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सूत्र १२६-१३१
तीन प्रकार के अविनय
विनय ज्ञानाचार
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लिविहे अविष्णए--
तीन प्रकार के अविनय१२६. अविणए तिबिहे पण्णसे, तं जहा
१२६. अविनय तीन प्रकार का कहा गया हैदेसच्चाई,
(१) देगत्यागी- स्वामी को गाली गादि देकर देश को छोड़
कर चले जाना। निरालंबणता,
(२) निरालम्बन--पन्छ या कुटुम्ब को छोड़ देना या उससे
अलग हो जाना। जाणा पेज्जदोसे।
(३) नानाप्रेयोदोषी--नाना प्रकारों से लोगों के साथ राम-ठाणं. अ. ३, उ. ३, सु. १८३ वप करना । घडवसविहे अविणीए
चौदह प्रकार के अविनीत१३०. अह चउपसहि ठाणेहि, वट्टमाणे उ संजए । १३०. चौदह स्थानों (हेतुओं) में वर्तन करने वाला संयमी
अविणीए बुश्बई सो उ, निव्याणं च न गच्छद॥ अविनीत कहा जाता है । वह निर्वाण को प्राप्त नहीं होता। अभिक्खणं कोही हवइ, पबन्धं च पकुवई ।
(१) जो बार-बार कोध करता है, (२) जो श्रोध को टिकामिसिम्जमाणो बमई, सुयं लडूण मज्जई ॥ कर रखता है, (३) जो मित्रभाव रखने वाले को भी ठुकराता है,
(४) जो थुत प्राप्त कर मद करता है। अबि पावपरिक्वेयी, अवि मित्तेसु कुप्पई ।
(५) जो किसी की स्खलना होने पर उमका तिरस्कार सुप्पियस्मावि मित्तस्स, रहे भासद पावगं । करता है, (६) जो मित्रों पर कुपित होता है, (७) जो अत्यन्त
प्रिय मित्र की भी एका-त में बुराई करता है, पइग्णवाई दुहिले, धद्धे लुढे अणिग्गहे।
(6) जो असंबद्ध-भाषी है, (६) जो देशद्रोही है, (१०) जी असंविभागी अचियत्ते, अषिणीए ति बुच्चई ।। अभिमानी है, (११) जो सरस आहार आदि में लुब्ध है, (१२) --उत्त. अ.११, गा. ६-६ जो अजितेन्द्रिय है, (१३) जो असं विभागी है, (१४) जो अप्रीति
कर है-वह अविनीत कहलाता है। अविणोय सहवं
अविनीत का स्वरूप -- १३१. एवं ते सिस्ता बिया य, राओ य अणुपुरवेण वाइया तेहिं १३१. जिस प्रकार पक्षी अपने शावकों को शिक्षण देते हैं उसी महावीरेहि पण्णाणमंतेहि, ,
प्रकार जो ज्ञान न होने के कारण जिनोक्त धर्म की आराधना " लिए उद्यत नहीं है उन शिष्यों को दिन-रात गुरुजन अध्ययन
कराते हैं। तेसितिए पन्नाणमुवलम्म हेरचा उबसमें फारसियं समादियंति। इस प्रकार महापराक्रमी प्रज्ञावान् गुरुना से पढ़ाये गये उन
शिष्यों में कुछ ऐसे होते हैं जो गुरुओं से आगम-ज्ञान प्राप्त करने
के अनन्तर उपशमभाव छोड़कर जान-नयं से उद्यत हो जाते हैं। यसित्ता बंमधेरंसि आणं तं गो त्ति मन्त्रमाणा।
कुछ शिष्य ऐसे होते हैं जो संयमी बनने के पश्चात् जिनाशा
की अवहेलना करते हुए शरीर की शोभा बढ़ाते हैं। आघायं तु सोच्चा निसम्म "समणुना जोबिस्सामो" एगे "हम सर्वमान्य बनेंगे" ऐसा नोकर कुछ शिष्य दीक्षा लेते शिवचम्म ते असमवेता विममाणा कामेसु गिजा अज्झोव- हैं और वे मोक्षमार्ग के पथिकः बनकर काम-वासनाजन्य सुख में यमा समाहिमापायमसोसयंता सत्यारमेव कसं वयंति। आसक्त बन जिनोक्त समाधिभाव को प्राप्त नहीं होते हैं और जो
उन्हें हितशिक्षा देते हैं वे उन्हें कर्कश वचन कहते हैं। सीलमता उवासंता संस्थाए रीयमाणा, "असोला" अणुवया कुछ कुशील शिष्य उपशान्त एवं विवेकी श्रमणों को "शीलमाणस जितिया मक्स्स बालया।
भ्रष्ट" कहते हैं--यह उन गासत्यादिक मन्दजनों की दुगुनी मूर्खता है।