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________________ पुष १६६ ज्ञान और आचार भेव से पुरुषों के प्रकार भानाचार परिशिष्ट ११३ णाणायार-परिसिट्ठ ज्ञानाचार परिशिष्ट णाण-आयार-भेएण पुरिसभेया१६६. (क) चत्तारि पुरिसजाया पणता, तं जहा सेयंसे नाममेगे सेयंसे, सेयसे नामभेये पावसे, पावसे नाममेगे सेयंसे, पावसे नाममेगे पावसे । (ख) चत्तारि पुरिसजाया पप्पत्ता,तं जहा सेयसे नाममेगे सेयंसेत्ति सालिसए, सेयंसे नाममेगे पावंसेत्ति सालिसए, पावसे नाममेगे सेयसेप्ति सालिसए, ज्ञान और आचार भेद से पुरुषों के प्रकार१६६. (क) चार प्रकार के पुरुष कहे गए हैं, यथा कुछ पुरुष' बोध की दृष्टि से श्रेष्ठ हैं और आचरण की दृष्टि से भी श्रेष्ठ हैं। कुछ पुरुष बोध की दृष्टि से श्रेष्ठ हैं किन्तु आचरण की दृष्टि से पापी हैं। कुछ पुरुष बोध की दृष्टि से पापी हैं किन्तु आचरण की दृष्टि से श्रेष्ठ हैं। कुछ पुरा बोध की दृष्टि से भी पापी हैं और आचरण की दृष्टि से भी पापी हैं। (ख) चार प्रकार के पुरुष कहे गए हैं, यथा-- कुछ पुरुष बांध की दृष्टि से श्रेष्ठ है और आचरण की दृष्टि से श्रेष्ठ सदृश हैं। कुछ पुरुष बोध की दृष्टि से श्रेष्ठ हैं किन्तु आचरण की दृष्टि से पापी के सदृश हैं। कुछ पुरुष बोध की दृष्टि मे पारी हैं किन्तु आचरण की दृष्टि से बेष्ठ सदृश हैं। कुछ पुरुष' बोध की दृष्टि से पापी है और आचरण की दृष्टि से पापी सदृश हैं। (ग) चार प्रकार के पुरुष कहे गए हैं, यथा कुछ पुरुष बोध की दृष्टि से श्रेष्ठ हैं और अपने आप को श्रेष्ठ ही मानते हैं। कुछ पुरुष बोध की दृष्टि से श्रेष्ठ हैं, किन्तु अपने आप को पापी मानते हैं। कुछ पुरुप बोध की दृष्टि से पापी है विन्तु अपने आप को थेष्ठ मानते हैं। कुछ पुरुष बोध की दृष्टि से पापी हैं और अपने आप को पापी मानते हैं। (घ) चार प्रकार के पुरुष कहे गए हैं, यथा कुछ पुरुष बोध की दृष्टि से श्रेष्ठ हैं और अपने आप को श्रेष्ठ सदृश मानते हैं। कुछ पुरुष श्रोध की दृष्टि से श्रेष्ठ है किन्तु अपने आप को पापी सदृश मानते हैं। पावसे नाममेगे पावसेत्ति सालिसए। (ग) चत्तारि पुरिसमाया पणत्ता, तं जहा सेयंसे नाममेगे सेयंसे सि मनाइ, सेयंसे नाममेगे पावंसे सि मन्त्राइ, पावसे नाममेगे सेयंसे ति मन्नइ, पावसे नाममेगे पावंसे ति मन्नइ । (घ) प्रत्तारि पुरिसजाया पणता, तं जहा सेयंसे नाममेगे सेयंसे ति सालिसए मन्नइ. सेबसे माममेगे पाबंसे सितालिसए मन्ना,
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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