________________
:
२४५-२४६
बहुबहुजातरूवरमए
आओ
विच्छपिउरभल पाणे
souकोस कोट्ठागाराउहधरे
भू
प्रथम सम्वत्सरीरवादी की भद्धा का निरसन
वलयं दुष्यपध्वामित्
मोटटट अट ओवसत्तू निह्यसत्तू उद्वियसत्तू निज्जियसत्तू पराइयसत्तू कुमारि
रावण महा उपवाद-शय-परं मानिरहति।
दर्शनाचार
वह शक्तिशाली होता है। वह अपने शत्रुओं को दुर्बल बनाए रखा है। उसके राज्य में कंटक मोरों, व्यभिचारियों लुटेरों तथा उपद्रत्रियों एवं दृष्टो का नाश कर दिया जाता है, उनका मानमर्दन कर दिया जाता है, उन्हें दिया जाता है, उनके पैर उसाड़ दिये जाते हैं, जिससे उसका राज्य निष्कण्टक (चोर आदि दुष्टों से रहित हो जाता है। उसके राज्य पर आ करने वाले शत्रुओं को नष्ट कर दिया जाता है, उन्हें दिवा जाता है, उनका मानमर्दन कर दिया जाता है, अथवा उनके पैर उखाड़ दिये जाते हैं, उन मधुको को जीत लिया जाता है, उन्हें हरा दिया जाता है। उसका राज्य दुर्भिक्ष और महामारी आदि के भय से विमुक्त हो जाता है ।
(यहाँ से लेकर ) "जिसमें स्वचक्र-परचक्र का भय शान्त हो गया है, ऐसे राज्य का प्रशासन-पालन करता हुआ वह रोजा विचरण करता है," (यहाँ तक का पाठ औपपातिक सूत्र में वर्णित पाठ की तरह समझ लेना चाहिए।)
सहस णं एण्णो परिसा भवति
1
उस राजा की परिषद् (सभा) होती है उसके सभासद ये जग्गर उग्गपुलर भोगा भोगपुत्ता इवखागा इक्खागपुत्ता नाया होते हैं—उग्रकुल में उत्पन्न उत्रपुत्र, भोगकुल में जन्मे भोगपुत्र, नापुता
कोरण्या कोरभ्यता महा महता माहयामा लेई च्छता पसत्था पसत्यपुसा सेणावती सेण्णावती पुस ।
इक्ष्वाकु कुल में उत्पन्न तथा इक्ष्वाकुपुत्र, ज्ञातकुल में उत्पन्न ज्ञातपुत्र कुरुकुल में उत्पन्न कौरव तथा कौरवपुत्र सुभटकूल में उत्पन्न तथा सुभटपुत्र ब्राह्मणकुल में उत्पन्न तथा ब्राह्मणपुष मित्रतानिन्छीष, प्रशा स्तागण (मन्त्री आदि बुद्धिजीवी वर्ग ) तथा प्रशास्तापुत्र ( मन्त्री आदि के पुत्र) पति और सेनापति पुत्र
निरसणं
पढमं तज्जीयतच्छरीरवाइएस प्रथम तज्जीव-तत्शरीरवादी की श्रद्धा का निरसन२४६एमए सही कामं तं समभाव माणा व २४६ इनमें से कोई एक धर्म में भालू होता है। उस धर्म पहारं गमवा श्रद्धालु के पास श्रमण या ब्राह्मण (मान) श्रमं की प्राप्ति की तत्चऽनतरेण धम्मेणं पण्णत्तारो वयमेतेणं धम्मेगं पण इच्छा से जाने का निश्चय (निर्धारण) करते हैं। किसी एक धर्म इस्लामी, की शिक्षा देने वाले वे श्रमण और ब्राह्मण यह निश्चय करते हैं। कि हम इस धर्मश्रद्धालु पुरुष के समक्ष अपने इस (अभीष्ट) धर्म की प्ररूपणा करेंगे।
ये उस धर्मश्रद्धालु पुरुष के पास जाकर कहते हैं- "हे संसार भीह धर्मप्रेमी ! अथवा भय से जनता के रक्षक महाराज ! मैं जो भी उत्तम धर्म की शिक्षा आपको दे रहा हूँ उसे ही आप पूर्वपुरुषों द्वारा सम्यक् प्रकार से कथित और सुप्रज्ञप्त (सत्य) समझें।"
से ए वमायाणह भयंतारो जहा मे एस धम्मे सुयषखाते पण ते भवति ।
- सू. सु. २, अ. १, सु. ६४६-६४७
[ १४e
उसके कोप (ख)
धन, सोना, चाँदी आदि से भर
रहते हैं उसके माँ से बहुत से लोगों को गति मात्रा में भोजन पानी दिया जाता है। उसके यहाँ बहुत से दास-दासी, गाय, बैल आदि पशु रहते हैं। उसके धार का कोडार अप से धन के कोशाने प्रचुर से और धागार विविध शास्त्रास्त्रों से भरा रहता है ।