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________________ सूत्र १८३-१७ दोन-प्रज्ञावान और अदीन-प्रशावान भानाचार परिशिष्ट ११ + - - दौना वीनपण्णाजुत्ता, अवीना अदीनपण्णाजुत्ता१८३. मारि पुरिसजाया PHI, हा दोगे माममेगे दोषपम्ने, होणे नाममेगे अदोणपन्ने, अबोणे नाममेगे दोणपन्ने, अवीणे नाममेगे अाणपन्ने । -ठाणं. अ. ४. उ. २, सु. २७६ अज्जा अणज्जा, अज्जपण्णाजुत्ता अणज्ज पण्णाजुत्ता१८४. पसारि पुरिसजाया पणत्ता.तं जहा अग्ने नाममेगे अम्जपन्ने, अज्जे नाममेगे अणज्जपन्ने, अणज्जे नाममेगे अज्जपन्ने, अगर नाममेगे अणज्जपन्ने । ठाण. अ. ४, उ. २, सु.२५० सच्चा असध्धा, सच्चपष्णाजुत्ता असच्च पण्णाजुत्ता१८१. चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा साचे नाममेगे सच्चएम्ने, सच्चे नाममेगे असपचपन्ने, असच्चे नाममेगे सच्चपन्ने, असच्चे नाममा असच्चपन्ने । सुसोला दुस्सोला, सील पण्णाजुत्ता असीलपण्णाजुत्ता - दीन और अदीन, दीन-प्रज्ञावान और अदीन-प्रज्ञावान१८३. चार प्रकार के पुरुष कहे हैं, यथा एक पुरुष दीन है और सूक्ष्म अर्थ के आलोचन में भी दीन है। एक पुरुष दीन है किन्तु सूक्ष्म अर्थ के आलोचन में अदीन है। एक पुरुष अदीन है किन्तु सूक्ष्म अर्थ के आलोचन में दीन है। एक पुरुष अदीन है और सूक्ष्म अर्थ के आलोचन में भी अदीन है। आर्य और अनार्य, आर्य प्रज्ञावान् और अनार्य प्रज्ञावान्१८४. चार प्रकार के पुरुष कहे हैं. यथा एक पुरुष आर्य भी है और आर्यप्रश भी है। एक पुरुष आर्य है किन्तु आर्यन नहीं है । एक पुरुष अनार्य है किन्तु आर्यप्रज्ञ है। एक पुरुष अनार्य है और अनार्यप्रश भी है। १६६. बत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा सुइनाममेगे सुइपन्ने, सुइ नाममेगे असुइपन्ने, असुई नाममेगे सुइपन्ने, सत्यवक्ता और असत्यवक्ता सत्य प्रज्ञा और असत्य प्रज्ञा१८५, पुरुष चार प्रकार के कहे हैं, यथा एक पुरुष सत्य वक्ता है और उसकी प्रज्ञा भी मत्य है। एक पुरष सत्य बत्ता है किन्तु उसकी प्रमा असत्य है। एक पुरुष असत्य वक्ता है किन्तु उसकी प्रज्ञा सत्य है। एक पृष्प असत्य वक्ता है और उमकी प्रज्ञा भी असत्य है। शील सम्पन्न और दुशील सम्पन्न, शील प्रज्ञावान और दुश्शील प्रज्ञावान१५६. चार प्रकार के पुरुष कहे हैं, यथा एक पुरुष स्वभाव से अच्छा है और उसकी प्रज्ञा भी पवित्र है, एक पुरुष स्वभाव से अच्छा है किन्तु उसकी प्रजा अपवित्र है, एक पुरुष स्वभाव से अच्छा नहीं है किन्तु उसकी प्रजा पवित्र है, एक पुरुष स्वभाव से अच्छा नहीं है और उसकी प्रज्ञा भी अपवित्र है। शुद्ध और शुद्ध प्रज्ञावान, अशुद्ध और अशुद्ध प्रज्ञावान1८७. चार प्रकार के पुरुष कहे हैं, यथा एक पुरुष निर्मल ज्ञानादि गुणवाला है और उसकी प्रजा भी असुइ नाममेये अमुइपन्ने । सुद्धा सुम्स पण्णाजुत्ता, असुद्धा असुद्ध पप्णाजता - १८७ बत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा सुझे नाममेगे सुद्धपन्ने, सुखे नाममेगे असुबपन्ने, एक पुरुष निर्मल ज्ञानादि गुणवाला है किन्तु उसकी प्रजा अशुद्ध है, अमुझे नाममेरो सुदपले, एक पुरुष निर्मल ज्ञानादि गुणयाला नहीं है किन्तु उसकी प्रज्ञा शुद्ध है, असुर नाममेगे असुझपन्ने । एक पुरष निर्मल ज्ञानादि गुणवाला नहीं है और उसकी -ठाणं, अ. ४, उ. १, सु. २४१ प्रना भी शुद्ध नहीं है ।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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