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________________ प्रथम तज्जीव-तत्शरोरवादी को श्रद्धा का निरसन रखनाचार [१३१ से महानामर फेद पुरिसे कोसीतो असि अभिनिवट्टिताणं जैसे-कि कोई व्यक्ति म्पान से तलवार को बाहर निकाल उपवसेज्जा---अयमाउसो | असो, अयं कोसीए, कर दिखलाता हुआ कहता है -"आयुष्मान् ! यह तलवार है, एवमेव णस्थि केह अभिनिवट्टित्ताणं उवदंसेति । अयमाउसो! और यह म्यान है।" इसी प्रकार कोई पुरुष ऐसा नहीं है, जो आता अयं सरीरे । शरीर से जीव को पृथक् करके दिखला सके कि "आयुष्मान ! यह तो आत्मा है और यह (उससे भिन) शरीर है।" से जहाणामए के पुरिसे मुंजाओ इसीयं अभिनिवट्टित्ताणं जैसे कि कोई पुरुष मुंज नामक धास से इषिका (कोमल उबदसेम्जा - स्पर्य शनी शलाका) को बाहर निकाल कर अलग-अलग बतला अयमाउसो ! मुंजो, अयं इसीया, देता है कि "आयुष्मन् ! यह तो मुंज है और यह इषिका है।" एवामेव नरिथ फेति जबर्दसत्तारो अयमाजसो ! आता इदं इसी प्रकार ऐसा कोई उपदर्शक पुरुष नहीं है, जो यह बता सके सरीरे। कि "आयुष्मान् ! यह आत्मा है और यह (उससे पृथक) शरीर है।" से जहाणामए केति पुरिसे मंसाओ अट्ठि अभिनिटट्टिसाणं से कोई पुख्य मांन से हड्डी को अलग-अलग करके रतला उखर्वसेज्जा देता है कि 'आयुष्मान् ! यह मांस और यह हड्डी है।" इसी अयमाउसो ! मंसे, अयं अट्ठी, तरह कोई ऐसा उपदर्शक पुरुष नहीं है, जो शरीर से आत्मा को एवामेव नत्थि केति उवदसतारो-अयमाउसो ! आया, इदं अलग करके दिखला दे कि "आयुष्मान् ! यह तो आरमा हैं और सरीरं। यह शरीर है।" से जहानामए केति पुरिसे करतलाओ आमलक अभिनिग्य- जैसे कोई पुरुष हथेली से आंबले को बाहर निकालकर ट्टिताणं जबर्दसेन्जा-- दिखला देता है कि "आयुष्मान् ! यह हथेली (करतल) है, और अयमाउसो ! करतले, अयं आमलए, यह आंवला है।" इसी प्रकार कोई ऐसा पुरुष नहीं है, जो शरीर एवामेव णस्थि केति उनसेतारो-अयमा उमो ! आया, इयं से आत्मा को पृथक करके दिखा दे कि "आयुष्मान् ! यह आत्मा सरीरं। है, और यह (उससे पृथक् ) शरीर है।" से जहाणामए केइ पुरिसे रहोओ णषणीय अभिनियट्टित्ता जैसे कोई पुरुष दही से नवनीत (मकम्वन) को अलग निकाल उपसेम्जा-. कर दिखना देता है कि "आयुष्मन् ! यह नवनीत है और यह अयमाउसो! नवनीतं. अयं दही, दही है।" इस प्रकार कोई ऐसा पुरुष नहीं है, जो शरीर से एबामेव नस्थि केति उवतारो जाच सरोरं। आत्मा को पृथक् करके दिखला दे कि "आयुष्मान् ! यह तो आत्मा है और यह गरीर है।" से जहानामए केति पुरिसे तिलहितो तेल्ले अभिनिवहिताणं जैसे कोई पुरुष तिलों से तेल निकालकर प्रत्यक्ष दिखला अपमाजतो! तेल्ले. अयं पिण्णाए, देता है कि 'आयुग्मन् ! यह तो तेत है और यह उन तिलों की उक्दंसेज्जा-- चली है." बसे कोई पुरुष ऐसा नहीं है, जो शरीर को आत्मा से एवाब-जाव-सरोरं। पृथक करके दिखा सके कि 'आयूष्मन् ! यह आम है, और यह उससे भिन्न शरीर है।" से महानामए केइ पुरिसे उक्खत्तो खोनरसं अभिनिवट्टिताणं जैसे कोई पुरुष व से उसका रस निकालकर दिखा देता है उवई उजा-अयमाउसो ! खोतरसे, अपं घोए, एवमेव कि "आपुष्मन ! यह ईत्र का रस हैं और यह उसका छिलका -जाव-सरीरं। है." इसी प्रकार ऐसा कोई पुरुष नहीं है जो शरीर और आत्मा को अलग-अलग करके दिखला दे कि "आयुष्मान ! यह आत्मा है और यह शरीर है।" से जहानामए के पुरिसे अरणीतो आँग अभिनिवत्ताणं जैसे कि को: पुरुप अरणि की लकड़ी से आग निकालकर उववसेज्जा प्रत्यक्ष दिग्धता देता है कि . "आयुष्मन् ! यह अाणि है और अयमाउसो । अरणी, अयं अम्गी, यह आग है." इसी प्रकार कोई व्यक्ति ऐसा नहीं है जो शरीर एषामेव जाव-सरीरं। और आत्मा को पृथक् करके दिखला दे कि "आयुष्मन् ! यह आत्मा है और यह उससे भिन्न शरीर है।"
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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