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पत्र ११२
बिनय के भेव-प्रभेद
कानाचार
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प.-से कितं चरित्तविणए?
प्र.- चारित्र-विनय क्या है? उम्-चरितविणए पंचविहे पण्णते, तं जहा
उ०-चारित्र-विनय पाच प्रकार का है१. सामाइयचरित्तविणए,
१. सामायिकचारित्र-विनय, २. छेदोवढाणियचरित्तविणए,
२. छेदोपस्थापनीरचारित्र-विनम, ३. परिहारविसुद्धचरितविणए,
३. परिहारविशुद्धचारित्र-विनय, ४. सुहमसंपरायचरित्तविषए,
४. सूक्ष्मसंपरायचारित्र-विनय, ५. अह्मवायचरित्तविणए,
५. यथाख्यातचारित्र-विनय । से चरिसविणए।
पह चारित्र-पिनय है। ५०-से कितं मणविणए?
प्र.-मनोविनय क्या है ? ३०-मपविगए दुबिहे पष्णते, तं जहा--
३०–मनोविनय दो प्रकार का कहा गया है१. पसरयमणविणए, २. अपसत्यमणविणए । १. प्रशस्त मनोविनय, २. अप्रशस्त मनोविनय । १०-से कि तं अपसत्थमणविगए?
प्र०-अप्रशस्त मनोविनय क्या है ? उ०-अपसरयमगविणए जे य मणे
उ -जो मन १. सावज्जे,
१. सावद्य-पाप या गहित कर्म युक्त, २. सकिरिए,
२. सक्रिय-प्राणातिपात आदि आरम्भ क्रिया सहित, ३. सकपकसे,
३. कर्कश,
४. कदुक-अपने लिए तथा औरों के लिए अनिष्ट, ५.पिट्ठरे,
५. निष्टुर-कठोर-मृदुतारहित, ६. फरुसे,
६. परुष-स्नेहरहित-सूखा, ८. अण्हयकरे,
७. आवयकारी-अशुभ कर्मग्राही, ८. छयकरे,
८. छेदकर-किसी के हाथ, पैर आदि अंग तोड़ डालने का
दुर्भाव रखने वाला, ६. भेयकरे,
१. भेदकर--नासिका आदि अंग काट डालने का बुरा भाव
रखने वाला, १०. परित्तावणकरे,
१०. परितापनकर-प्राणियों को सन्तप्त, परितप्त करने
के भाव रखने वाला, ११. उद्दवणकरे,
११. उपद्रवणकर-मारणान्तिक कष्ट देने अथवा धन
सम्पत्ति हर लेने का बुरा विचार रखने वाला, १२. भूओवधाहए, तहप्पगारं मणो गो पहारेज्जा, १२. भूतोपघातिक-जीवों को घात करने का दुर्भाव रखने से तं अपसत्यमणविणए ।
वाला होता है, वह अप्रशस्त मन है। 46-से कि तं पसत्यमणविणए।
प्र०-प्रशस्त मन किसे कहते हैं ? उ०-पसत्यमणविणए मे य मणे
उ.-प्रशस्त मन विनय अर्थात् १. असावज्जे, २. अकिरिए, ३. अकक्कसे, ४. अकटए, १. असायद्य, २. निष्क्रिय, ३, अकर्कश, ४, अकटुक-इष्ट५. अगिरे, ६. अफरसे, ७. अणहयकरे, मधुर, ५. अनिष्ठुर-मधुर-कोमल, ६. अपरुष-स्निग्ध-स्नेह#. अछेयकरे, ६. अभेयकरे, १०. अपरितोषणकरे, मव, ७. अनासकारी, ८. अछेदकर, ६. अभेदकर, १०. अपरि११. अणुशवणकरे, १२. अभूओवघाइए., तापनकर, ११. अनुपद्रवणकर-दया, १२, अभूतोपघातिकतहप्पगार मणं धारेज्जा सेसं पसत्यमणोविणएपणिए। जीवों के प्रति करुणाशील-सुखकर होता है।