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________________ १०.1 वरणानुयोग आबायों की महिमा सूत्र १४६-१४ तइओ बहुमाण णाणायारो तृतीय बहुमान ज्ञानाचार आयरिय महिमा आचार्यों की महिमा१४६. जहा निसते तवणश्चिमालो, १४६. जैसे दिन में प्रदीप्त होता हुआ सूर्य सम्पूर्ण भारत (भरतपभासई केवलभारहं तु । क्षेत्र) को प्रकाशित करता है वैसे ही श्रुत. शील और बुद्धि मे एवायरिओ सुयसोलकुदिए, मम्पन्न आचार्य विश्व को प्रकाशित करते हैं और जिस प्रकार विरायई मुरमरमे व इंदो॥ देवताओं के नीच इन्द्र शोभित होता है, उसी प्रकार साओं के बीच आचार्य सुशोभित होते हैं। जहा ससी कोमुइजोगजुत्तो, जिस प्रकार बादलों से मुक्त विमल आकाश में नक्षत्र और नक्षत्ततारागणपरिवुडप्पा तारागण से परिवृत आश्विन कार्तिक पूर्णिमा में उदित चन्द्रमा खे सोही विमले अन्भमुषके. शोभित होता है, उसी प्रकार मिक्षओं के बीच गणी (आचार्य) एवं गणी सोहइ भिक्षुमन ।। गोभित होते हैं। महागरा आयरिया महेसी, अनुत्तर ज्ञान आदि गुणों की सम्प्राप्ति की इच्छा रखने वाला सपाहिजोगे सुयसीलबुद्धिए । मुनि मिरा का अहोकर समाभियोग, ध्रुतशील और बुद्धि के संपाविजकामे अणुत्तराई, महान् भाकर, मोक्ष की एषणा करने वाले आचार्य की आराधना भाराहए तोसए धम्मकामी । करे और उन्हें प्रसन्न करें। -दस. अ.६, उ. १, गा. १४-१६ आयरिय सुस्सूसा फलं आचार्य की सेवा का फल१४७. सोमचाण मेहाबी सुभासियाई, १४७, मेधावी मुनि इन सुभाषितों को सुनकर अप्रमत्त रहता हुआ सुस्सए आयरियप्पमत्तो । आचार्य की सुश्रूषा करे । इस प्रकार यह अनेक गुणों की आराधना आराहइत्ताप गुणे अगेगे, कर अनुत्तर सिद्धि को प्राप्त करता है। से पावई सिदिमणुप्तरं ॥ -दस, अ. ६, उ. १, गा.१७ रुक्खमेयेण आयरिय भेया : वृक्ष के भेद से आचार्य के भेद१४६. (क) बत्तारि क्खा पण्णता, तं जहा-- १४८ (क) वृक्ष चार प्रकार के कहे हैं, यघा - साले णाममेगे सालपरियाए, शाल जाति का हो और शाल पर्यायी हो, साले जाममेगे एरंउपरियार, शाल जाति का हो और एरण्ड पर्यायी हो, एरण्डे णाममेगे सालपरियाए, एरण्ड जाति का हो और शाल पर्यायी हो, एरण गाममेगे एरण्डपरियाए, एरण्ड जाति का हो और एरण्ड पर्यायी हो। एषामेव चत्तारि आयरिया पण्णत्ता, तं जहा - इसी प्रकार आचार्य चार प्रकार के कहे हैं यथासाले गाममेगे सालपरियाए, श्रेष्ठ जाति, कुल गमुत्पन्न हो और ज्ञान क्रिया युक्त हो, सासे गाममेगे एरण्डपरियाए, श्रेष्ठ जाति, कुल समुत्पन्न हो और ज्ञान-त्रिन्या रहित हो, एरण्ड णाममेगे सालपरियाए, धेष्ठ जाति, कुल में अनुत्पन्न हो और ज्ञान-क्रिया युक्त हो, एरहे याममेगे एरण्डपरियाए, श्रेष्ठ जाति, कुल में अनुत्पन्न हो और ज्ञान-क्रिया रहित हो । (ख) चत्तारि रुपवा पणत्ता. त जहा (ख) वृक्ष चार प्रकार के कहे हैं, यथासाले गाममेगे सालपरिवारे, शाल जाति का और माल परिवारवाला, साले पाममेगे एरणपरिवार, शाल जाति का और एरण्ड परिवारबाला, एरणाममेगे सालपरिवार, एरण्ड जाति का और साल परिवारवाला, एरण्डे णाममेगे एरण्डपरिवारे, एरण्ड जाति का और एरण्ड परिवार वाला।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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