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*4] चरणानुयोग
अहवा तेत्तीस आलायणाओ१४१. १. अरिहंताणं आसायचाए,
१
३१. सेहे रायसिन्जा-संचार पाएन संघट्टित्ता हत्येण अविसा छ म आसाणा सेहत |
२२. हे रायणिवस्त्र सिग्जा संधारए निहिता वा निसीहता था, तुर्याट्टत्ता वा मबद्द आसावणा मेह
३३. सेहे रायणियस्स उच्चासशंसि वा समासणंसि वा चिट्ठित्ता बा, निसीहता वा तुयट्टित्ता वा भवइ आसायण सेहस्स । एमाओ खलु ताओ थेहि भगवंतहि तेतीसं आसा पणाओ पण्णत्ताओ ।-त्ति बेमि । --दसा.द. ३, सु. १-३
२. सिद्धरणं सायणाएं,
३. आयरियाणं आसायणाए,
४. उवज्झायाणं आसायणाए, ५. साहू गायणाए,
६. साहूणी असावणाए,
७. साथमाणं श्रसग्यणाए,
८. सावियाणं आसायणाए,
सेतीस आशातना
सम, सम. ३३, सु. १ ।
(३१) मैक्ष, यदि रानिक साधु के भैम्या - संस्तारक का (असावधानी से पैर से स्पर्श हो जाने पर हाथ जोड़कर बिना क्षमा-याचना किये चला जाये तो उसे आशातना दोष लगता है । (३२) शनिक के संय्या-संस्तारक पर खड़ा होने, बैठे मा लेटे तो उसे आज्ञातना दोष लगता है।
१४०-१४१
(३३) शैक्ष, रानिक से ऊंचे या समान आसन पर खड़ा हो या बैठे या लेटे तो उसे आशातना दोष लगता है।
स्थविर भगवन्तों ने निश्चय से ये पूर्वोक्त तेतीस आशातनाएँ कही है। ऐसा मैं कहता है।
तेतीस आशातना (दूसरा १४१. (१) अरिहन्तों की कहाँ है नहीं है तो फिर विकल्प करना)
प्रकार ) -
यातना वर्तमान में यहाँ अरिहन्त जालना कैसी ? (हस प्रकार का
―
(२) सिद्धों को आघातना सिद्धों के शरीर नहीं है फिर सुख का उपभोग किस प्रकार होगा ? वे निष्क्रिय हैं फिर उनका ज्ञान सचित्य कैसे ? इत्यादि विकल्प करना ।
(२) आवासों की आशातना यह चमुजय है, यह कुलीग नहीं है, वह स्वयं जंग्यावृत्ति करने के लिए सबको प्रेरणा देता है, इत्यादि विकल्प करना ।
(४) उपाध्यायों की आज्ञावना आचार्य के समान 1 (५) साधुओं की आशातनाये मलिन वस्त्र रखते हैं, ये कठोर तप करके आत्मघात करते हैं, इनके जाति कुल का कोई पता नहीं है, केशलुंचन जैसे अज्ञान कष्ट सहनकर अपना बड़प्पन बताते हैं, इत्यादि विकल्प करना ।
(६) साध्वियों की आशातनामे सदा अपवित्र रहती हैं, बलहीना होती है. अत्यधिक परिषह रखती है, इत्यादि विकल्प
रखना ।
(७) श्रावकों की आशातना - ये प्रतिदिन मिथ्याभाषण करकेमा मिलेते रहते हैं ये तो गावाचारी हैं, ये जन धन में ममत्व रखकर मुक्ति की कामना करते हैं. ये सन्तान और सम्पत्ति की कामना से दान पुण्य करते हैं, इत्यादि विकल्प रखना ।
(c) आविकाओं की आहातनाये दाल-यवों में मोह रखती है, रात-दिन बारम्भ परिग्रह में लगी रहती है, इनमें ईपी जलन बहुत रहती है, इत्यादि बातें कहकर अपहेलना
करना ।