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भूत्र १९२-१६५
श्रुस और शरीर से पूर्ण अथवा अपूर्ण
शानाचार परिशिष्ट
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सुएण वा सरीरेण वा पुण्णा अपुण्णा
श्रुत और शरीर से पूर्ण अथवा अपूर्ण१६२. चत्तार पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा
१९२. चार प्रकार के पुरुष कहे हैं, मथापुणे नाममेगे पुणे,
एक पुरुष अवयवादि से पूर्ण है और श्रुत से भी पूर्ण है, पुग्णे नाममेमे मुख्छ।
एक पुरुष अवयवादि से पुर्ण है किन्तु श्रुत से अपूर्ण है, तुच्छे नाममेगे पुणे,
एक पुरुष श्रुत से अपूर्ण है किन्तु अवयवादि से पूर्ण है, तुच्छे माममेगे तुच्छे।
एक पुरुष श्रुत से भी अपूर्ण है और अवयवादि से भी -ठाणं.अ.४.उ. ४, सु. ३६० अपूर्ण है। सुएण पुण्णा अपुग्णा, पुण्णावभासा अपुषणावभासा-- श्रुत से पूर्ण और अपूर्ण, पूर्ण सदृश या अपूर्ण सदृश :-- १६३, पत्तारि पुरिसजाया पग्णता, तं जहा---
१६३. चार प्रकार के पुरुष कहे है, यथा-- पुग्णे नाममेगे पुण्णोभासी,
एक पुरुष श्रुत से पूर्ण है और पूर्ण ही दिखाई देता है, पुण्णे नाममेगे सुन्छोमासी,
एक पुरुष श्रुत से पूर्ण है कि तु अपूर्ण दिनाई देता है। तुच्छे नाममेगे पुषणोभासी,
एक पुरुष श्रुत से अपूर्ण है किन्तु पूर्ण दिखाई देता है, तुच्छे नाममेगे तुच्छोभासो।
एक पुरुष श्रुत से अपूर्ण है और अपूर्ण ही दिखाई देता है। ठाणं. अ. ४, उ. ४, सु. ३६० सुएण पुण्णा अपुण्णा, पुण्णवा अपुण्णरूवा-- श्रुत से पूर्ण अपूर्ण, श्रमणवेप से पूर्ण और अपूर्ण१६४. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा ---
१९४, चार प्रकार के पुरुष कहे हैं, यथा--- पुणे नाममेगे पुग्णलवे,
एक पुरुष थुत से भी पूर्ण है और साधुवेष से भी पूर्ण है, पुण्ये नाममेगे तुच्छहले,
एक पुरुष श्रुत से पूर्ण है किन्तु साधुवेष से पूर्ण नहीं है, तुन्छे मामलेगे पुण्णरूवे.
एक पुरुष श्रुत से अपूर्ण है किन्तु साधुवेष से पूर्ण है, तुच्छे नाममेगे तुच्छरूखे। -ठाणं. अ. ४, उ. ४, सु. २६० एक पुरुष थुत रो भी अपूर्ण है और माधुवेष से भी अपूर्ण है। सुएण पुण्णा अपुण्णा, उपकारकारगा, अपकारकारगा- श्रुत से पूर्ण और अपूर्ण उपकारी और अपकारी१६५, अत्तारि पुरिसमाया पण्णता, तं जहा
१६५. चार प्रकार के पुरुष कहे हैं, पथा - पुणे वि एग पियट्ठ
एक पुरुष धुत से पूर्ण है और परोपकारी भी है, पुणे वि एगे अवदले, .
एक पुरुष श्रुत से पूर्ण है किन्तु परोपकारी नहीं है, तुच्छे वि एगे पियट्ट,
एक पुरुष श्रुत रो पूर्ण नहीं है किन्तु परोपकारी हैं, तुच्छे वि एगे अवदले।
एक पुरुष श्रुत से भी पूर्ण नहीं है और परोपकारी भी -- ठाणं. म. ४, उ. ४, सु. ३६० नहीं है। सुएण पुण्णा अपुष्णा, सुअस्स दाता अदाता
श्रुत से पूर्ण और अपूर्ण, श्रुत के दाता और अदाता१६६. पत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा
१६६. चार प्रकार के पुरुष कहे हैं यथा --- पुन्ने कि एगे विस्संदर
एक पुरुष श्रुत से पूर्ण है और अग्य' को श्रुत देता है, पुन्ने वि एगे णो विस्संवह,
एक पुरुष श्रुत से पूर्ण है किन्तु अन्य को श्रुत नहीं देता है, तुच्छ वि एगे विस्संबइ,
एक पुरुष श्रुत से पूर्ण नहीं है किन्तु अन्य को श्रुत देता है, तुच्छे वि एगेनो विस्संबह।
एक पुरुप श्रुत से की पूर्ण नहीं है और अन्य को भी श्रत -ठाणं. अ. ४, उ. ४, सु. ३६. नहीं देना है। सएण सरीरेण य उन्नया अवनया
श्रुत से और शरीर से उन्नत या अवनत१६७. बसारि पुरिसजाय पण्णता, तं जहा--
१६७. चार प्रकार के पुरुष कहे हैं, यथाउनए नरममेगे उन्नए,
एक पुरुष शरीर से उन्नत है और श्रुत से भी उन्नत है, उन्नए नाममेगे पगए,
एक पुरुष शरीर से उन्नत है विन्तु श्रुत से उषत नहीं है,