबाई नियाई, संति पर लोगवादी,
पिरलो अस्थि मापा, अरिव विश अस्थि अरिहंता, अस्थि धनकवट्टी, अस्यि बलदेवर, अस्थि वासुदेवा,
अस्थि सुकष्ट-तुकडा म्याि सुधिया कम्मा सुचिमा फलामति
या कम्मा चिया फला भति
सफले कल्लाण-पाद,
पति जीवा
राजन देवा सिद्धी ।
दर्शनाurr १६७
(२) शास्त्रार्थ की पूर्ण तैयारी होते ही वादी को पराजित करने के लिए आगे आना ।
(३) विवादाध्यक्ष को अपने अनुकूल बना सेना, अथवा प्रतिवादी के पक्ष का एक बार समर्थन कर उसे अपने अनुकूल कर लेना ।
(४) शास्त्रार्थ की पूर्णता तैयारी होने पर विवादाध्यक्ष तथा प्रतिपक्षी की उपेक्षा कर देना ।
(५) विवादाध्यक्ष की सेवा कर उसे अपने पक्ष में कर लेना ।
(5) निर्णायकों में अपने समर्थकों का बहुमत कर लेना । विपरीत प्ररूपणा का प्रायश्चित -
वह भिक्षु गुरु चातुर्मासिक परिहार प्रायश्चित स्थान का पात्र होता है ।
अन्यतीथियों के चार वाद
२६७. परतीर्थिक मतवादी ( प्राजादुक) जिन्हें पृथक् पृथक् बतलाते हैं में चार समवसरण -- वाद या सिद्धान्त ये हैं- क्रियावाद, अक्रियावाद, तीसरा विनयवाद, और चोया अज्ञानवाद | क्रियावादियों की घड़ा-
२६८. प्र० - भगवन् ! क्रियावादी कौन है ?
उ०- जो अक्रियावादी से विपरीत आचरण करता है। यथा- जो आस्तिकवादी है, आस्तिकबुद्धि है, मास्तिक दृष्टि है,
सम्यवादी है, नित्य (मोक्ष) वादी है, परलोकवादी है, जो यह मानता है कि इह लोक है, पर लोक है, माता है, पिता है, अरिहंत है, चक्रवर्ती हैं, बलदेव हैं, वासुदेव हैं,
मुक्त और दुष्कृत रूम का फतवृति-विशेष होता है आचरित धर्म गुनफल देते हैं और उस पर कर्म अशुभ फल देते हैं,
कल्याण (पुष्म) और पाप फल-सहित हैं, अर्थात् अपना फल
देते हैं,
जीव परलोक में जाते भी है और आते भी है.
नारकी है-या- (तिबंध है, मनुष्य है) देव हैं और सिद्धि (मुक्ति) है। इस प्रकार मानने वाला आस्तिन कियावादी कहलाता है ।