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पुत्र १४१
९. देवाणं आसायणाए.
१०. देवोणं आस । यणाए,
११. सोस आमायणाए पर लोगस्स आहाय गाए
१२. केवल आसायणाए
१३. केवलोपन तस्स धम्मस्स आसामनाए.
१४. देवासुरन लोग
१५. सखपाण-भूय जीव सत्तार्ण बातायणाए
१६. कालस्स आमायणाए,
२७. सुवस्स आसावणाए,
१०. देवाएं आसावणाए
१६. बायणायरियस आसायणाए
चउस पाण आसायणाओ
२०. जं
T
२१. वस्वामेलियं,
२२. हण
२३. अध्वरखरं,
२४. प
२५. विजय होणं, २६.
तेतीस आसतनाएं
विनय ज्ञानाधार
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(2) देवताओं की आशातना देवताओं की निन्दा करना या देवताओं का अस्तित्त्व ही न मानना, पुनर्जन्म न मानना ।
(१०) देवियों की आशातना - देवों के समान ।
(११) इहलोक और परलोक की माशातना दर परलोक की प्ररूपणा को असत्य मानना, पुनर्जन्म न मानना, नरक आदि चार गतियाँ न मानना ।
करना ।
(१२) केवली की आशा केवी का अनाद (निर
(१३) केवली -प्रज्ञप्त धर्म की आशातना - धर्म के माहात्म्य का अपलाप करना, सर्वज्ञकथित सिद्धान्तों का उपहास करना । आता देवादि सहित लोक के सम्बन्ध में मिथ्या प्ररूपणा करना, लोक सम्बन्धी पौराणिक धारणाओं पर विश्वास करना, लोक की उत्पत्ति, स्थिति एवं प्रलय सम्बन्धी भ्रान्त धारणाओं का प्रचार करना ।
(१४) लोक
(१५) प्राण, भूत जीव और सत्रों की आशातना - आत्मा का अस्तित्व स्वीकार न करना, या क्षणिक मानना, पृथ्वी आदि को निर्जीव मानना ।
(१६) काल की आशातना -- "काले कालं समायरे" - के सिद्धान्त को स्वीकार न करना, या इस सिद्धान्त का उपहास करना है
(१७) श्रुत की आशातना - श्रुत की प्राकृत भाषा सामान्य जतों की भाषा है, श्रुत में परस्पर विरोध है, इत्यादि विकल्प
रखना ।
(१८) श्रुत देवता की आशातना - श्रुत की अधिष्ठात्री देवी को अकिचित्कर मानना |
(१६) वाचनाचार्य की आशातना - उपाध्याय की आशा से शिष्यों को त का उद्देश आदि करने वाले को वाचनाचार्य कहते हैं। ---- उसकी अवज्ञा करना ।
[ चौवह शान की आशातना]
(२०) व्याविद्ध - आगम पढ़ते हुए पदों को आगे-पीछे करके बोलना ।
(२१) माहिया के पाठों को दोहराना, अथवा अन्य सूत्र का पाठ अन्य सूत्र में मिला देना । (२२) होनाक्षर-अक्षर छोड़कर स्वाध्याय करना । (२३) अधिकाक्षर आगमपात्र में अधिक अक्षर बोलना । (२४) पवहीन आगमपाठ में से पद छोड़कर पाठ करना । (२५) विनयहीन शास्त्र पढ़ाने वाले का विनय न करना । (२६) योगहीन-मन, वचन और काययोग को चंचल रखना ।