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प्रत्र १४०
तेतीस आशातनाएँ
विनय ज्ञानाधार
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१७. सेहे रायणिएग सरि असणं वा, पाणं वा, साइमं (१७) शैक्ष, यदि रानिक माधु के साथ अशन, पान, खादिम
वा, साइमं का पडियाहिता त रायणिय अणा- और स्वादिम आहार को (उपाश्रय में) लाकर रालिक से बिना पुग्छित्सा अस्स जस्स इच्छा तस्स तस्स ख खवं पूछे जिस-जिस साधु को देना चाहता है जल्दी-जल्दी अधिकतं बलयसि, भवा आसायणा सेहस्स।
अधिक मात्रा में देवे तो उसे आशातना दोष लगता है। १८. सेहे असणं या, पाणं वा, खाइमं षा, साइमं वा (१८) शैक्ष, अशन, पान, खादिम और स्वादिम आहार को
पडियाहिता रायणिएणं सडि आहारेमाणे तत्थ लाकर रालिक साधु के साथ आहार करता हुआ यदि वहां यह सेहे-बच-खळ डाग-दागं उसह-उसई रसियं- शैक्ष प्रचुर मात्रा में विविध प्रकार के शाक, श्रेष्ठ, ताजे, रसदार, रसियं मणुलं-मणुन्न मणाम-मणामं नि-निवं मनोश, मनोभिलपित (खीर, रबड़ी, हलुआ आदि) स्निग्ध और लुख-सुक्खं आहारिता, भयह आसायणा सेहस्स। रूक्ष नमकीन पापड़ आदि आहार करे तो उसे आशातना दोष
लगता है। १६. सेहे रायणियस बाहरमाणस्स अपडिसुणिता, (१६) रानिक के बुलाने पर वदि शक्ष शत्निक की बात मवह आसायणा सेहस्स।
को नहीं सुनता है (अनसुनी कर चुप रह जाता है) तो उसे
आशातना दोष लगता है। २०. सेहे रायणियस्स शहरमाणस्स तत्थाए वेव पडि- (२०) रानिक के बुलाने पर यदि शैक्ष अपने स्थान पर सुणिता, मवई आसरयणा सेहस्त ।
बैठा हुआ उनकी बात को सुने और सन्मुख उपस्थित न हो तो
आशातना दोप लगता है। २१. लेहे रापणियं "क" त्ति धमा, भवह आसायणा (२१) रात्निक के बुलाने पर यदि शैक्ष 'क्या कहते हो"
ऐसा कहता है तो उसे आशातना दोष लगता है। २२. सेहे रायगियं "तुम" ति वत्सा, भवइ आसायणा (२२) शैक्ष, रात्निक को "तू" या "तुम" कहे तो उसे सेहस्स।
आशातना दोष लगता है। २३. सेहे रायणियं खद खडं वत्ता, भषद आसायगा (२३) पीक्ष, रानिक के सम्मुम्ब अनर्गल प्रलाप करे तो उसे सेहस्स।
आशातना दोष लगता है। २४. सेहे रायगियं तम्जाएग तज्जाएणं पबिहणिता, (२४) थैक्ष, रालिक को उसी के द्वारा कहे गये बचनों से भवद आसायणा सेहस्स ।।
प्रनिभाषण करे तो उसे माशातना दोष लगता है। २५. सेहे रायणियस कहं कहेमाणस "इति एवं" वत्ता (२५) शक्ष, रालिक से कथा कहते समय कहे कि "यह ऐसा भवड आप्सायणा सेहस्स।
कहिय" तो उसे आणातना दोष लगता है। २६. सेहे रायणियस्स पहं कहेमाणस्स "नो मुमरसो" (२६) शैक्ष, रानिक के कथा कहते हुए "आप भूलते हैं, त्ति वसा, मवइ अासायणा सेहस्स ।
आपको स्मरण नहीं है" कहता है तो उसे आशातना दोष
लगता है। २७. रायणिमस्त कह कहेमाणस्स णो सुमणसे, (२७) शैक्ष, रानिक के कया कहते हुए यदि सु-मनस न रहे मवह पासायणा सेहस्स।
(दुर्भाव प्रकट करे.) तो उसे आशातना दोष लगता है। २८. सेहे रायषियस्त कह कहेमाणम्स परिसं भेत्ता, (२८) शैक्ष, रानिक के कथा कहते हुए यदि (किसी बहाने __ भवइ आसायमा सेहस्स ।
से) परिषद् (सभा) को विसर्जन करने का आग्रह करे तो उसे
आशासना दोष लगता है। २६. सेहे रायणियस्स कहं कहेमाणस्स कहं आमिछविता, (२६) शैक्ष, रालिक के कथा कहते हुए यदि कथा में बाधा भवह आसायणा सेहस्स।
उपस्थित करे तो उसे आशातना दोष लगता है। ३०. सेहे रायणियस्स कहं कहेमाणस्स तीसे परिसाए, (३०) शैक्ष, रानिक के कथा कहते हुए, उस परिषद् के
अजुट्टियाए अभिन्नाए अन्छिन्माए, भवनोगडाए अनुत्थित (नहीं उठने तक) अभिन्न. अच्छिन्न (छिन्न-भिन्न नहीं बोच्चपि तमचंपि तमेव कहं कहिता, भवा आमा- होने तक) और अव्याकृत (नहीं बिखरने तक) विद्यमान रहते मणा सेहस्स।
हुए यदि उसी कथा को दूसरी बार और तीसरी बार भी कहता है तो उसे आयातना दोष लगता है।