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<<] धरणानुयोग
मागे आधारनोयराति
गुरु
नागम् चिममाणा से मोवियं परियामेंति ।
पुट्ठा वेगे नियच्छति जीविपस्सेव कारणा । निवांत पितेसि मई।
आहे
लक्या ते मरा पुमो पुणो जात संभयंता विद्दायमाणा "अहमसीति विउक्कसे" उदासीणे फर्स ववंति । पतियं पचे अनुया अगं अनहेहितं मेहावी जाणिवा ध
गुरआई परिणीया-
१३२. रानिया एवं बयासी
आदि के प्रत्यनीक
एवं लेमि भगव जणाने जहा से दिएपोए। एवं ते मिस्सा दिया व राजीव अगाइयति देि
प्र० - गुरु मं भंते! पहुन्च कति परिणीया पण्णता ?
उ०- गोयमा ! ओ पडिणीया पण्णला तं जहा आयरियपडिपीए उन्मादडिपीए
थेपडिणीए ।
प० गई णं मंते ! पहुच कति पडिणीया पण्णत्ता ?
उ०- गोमा ! तभ पडिणिया पण्णत्ता, तं जहा मोगर परोपण ओलोगपडिणीए ।
प० समूहं णं भंते ! पच्च कति परिणीया पण्णत्ता ?
जिस प्रकार पक्षी के बच्चे का (पंख आने तक उसके मातापिता द्वारा) पालन किया जाता है, उसी प्रकार (भगवान महावीर आ. सु. १. अ. ६, उ. ३, सु. १५६-१९१ के ) धर्म में जो अभी तक अनुत्थित है, (जिनकी बुद्धि अभी तक धर्म में संस्कारवद नहीं हुई है) उन शिष्यों का वे (आचार्य)
क्रमशः वाचना आदि के द्वारा दिन-रात पालन — संवर्द्धन करते हैं, ऐसा मैं कहता हूँ ।
गुरु आदि के प्रत्यनीक
१३२. राजगृह नगर में गौतम स्वामी) या (भगवान् महावीर से) इस प्रकार पूछा
उ०- गोयमा ! तओ पडिणोया पण्णत्ता, तं जहागणपत्रिणीए
कुलपडिए संघडिणीए
सूत्र १३१-११२
कुछ शिष्य स्वयं संयम का पालन नहीं करते हैं, किन्तु शुद्ध
आधार-गोचर का कथन करते हैं।
कुछ मिप्य ज्ञान दर्शन
है किन्तु ऐसा कहते हैं कि प्यून ही शुद्ध माचार है" इसलिए ज्ञानय विनयी होते हुए भी आधार-भ्रष्ट है।
कुछ अज्ञ शिष्य परीषदों से पीड़ित होने पर सुख सुविधा के लिए संयम भ्रष्ट हो जाते हैं ऐसे व्यक्तियों का महत्या भी निर क होता है।
वे असंयमी जय अश जनों में भी निन्दनीय होते हैं, कुछ अल्पज्ञ शिष्य - विद्वत्ता का दिखावा करते हुए "मैं विद्वान् हूँ.' ऐसा कहकर मध्यस्व धमणों की अवहेलना करते हैं अथवा मिथ्यादोषारोपण करके अवहेलन करते हैं। अतः वे पुनः पुनः चारों गतियों में जन्म लेते हैं इसलिए मेधावी शिष्य विनयधर्म को जाने ।
प्र० --- भगवन् ! गुरुदेव की अपेक्षा कितने प्रत्यनीक (पी या विरोधी ) कहे गए हैं ?
उ०- गौतम ! तीन प्रत्यनीक कहे गए हैं वे इस प्रकार (१) मानक, (२) उपाध्याय - प्रत्यनीक,
(३)
अनीक ।
प्र० - भगवन् ! गति की अपेक्षा कितने प्रत्यनीक कहे गए हैं?
उ०- गौतम ! तीन प्रत्यनीक कहे गये हैं। ये इस प्रकार(१) इहलोक त्पनीक (२) परलोक प्रत्यनीक,
(३) उभयलोक - प्रत्यनीक ।
५० - भगवन् ! समूह ( श्रमणसंघ ) की अपेक्षा कितने प्रत्य नीक कहे गए है ?
उ०--- गौतम ! तीन प्रत्यनीक कहे गए हैं। वे इस प्रकार(२) गण- प्रत्यनीक,
(१) कुल प्रत्पनीक (३) संघ- प्रत्यनीक ।