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________________ १६४] घरणानुयोग मिभ्यास्व के मेव-प्रभेव सूत्र २६०-२६१ मिथ्यात्व अज्ञान अनाचरण मिच्छादसणस्स मेयप्पभेया मिथ्यादर्शन के भेद प्रभेद२६०. मिच्छादसणे दुधिहे पन्नत्ते, तं जहा २६०. मिथ्यादर्शन दो प्रकार का कहा गया है, यथा--- अभिगहियमिच्छासणे व अभिग्रहिक (इस भव में ग्रहण किया गया मिथ्यात्व) और अभिगहियमिच्छावसणे चेय। अनाभिपहिक (पूर्व भवों मे आने बाला मिथ्यात्व) अभिगहियमिछासणे विहे पनि सं बहा आभिग्रहिक मिथ्यादर्शन दो प्रकार का कहा गया है यया-- सपज्जवसित चेव अपज्जवसिते चेत्र । सपर्यवसित (सान्त) और अपर्यवसित (अनन्त) एवमणमिहितमिच्छादसणे वि। अनाभिहिक मिथ्यादर्शन दो प्रकार का कहा गया हैसपज्जवसिते, अपज्जवसिते । सगर्यवसित और अपर्यवसित । -ठाणं. अ.२, उ. १, सु. ५६ मिच्छत्तस्स भयप्पभेया मिथ्यात्व के भेद प्रभेद२६१. तिविहे मिश्छते पण्णते, तं जहा २६१. मिथ्यात्व तीन प्रकार का कहा है, यथा--- अकिरिया, अविणए, अन्लाणे । (1) अक्रिया, (२) अधिनय, (३) अज्ञान । अकिरिया तिविहा पण्णत्ता, तं जहा.-- अक्रिया मिथ्याच तीन प्रकार का कहा है, यथापोगकिरिया, समुवारिया, अन्नाणांकरिया । (१) प्रयोगभिया, (२) समुदानक्रिया, (३) अज्ञानक्रिया। पओमकिरिया शिविहा पणता, तं महा प्रयोगक्रिमा तीन प्रकार की कही है, यथामणपयोगकिरिया, वइपओगकिरिया, (१) मनप्रयोग क्रिया, (२) वचनप्रयोगक्रिया, कायपोगकिरिया। (३) कायप्रयोगक्रिया। समुदागकिरिया सिविहा पाणता, तं जहा--- समुदान क्रिया तीन प्रकार की कही है, यथाअणंतरसमुदाणांकरिया,' परंपरसमुदाणफिरिया', (१) अनन्तर समुदानक्रिया, (२) परम्परा समुदानक्रिया, तमयसमुदाणकिरिया। (३) तदुभय समुदानक्रिया । अन्नाकिरिया तिथिहा पणत्ता, तं जहा - अज्ञान क्रिया तीन प्रकार की कही है, यथाभतिअनाकिरिया, , सुअनाणकिरिया, (१) मति-अज्ञान क्रिया, (२) श्रुत-अशान क्रिया, विभगअन्नाणकिरिया। (३) विभंग-अजान किया। अप्राणे तिविहे पणते, 'तं महा अज्ञान तीन प्रकार का कहा है, यथावेसण्णाणे, सवणाणे', भावण्णाणे । (१) देश अज्ञान, (२) सर्व अज्ञान, (३) भाव अज्ञान । ठाणं. अ३, उ.२.सु. ११३ १ प्रयोगक्रिया आत्मा को वीर्य-शक्ति के व्यापार को कहते है, मिथ्यात्वी जीव का प्रयोग असम्पक होने से अक्रिय कहा जाता है; और उससे जीव के कर्मबन्ध होता है। आत्मा की वीर्य-शक्ति का व्यापार मन, वचन और काया द्वारा व्यक्त होता है, इसलिए प्रयोगक्रिया के ये तीन भेद हैं। २ समुदानक्रिया-मन, वचन और काया के व्यापार से संचित कर्म रज का प्रकृतिबन्ध आदि रूप से अथवा देशघाति एवं सवं. घातिरूप से व्यवस्थित होना समुदान क्रिया है। ३ अनन्तर समुदान क्रिया-प्रथम समय में होने वाली क्रिया । ४ परम्परा समुदान क्रिया-द्वितीयादि ममयों में होने वाली क्रिया । ५ तदुभय समुदान क्रिया-प्रथमाप्रअम समयों में होने वानी किया । विविक्षित द्रव्य के एक देश को न जानना देश अज्ञान है । ७ विवक्षित अभ्य को सर्वथा न जानना सर्व अज्ञान है। ८ विवक्षित द्रव्य के पर्याय न जानना "भाव अज्ञान" है।-टीका
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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