________________
१६६]
चरणामयोग
विवार-शास्त्रार्थ के छह प्रकार
सन २६४-२६५
उरि च पास, मुरं च सूणियं च गिलासिणि।
(टूटापन, एक हाथ या पैर छोटा या एक बड़ा), (८) कुबड़ापन, वेवई पोढसप्पि च सिलिवयं मधुमेहाणि ।।
() उदररोग, (१०) मूकरोग (गूगाएन), (११) शोथ रोगसोलस एते रोगा अबखाया अणुपुष्यसो ।
सूजन, (१२) भस्मकरोग, (१३) कम्पनवात, (११) पीठगीपंगुता, (१५) श्लीपदरोग (हाथीपया) और (१६) मधुमेह ये
सोलह रोग क्रमशः कहे गये हैं। अह णं फुसंति आतंका कासा य असमंजसा ॥१७६।
इसक अनन्तर (शूल आदि मरणान्तक) आतंक (दुःसाध्य
रोग) और अप्रत्याशित (दुःखों के) स्पर्श प्राप्त होते हैं। मरणं तेसि समेहाए उववायं चयणं चम्चा
उन मनुष्यों की मृत्यु का पर्यालोचन कर उपपात और परिपागं च सपेहाए तं मुहि जहा तहा।
च्यवन को जानकर तथा कर्मों के विपाक (फल) का भलीभांति
विचार करके उसके यथातथ्य को सुनो। संति पागा अंधा समंसि पियाहिता ।
(इस संसार में) ऐसे भी प्राणी बताये गये हैं, जो अन्धे होते तामेव सह असई अतियच्च उच्चावचे फासे परिसंवेवेति ।। हैं, और अन्धकार में ही रहते हैं। वे प्राणी उसी को एक बार
या अनेक बार भोगकर तीव्र और मन्द स्पशों का प्रतिसंवेदन
करते हैं। युद्धेहिं एवं पवेविसं ।
बुद्धों (तीर्थकरी) ने इस तथ्य का प्रतिपादन किया है। संति पाणा वासगा रसगा उदए स्वयचरा आगासगामिणो (और भी अनेक प्रकार के) प्राणी होते हैं-से-वर्षज
(वर्षा ऋतु में उत्पन्न होने वाले मेंढक आदि) अथवा वासक (भाषालन्धि-सम्पन्न द्वीन्द्रियादि प्राणी), रसज-रस में उत्पन्न होने वाले अथवा रसग (रसज संशी जीव), उदक ..एकेन्द्रिय अप्कायिक जीव, या जल में उत्पन्न होने वाले कृमि या जलचर जीव,
आकाशगामी-नभचरपक्षी आदि। पागा पाणे फिलेसंति ।
थे प्राणी अन्य प्राणियों को कष्ट देते हैं। पास लोए महाभयं ।
तू देख, लोक में महान् भय है। बहुमुक्खा जंतवो।
मंसार में जीव बहुत ही दुःखी है। सत्ता काहि माणषा।
मनुष्य काम-भोगों में आसक्त हैं। अबलेण यहं गम्छति सरीरेण पभंगुरेण ।
इस निबंल शरीर को सुख देने के लिए अन्य प्राणियों के वध
की इच्छा करते हैं। अट्ट से बहुदुक्खे इति बाले पकुवति ।
वेदना से पीड़ित वह मनुष्य दुःख पाता है। इसलिए वह
अज्ञाती प्राणियों को कष्ट देता है। एते रोगे वह णचा आतुरा परिताबए ।
इन अनेक रोगों को उत्पन्न हुए जानकर आतुर मनुष्य
(चिकित्सा के लिए अन्य प्राणियों को) परिताप देते हैं। णालं पास । असं सवेतेहि ।
तू देख ! ये (प्राणिपातक-चिकित्साविधियाँ कर्मोदय जनित रोगों का शमन करने में पयप्ति (समर्थ नहीं है अतः इनसे तुमको
दूर रहना चाहिए। एतं रास मुणी ! महन्मया णातिवावेज कंचयं ।
मुनिवर । तू देख ! यह (हिंसामूलक चिकित्सा) महान् भय-आ. सु. १, अ... उ. १, सु. १५०-१५० रूप है। अत: किसी भी प्राणी का अतिपात-बध मत कर । छविहे विवादे
विवाद-शास्त्रार्थ के छह प्रकार२६५. शिवहे विवाने पाणसे, तं जहा
२६५. विवाद-शास्त्रार्थ छह प्रकार का कहा गया है, जैसे१. भोसकता
(१) वादी के तर्क का उत्तर ध्यान में न आने पर समय बिताने के लिए प्रकृत विषय से हट जाना ।