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________________ ७८] चरगानुयोग विनय के भेद-प्रमेव सूत्र ११२ www Marwww प.-से कि तं षइ विणए ? प्र०-बचन विनय क्या है ? उ.-बइ विणए दुविहे पण्णते, तं जहा उ०---वचन विनय दो प्रकार का कहा गया है• सस्थराइगिम, रामपविण। १. प्रशस्त धचन विनय, २. अप्रशस्त बचन विनय, प०-से कि तं अपसत्य व विणए? प्र-अप्रशस्त वचन विनय गया है ? उ.-अपसत्य षद विणए जे प मणे । ३०-जो वचन १. सावज्जे, १. सावद्य-पाप या गहित कर्मयुक्त, २. सकिरिए, २. सक्रिय-प्राणातिपात आदि आरम्भ क्रिया सहित, ३. कक्फसे, ३. कर्कश, ४. कटुए, ४, कटुक-अपने लिए वघा औरों के लिए अनिष्ट, ५. पिट्ठारे, ५. निष्ठुर कठोर-मृदुता रहित, ६. फासे, ६. परुष-स्नेहरहित-शुष्क, ७. अण्हयकरे, ७. आसवकारी-अशुभ कर्मग्राही, ८. छपकरे, ८. छेदकर किसी के हाथ, पैर आदि अंग काट डालने का दुर्वचन बोलने वाला, ६. श्रेयकरे, ९. भेदकर-नासिका आदि अंग काट डालने का बुरा वचन बोलने वाला, १०. परितावगकरे, १०. परितापनकर प्राणियों को सन्ताप परिताप करने के बचन बोलने वाला, ११. उद्दवणकरे, ११. उपद्रवणकर-मारणान्तिक कष्ट देने अथवा धन सम्पत्ति हर लेने का बुरा वचन बोलने वाला, १२. भूओवधाहए, सहपगारं वई णो पहारेज्जा । १२. भूतोपघातिक-जीवों का घात करने का दुर्वचन बोलने वाला होता है। से तं अपसत्य बद विणए। यह अप्रशस्त वचनविनय है।। प०---से कि तं पसत्य बद विषए ? प्रा–प्रशस्त बचन विनय किसे कहते हैं ? उ०—पसत्य व विणए जै ये मगे। उ.-प्रशस्त वचन याने, १. असावले, २. अकिरिए, ३. अकक्कसे, ४. अकए. १. असावद्य, २. निष्क्रिय, ३. अककंश, ४. अकटुक-इष्ट५. अगिट्टरे, ६. अफरसे, ७. अणम्हयकरे, मधुर, ५. अनिष्ठुर-मधुर-कोमल, ६. अपरुष-स्निग्ध-स्नेहमय, ८, अछेयकरे, 8. अमेयकरे, १०. अपरितावणकरे, ७. अनावकारी, ६. अछेदकर, ६. अभेदकर, १०. अपरितापन११. अणुद्दयफरे, १२. अमूओवघाइए, तहप्पगारं वई कर, ११. अनुपद्रवणकर-दया, १२. अभूतोपचातिक---जीवों के धारज्जा। प्रति करुणाशील-सुखकर होता है। से तं पसत्य वा विषए। यह प्रशस्त वचन विनय है। से संवा विणए। यह वचन विनय है। ५०-से कि कायषिणए ? प्र०काय-विनय क्या है? -कायविणए दुविहे पग्मत्ते, तं जहा -- उल-काय-विनय दो प्रकार का बतलाया गया है१. पसत्यकापविणए, २. अपसत्यकाविणए । १. प्रशस्त काय-विनय, २. अप्रशस्त काय-विनय । १०-से कि तं अपसत्यकायविणए ? प्र.-अप्रसस्त काय-विनय क्या है ? ३०-अपसत्यकायविणए सत्तविहे पणते, तं जना 30-अप्रशस्त काय-विनय के सात भेद है, जो इस प्रकार हैं
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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