SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२२] परणानुयोग आतिसम्पन्न, जातिहीन, अतसम्पन्न, श्रुतहीन सूत्र १६७-२०२ पणए नाममेमे उन्नए, एक पुरुष शरीर से उन्नत नहीं है किन्तु श्रुत से उन्नत है, पणए माममेगे पणए। -ठाणं. १. ४. सु. २३६ क माप शरीर से उबत नहीं है और श्रुत से भी उन्नत नहीं है । जाहसंपन्ना, जाइहीणा, सुयसंपन्ना, सुयहीणा जातिसम्पन्न, जातिहीन, श्रुतसम्पन्न, श्रुतहीन१६८, चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा १६८. चार प्रकार के पुरुष कहे हैं, यथाजाइसंपन्ने नाममेमे नो सुयसंपन्ने, एक पुरुष जातिसम्पन्न है किन्तु श्रुतसम्पन्न नहीं है, सुयसंपन्ने नाममेगे नो जाइसंपन्ने, एक पुरुष श्रुतसम्पन्न है किन्तु जातिसम्पन्न नहीं है, एने जाप संपन्ने वि सुयसंपन्ने वि, एक पुरुष जातिसम्पन्न भी है और श्रुतसम्पन्न भी है, एगे भो जाइ संपन्ने नो सुयसंपन्ने । एक पुरुष जातिसम्पन्न भी नहीं है और श्रुतसम्पन्न भी -ठाणं. अ. ४, उ. ३, सु. ३१६ नहीं है । कुलसंपण्णा, कुलहीणा, सुयसम्पम्ना, सुयहोणा कुलसम्पन्न और कुलहीन. श्रुतसम्पन्न और श्रुतहीन१६६, चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा १९६. चार प्रकार के पुरुष कहे हैं. यथाकुलसंपन्ने नाममेगे नो सुयसंपन्ने, एक पुरष कुलसम्पन्न है किन्तु श्रुतमम्पन्न नहीं है, मुयसंपन्ने नाममेगे नो कुलसंपन्ने, एक र श्रुतसम्पन्न है किन्तु कुलसम्पन्न नहीं है, एगे कुलसंपन्ने वि सुयसंपन्ने वि, एक पृरुष कुलसम्पन्न भी है और श्रुतसम्पन्न भी है, एगे नो कुलसंपन्ने नो सुपसंपन्ने । एक पुरुष कुलसम्पन्न भी नहीं है और कुत सम्पन्न भी -ठाणे. अ.४, उ. ३, सु.३१६ नहीं है। सुरुवा, कुरूवा, सुयसम्पन्ना, सुयहोणा सुरूप और कुरूप, श्रुतसम्पन्न और श्रुतहीन२००. चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा--- २००. चार प्रकार के पुरुष कहे गये है, यथारूवसंपन्ने नाममेगे नो सुयसंपन्ने, एक पुरए कासम्पन्न है किन्तु श्रुतसम्पन्न नहीं है, सुयसंपन्ने नाममेगे नो हरसंपन्ने, एक पृष श्रुतसम्पन्न है किन्तु रूपमम्पन्न नहीं है. एगे रूपसंपन्ने वि सुवसंपन्ने वि, एक गुम्प रूपसम्पन भी है और थलसम्म भी है. एगे नो रुवसंपन्ने नो सुपसंपन्ने । एक रूप रूपसम्पन्न भी नहीं है और श्रुत सम्पन्न भी नहीं है। -ठाणं, अ.४, 3. ३, गु. ३१६ बलसम्पण्णा, बलहीणा, सुयसम्पण्णा, सुपरहिया- बलसम्पन्न और बलहीन, धतसम्पन्न और श्रुतहीन... २०१. चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा २०१. चार प्रकार के पुरुष कहे हैं, यथा -- बलसंपले नाममेगे नो सुयसंपन्ने, एक पुरुष बलसम्पन्न है, किन्तु श्रुतसम्पन्न नहीं है, सुयसंपन्ने नाममेगे नो बलसंपन्ने, एक पुरुप श्रुतसम्पन्न है, किन्तु बलसम्पन्न नहीं है. एगे बलसंपन्ने वि सुयसंपन्ने वि, एक पुरुष वलसम्पन्न भी है और श्रुतसम्पन्न भी है. एगे नो बससंपन्ने नो सुपसंपन्ने । एक पुरुष बलसम्पन्न भी नहीं है और श्रुतसम्पन्न भी नहीं है। --ठाण.अ. ४, उ. ३, सु. ३१६ सुत्तधरा, अस्थधरा सूत्रधर, अस्थधर २०२. तओ पुरिसजाया पणत्ता, सं जहा २०२. थुतधर पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं - मुत्तधरे, अत्यधरे, तनुमयधरे। सूत्रधर, अर्थधर और तदुभयधर (सूत्र और अर्थ दोनों के ठाणं अ. ३, उ. ३, सु. १७७ धारक) चसारि परिसजाया पणत्ता, तं जहा चार प्रकार के पुरुष कहे हैं, यथा--- सुसधरे नाममेगे नो अत्यधरे, एक सूत्रधर है किन्तु अर्थधर नहीं है, अत्यघरे नाममे मो सुत्तधरे, एक अर्थधर है किन्तु सूत्रधर नहीं है, एगे मुत्तधरे वि अस्थधरे वि, एक मूत्रधार भी है, और अर्थधर भी है, एगे नो सुतधरे नो अत्यधरे। एक सूत्रधर भी नहीं है और अर्थश्रर भी नहीं है। ... ठाणं, अ. ४, उ.१, सु. २५६
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy