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________________ धूत्र २४८-२४६ चौथा नियतिशयो की श्रद्धा का निरसन पर्शमाचार १५७ मायारो-जाव-विडिवातो, सम्वमेयं मिश्छा, शं एतं सहित आचारांग, सूचकृतांग से लेकर दृष्टिबाद तक, यह सब ण एवं आहताहितं । मिथ्या है, यह तथ्य (सत्य) नहीं है और न ही यह यथातथ्य (यथार्थ वस्तुस्वरूप का बोधक) है, (क्योंकि यह सब ईश्वरप्रणीत नहीं है। इमं सन्छ, इमं सहितं, हम आहत्तहितं, ते एवं सणं कुवति, यह जो हमारा (ईश्वरकर्तृत्ववाद या आत्माद्वैतवाद है) यह ते एवं सगं संठवेति, ते एवं सणं सोबटुयति, सत्य है, यह तथ्य है, यह ययालथ्य (यथाचं रूप से वस्तुप्रकाशक) है। इस प्रकार वे (ईश्वरकारणवादी या आत्माहतवादी) ऐसी संशा (मान्यता या विचारधारा) रखते, (या निश्चित करते हैं, वे अपने शिष्यों के समक्ष भी इसी मान्यता की स्थापना करते हैं, वे सभा में भी वे इसी मान्यता से सम्बन्धित युक्तियाँ मताग्रह पूर्वक उपस्थित (प्रस्तुत करते हैं)। तमेव ते तजातियं बुक्स जातिउदृन्ति सरणी पंजरं जहा। जैसे पक्षी पिंजरे को नहीं तोड़ सकता वैसे ही वे (पूर्वोक्त वादी) अपने ईश्वर-कर्तृत्ववाद या आत्मादतवाद को अत्यन्ताग्रह के कारण नहीं छोड़ सकते, अतः इस मत के स्वीकार करने से उत्पन्न (तज्जातीय) दुःख (दुःख के कारणभूत कर्मसमूह) को नहीं तोड़ सकते। ते गो (एस) विधिवेदेति तं जहा-किरिया दवा-जाब- वे (ईश्वरकारणवादी या आत्मा तवादी स्वमताप्रहप्रस्त अणिरए ति था। होने से) इन (आगे कहे जाने वाली) बातों को नहीं मानते जैसे कि—पूर्वसूबोक्त क्रिया से लेकर अनिरय (नरक से अतिरिक्त गति) तक हैं। एषामेव ते विरूपकवेहि कम्मसमारंभेहि बिस्वरवाई काम- वे नाना प्रकार के पापकर्मयुक्त (सावध ) अनुष्ठानों के द्वारा मोगाई समारंभित्ता भोषणाए एषामेव ते अणारिया विप- कामभोगों के उपभोग के लिए अनेक प्रकार के काम-भोगों का जिवाणा, तं सदहमाणा-जाव-इति ते जो हवाए गो पाराए, आरम्भ करते हैं। ये अनार्य (आर्यधर्म से दूर) हैं, वे विपरीत अंतरा कामभोगेसु विसण्णा । मार्ग को स्वीकार किये हुए है, अथवा भ्रम में पड़े हुए हैं। इस प्रकार के ईश्वरकर्तृत्ववाद में श्रद्धा-प्रतीति रखने वाले वे धर्मश्रद्धालु राजा आदिक उन मतप्ररूपक साधकों की पूजा-भक्ति करते हैं, इत्यादि पूर्वोक्त वर्णन के अनुसार वे ईश्वरकारणवादी न तो इस लोक के होते हैं न परलोक के। वे उभयभ्रष्ट लोग बीच में ही कामभोगों में फंसकर दुःख पाते हैं । तच्चे पुरिसज्जाते इस्सरकारगिए' ति अाहिते। यह तीसरे ईश्वरकारणवादी का स्वरूप कहा गया है। -सूय. शु. २, अ. १, सु. ६६१-६६२ चउत्थं णियइवाइय सद्दहण-णिरसणं चौथा नियतिवादी की श्रद्धा का निरसन२४६. अहावरे चउत्ये पुरिसजाते णियतिवातिए ति आहिज्जति। २४६. तीन पुरुषों का वर्णन करने के पश्चात् अब नियतिवादी नामक चौथे पुरुष का वर्णन किया जाता है। बह खलु पाईणं वा तहेव-जाव-सेगायतिपुत्ता वा, तेसि चणे इस मनुष्य लोक में पूर्वादि दिशाओं के वर्णन से लेकर राजा __ और राजसभा के सभासद सेनापतिपुत्र तक का वर्णन प्रथम १ ईसरेण कडे सोए पहाणाति तहावरे । जीवाजीव समाउत्ते मुह-दुक्ख समनिए। -सूय. सु. २, अ.१, उ. ३, गा. ६(६४)
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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