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________________ ६४ धरणानुयोग तेतीस आशासमाएँ ४. सेहे रायणिस्स पुरओ विट्ठला, भवइ आसायणा सेहत | ५. सेहे रायणियस्स सपक चिट्टिसा, वह आसायणा सेहस्स ६. सेहे राय जियस्स आसन्नं चिट्टित्ता, भवइ आसायणा सेहस्स | ७. सेहे रायणियस्स पुरओ निसीहत्ता भवइ आसायणा सेहत | ८. सेहे रायणियस्स सपक्वं निसीइत्ता, मवह आसायणा सेहरस ९. सेहे रायणियस्स आसन्नं निसीइसा, मयइ आसायणा सेहस्स १०. सेहे रायणिएणं सद्धि बहिया कारभूषि समासस्सेहे पुन्यसगं बायम पन्छा राषिए भवद आसाणा सेहस्स । ११. हे रायगिए विहारभूमि वा नि सहि बहिया विधारभूमि वा समये साथ हे पुण्य रागं आलोएड पच्छा रायजिए, भवह आसायगा सेहस्स । 3 १२. केशवपुज्य संसदिए सिया तं सेहे पुव्वतरागं आलवड, पच्छा स्थथिए, भवइ असाया सेहस्स । १३. सेहे रामणिस्स राओ वा जियाले या बाहरमाणस्स "मो ! के मुत्ता ? के जावरा ?" सेहे जागरनामे रामनिवास अजिता भव आसायना सेहस्स तत्य - १४. सेहे असणं वापरणं वा खाइमं वा साइमं वा, पहिला मेरो मच्छा रायणियम्स, भवह आसायणा सेहस्त । १५. सेहे असणं वर, पाणं वर, खाइमं वा साइमं वा पश्मिमहिसा पृथ्वमेव बेहतर गर उनसे पच्छारायणियस्स, भवइ आसायणा सेहस्य | सूत्र १४० १६. सेहे अस वा पाणं वा साइमं वा साइमं वा पहिला तं वमेव सेहरा उबभिमते पच्छा रायणिए, भव बासायणा सेहस्त । (४) शैक्ष, रानिक साधु के आगे खड़ा हो तो उसे आशातना दोष लगता है । (३) शैक्ष, शनिक साधु के समक्ष खड़ा हो तो उसे आणातना दोष लगता है । (६) शैक्ष, रानिक साधु के आसन्न खड़ा हो तो आशातना दोष लगता है । (७) शैक्ष, रानिक साधु के आगे बैठे तो उसे आशातना दोष लगता है । ( - ) शैक्ष, रानिक साधु के समक्ष बैठे तो उसे आपातना दोष लगता है । (e) शैक्ष, रानिक माधु के आसन्न घंटे तो उसे आशातना दोष लगता है । (00), रास्व पर गया हुआ हो (कारण गये हों। ऐसी दशा में दिन शुद्धि) करे तो आशातना दोष लगता है । (११) रानिक के साथ बाहर विचारभूमि या बिहारभूमि ( स्वाध्याय स्थान पर जाने को वहाँ मै रास्कि से पहले ) शैक्ष आलोचना करे तो उसे आशातना दोष लगता है । में निक को सम्बोधन करके कहे – (छे) हे वार्य | कौन-कौन शैक्ष (पूछे सो रहे है और कौन-फोन जाग रहे हैं? समय जागता हुआ उस भीक्ष यदि रानिक के वचनों को अनसुना करके उत्तर न दे तो आशातना दोष लगता है। के साथ बाहर (मनोत्सन) दोनों एक ही पात्र में जल से पहले आचमन मो (१२) कोई व्यक्ति रानिक के पास वार्तालाप के लिए आये, यदि शैक्ष उससे पहले ही बार्तालाप करने लगे तो उसे आशातना दोष लगता है । (१३) रात्रि में का विकाल को (१४) शैक्ष, यदि अशन, पान, खादिम और स्वादिम आहार घर से लाकर उसकी आलोचना पहले किसी अन्य शैक्ष के पास करे और पीछे रालिक के समीप करे तो उसे अजाना दोष लगता है । (१५) शैक्ष, यदि अशन, पान, खादिम और स्वादिम आहार को (गृह के पर से लाकर पहने किसी अन्य को दिखाने और पीछे रानिक को दिखलावे तो उसे आशातना दोष लगता है। (१६) दिन, पान, सादिम और स्वादिन आहार को उपाय में लाकर पहले अन्य को भोगना नामंत्रित क्ष (भोजनार्थ) करे और पीछे रालिक को आमन्त्रित करे तो उसे आशातना दोष लगता है ।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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