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________________ १४] घरगानुयोग चार अन्य साथियों को श्रद्धा का निरसन सूत्र २४५ चउण्हं अण्ण अस्थियसहहण-णिरसणं चार अन्यतीथियों की श्रद्धा का निरसन२५५. इह खलु पाईणं वा पडीण वा उनीणं था वाहिणं या संसि २४५. (श्रमण भगवान् महावीर कहते हैं-) इस मनुष्य लोक में एगतिमा मणुस्सा भवंति अपुष्येण लोग तं सचवमा, पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण दिशाओं में उत्पन्न कई प्रकार के मनुष्य होते हैं, त जहा आरिया वंगे, अणारिया वेगे, उच्चगोधा बेगे णीया- जैसे कि--उन मनुष्यों में कई आर्य (क्षेत्राय आदि) गोया वेगे, कायंता वेगे हस्समंता वेगे, सुवण्णा वेगे तुम्बणा होते हैं, अथवा कई अनार्य (धर्म मे दुर, पापी, निर्दय, वेगे, सुहया बेगे दुरया वेगे। निरनुकम्प, क्रोधमुर्ति, असंस्कारी) होते हैं, कई उच्चगोत्रीय होते है, कई नीचगोत्रीय । उनमें से कोई भीमकाय (लम्बे और सुदृढ़ पारीर वाले) होते हैं। कई ठिगने कद के होते हैं। कोई (सोने की तरह) सुन्दर वर्ण वाले होते हैं, तो कोई बुरे (काले कालूट) वर्ण बाले । कोई सुरूप (सुन्दर अंगोपांगों से युक्त) होते हैं तो कोई कुरूप (बेडौल, अपंग) होते हैं। तेसि च गं महं एगे राया भवति उन मनुष्यों में (विलक्षण कर्मोदय से) कोई एक राजा होता महाहिमवंतमलयमंवरमहिलसारे अन्वंतविमुदरायकुलवंसप्पमूते है । वह (राजा) महान् हिमवान्, मनवानल, मन्दराचल तथा निरंतररायलमणविरातियंगमंगे बहुजणबहुमागपूजिते सम्ब- महेन्द्र पर्वत के समान सामर्थ्यवान् अथवा वैभववान होता है। गुणसमिर खंत्ति मुखिए मुतामिसिसे, बह अत्यन्त विशुद्ध राजकुल के वंश में जन्मा हुआ होता है। उसके अंग राजलक्षणों से सुशोभित होते हैं । उसकी पूजा प्रतिष्ठा अनेक जनों द्वारा बहुमानपूर्वक की जाती है, वह गुणों से समृद्ध होता है, वह क्षत्रिय (पीड़ित प्राणियों का पाता-रक्षक) होता है। यह सदा प्रसन्न रहता है। वह राजा राज्याभिषेक किया हुआ होता है। माउं पिड सुजाए बह अपने माता-पिता का सुपुत्र (अंगजात) होता है। बयपसे सोमंकरे सोमंघरे खेमकरे खेमंधरे उसे दया प्रिय होती है। वह सीमंकर (जनता की मुथ्यवस्था के मस्सिवे जपवपिया अणवपुरोहिते सेउकरे के करे लिए सीमा-नैतिक धार्मिक मर्यादा स्थापित करने वाला) तथा मीमंधर (प्वयं उस मर्यादा का पालन करने वाला) होता है। वह क्षेमकर (जनता का कुशल-क्षेम करने वाला) तथा क्षेमन्धर (प्राप्त योग क्षेम का वहन-रक्षण करने वाला) होता है। वह मनुष्यों में इन्द्र, जनपद (देश या प्रान्त) का पिता, और जनपद का पुरोहित (शांति रक्षक) होता है। वह अपने राज्य या राष्ट्र की सुख-शांति के लिए सेतुकर (नदी, नहर, पुल, बाँध आदि का निर्माण कराने वाला) और केतुकर (भूमि, खेत, बगीचे आदि की व्यवस्था करने वाला) होता है। गरपकरे पुरिसवरे पुरिसमीहे पुरिसातीविसे पुरिमारपी- वह मनुष्यों में श्रेष्ठ, पुरुषों में वरिष्ठ, पुरुषों में सिंहसम, रीए पुरिसवरगंधहस्थी पुरुषों में आसीविष सर्प समान, पुरुषों में श्रेष्ठ पुण्डरीक तु न्य, अहढे दिले विस विरियाणविउलवण-मयणासण-जाण- पुरुषों में श्रेष्ठ गत्तगन्धहस्ती के समान होता है। वह अत्यन्त वाहणाहणे धनाढ्य, दीरितवान (तेजस्वी) एवं प्रसिद्ध पुरुष होता है। उसके . पास विशाल विपुल भवन, जया, आसन, यान (विविध पालकी आदि) तथा वाहन (वोड़ा-गाड़ी, रथ आदि सवारियां एवं हाथी, घोड़े आदि) की प्रचुरता रहती है।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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