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१४-१५०
एवमेव बतारि आयरियाणा, तं जहा-साले गाममे सालपरिवारे,
साणायमे परिवारे
एरण्डे णाममेगे सालपरिवारे,
एरण्डे नाममे परिवारे ।
सालमा जसले पाम होह दुमराया । इस सुन्दर आयरिए, सुन्दरसो से मुणेयश्वे ॥
एरण्डमारे, नह साल काम होइ दुमराया । इस सुन्दर आयरिए मंगल सोये ॥
सालदुममज्झारे, एरण्डे नाम होइ घुमराया ।
मंगल आरिए सुन्दरतो ॥ एरण्डमवारे, एरण्ड नाम हो बुमराया मंगुलमारिए मंगलसोसे पुणेपथ्ये ॥ ठा. अ. ४, उ. ३. सु. ३४९
इय
फल भेद से आचार्य के भव
फलभेयेण आयरिय भैया१४६. सरिफला पण्णत्ता, तं जहा-
रे
२. मुष्टियामकलसमाणे,
३. खीर मट्टरफलमाणे, ४. खंड मरफलसमा । करंडग सभाणा आयरिया -
१.
३. खीर - महुरे,
एकमेव तारि आयरिया पणत तं जहा---
१.मा
२. मुद्दिया – मरे,
४. खंड महुरे ।
१५०. चारि करंडगा पण्णत्ता, तं जहा
२.
३. गाहाबदरंगसमाने,
४. राजकरं समाणे ।
-डा. ४ . २, सु. ३१६
१. सवा
२. गाहाबई - करंडए, ४. एवमेव चारि आपरिया पण्णसा, तं जहा१.सा,
२. वेसिया - करंडए, करंड
---ठाणं. अ. ४, उ. ३. सु. ३४०
बहुमान ज्ञानाचार १०१
इसी प्रकार आचार्य चार प्रकार के कहे हैं, यथा
श्रेष्ठ जाति, कुल समुत्पन्न और श्रेष्ठ गुण सम्पन्न शिष्य परिवारवाला
श्रेष्ठ जाति, कुल समुत्पन्न और गुण रहित शिष्य परिवार
गाला
जाति, कुल में अनुत्पत्र और गुण सहित शिष्य परिवार
वाला ।
श्रेष्ठ जाति कुल में और गुण रहित शिष्य परि
वारवाला |
जिस प्रकार शाल वृक्षों के मध्य में रहा हुआ महान् शाल वृक्ष शोभित होता है। उसी प्रकार सुन्दर शिष्यों के मध्य में सुन्दर आचार्य शोभित होते हैं।
जिस प्रकार एरण्ड वृक्षों के मध्य में महान शाल वृक्ष अशोघनीय लगता है उसी प्रकार सुन्दर आचार्य अनुन्दर शिष्यों से अशोभनीय लगते हैं ।
शाल वृक्षों के बीच में जैसी एरण्ड की स्थिति है वैसा ही सुन्दर शिष्यों में अमुन्दर आचार्य की स्थिति है। एरण्डों में जैसे एरण्ड रहता है, वैसे ही असुन्दर शिष्यों में अनुन्द आचार्य रहता है।
फल भेद से आचार्य के भेद
१४६. चार प्रकार के फल कहे हैं, यथा-(१) जैसे मधुर (३) क्षीर जैसे मधुर,
इसी प्रकार आचार्य चार प्रकार के कहे हैं, यथा
(१) आँवला जैसे मधुर फल के समान,
(२) दाक्षा जैसे मधुर
(४) ग्रांड जैसे मधुर |
(२) द्राक्षा जैसे मधुर फल के समान, (३) क्षीर जैसे मधुर फल के समान, (४) खांड जैसे मधुर फल के समान । करंडिया के समान आचार्य-
१५०. चार प्रकार के कर कहे हैं, यथा--- (१)
करंडक,
(३) गाथापति - करंडक,
(२) वेश्या - करंडक,
(४) राज करंडक,
इसी प्रकार चार प्रकार के आचार्य कहे हैं। यथा
(१) श्वान के करंडक जैसे,
(२) वेश्या के परंडक
(३) माथापति के रं
(४) राजा के करंडक जैसे ।