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________________ १२० ] चरणानुयोग बामणा दाता, अदाता, गहिया, अमहिया१०. चारि पुरियाणा हा १. वाद णाममेगे जो वायाबेड, २. वायवे णाममे णो गाएड. २. वि ४. एगे जो बाए णो वाघावेह | पच्छिगा अपडिन्छया१८६ बसारि पुरिमायातं जहा १. पचिच्छति णाममेगे णो पडिन्छायेति, २. परिच्छायेति णाममेगे णो परिच्छति, ३. एवि परिछावेति वि ४. एमे भी पति को परिछावेति । पह कत्ता, अकत्ता १०. बस्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा १. मो २. पुच्छा ममे णो पुछ २. एगे छि ४. ए को पुच्छर णो पृष्ठावे । बागरा, अवागरा- ११. बारि पुरिसजाया पण्णत्ता, सं जहा १. बावरेति चाममेोवागरात २. वागरात वाममेो बगरेलि ३. एगे यागरेति वि यागराधेति वि ४. एमे णो वापरेति णो वापरावेति । वाचनादाता, अदाता, पहिला, अग्रहिता सूत्र १६-१९१ वाचना बाता अदाता पहिला अग्रहिता १८८. पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे (१) कोई पुरुष दूसरों को वाचना देता है, किन्तु दूसरों से वाचना नहीं लेता | (1) कोई पुरुष दूसरों से वाचना लेता है, किन्तु दूसरों को याचना नहीं देता । (३) कोई पुरुष दूसरों को बचा देता है और दूसरों से बना लेता भी है। (४) कोई पुरुष न दूसरों को वाचना देता है और न दूसरों से वाचना लेता है। सूत्रार्थ ग्राहक अग्राहक १०६. पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे (१) कोई पुरुष प्रतीच्छा (सूत्र और अर्थ का ग्रहण) करता है, किन्तु प्रतीच्छा करवाता नहीं है । (२) कोई पुरुष प्रतीच्छा करवाता है, किन्तु प्रतीच्छा करता नहीं है । (३) कोई पुरुष प्रतीच्छा करता भी है और प्रतीच्छा कर वाता भी है। (४) कोई पुरुष प्रतीच्छा न करता है और न प्रतीच्छा करवाता है । प्रश्नकर्ता, अकर्ता - १६०. पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे— (१) कोई पुरुष प्रश्न करता है, किन्तु प्रश्न करवाता नहीं है। (२) कोई पुरुष प्रश्न करवाता है, किन्तु स्वयं प्रश्न करता नहीं है। (३) कोई पुरुष प्रश्न करता भी है और प्रश्न करवाता भी है। (४) कोई पुरुष न प्रश्न करता है, न प्रश्न करवाता है। सूत्रार्थं व्याख्याता, अव्याख्याता १६१. पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे (१) कोई पुरुषादि का व्याख्यान करता है, किन्तु अन्य से व्याख्यान करवाता नहीं है । (२) कोई पुरुष व्याख्यान करवाता है, किन्तु स्वयं व्याख्यान नहीं करता है । (३) कोई पुरुष स्वयं व्याख्यान करता है, और अन्य से व्याख्यान करवाता भी है। (४) कोई पुरुष न स्वयं व्याख्वान करता है और न अन्य से ठाणं. अ. ४, उ. १, सु. २५६ व्याख्यान करवाता है ।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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