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७] चरणानुयोग
2. सामभिवा
२. आसणप्पदाणे इ वा,
४. सक्कारे इ वा.
५. सम्माणे इ वा
६. फिर
७. अंजलि
अगवा,
२. ठिपक्स पज्जुवासणया,
१०. गच्छस्स डिससाणया ।
वा
६.
७. गणस्स
८. संघस्स,
इवा,
सेतं सुणाविणए ।
प० - से कि तं अणवासायमा जिए ?
२०- क्षणच्चासायाविषए पणयालीसविहे पण तं जहा
१. अरहंताणं अमच्यासाथणया,
२. अरहंतवण्णसहस धम्मस्स अणवासाय गया,
३. आयरियाणं अगत्रासांवणवा एवं
४. उसापा
५. बेरा
९. फिरिया,
१०. संभोग
विनय के दमेव
११. आभिणिबोहिणाणस्स,
१२.
१३. ओहिणरणस्स,
१४. मगपजवणाणस्स,
१५. लस्स
१६-३० एसि विमा
२१-४५. एएस
सेसं अणयाणा विणए ।
२. आसनाभिग्रह — गुरुजन जहाँ बैठना चाहें वहाँ आसन
रखना ।
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३. आसन- प्रदान — गुरुजनों को आसन देना ।
४. गुरुजनों का सत्कार करना,
५. सम्मान करना,
६. यथाविधि वंदन-प्रणाम करना,
७. कोई बात स्वीकार या अस्वीकार करते समय हाथ
फोडना,
आते हुए गुरुजनों के सामने जाना,
६. बैठे हुए गुरुजनों के समीप बैठना,
१०. उनकी सेवा करना, जाते हुए गुरुजनों को पहुँचाने
जाता |
यह गुषा- विनय है।
प्र० - अनत्याशातना विनय क्या है ?
उ०- अनत्याशातना - विनय के पैंतालीस भेद हैं। वे इस प्रकार हैं-
१.
तन- नाश करने वाले अवहेलनापूर्ण कार्य नहीं करना ।
२. अहं प्रप्त-तों द्वारा बतलाये गये धर्म की आशातना नहीं करना ।
३. आचार्यो की आशातना नहीं करना ।
आना नहीं करना आत्मगुणों का भ्राता
४. उपाध्यायों की आशावना नहीं करना ।
५. स्थविरों— ज्ञानवृद्ध, चारित्रवृद्ध, वयोवृद्ध श्रमणों की आशातना नहीं करना ।
६. कुल की आशातना नहीं करना ।
७. गण की आशातना नहीं करना ।
८. संघ की आशातना नहीं करना ।
C. क्रियावान् की आशातना नहीं करन । ।
१०. सांभोगिक - जिसके साथ वन्दन, नमन, भोजन आदि पारस्परिक व्यवहार हो, उस गच्छ के श्रमण या समान आचार बाले श्रमण की आशातना नहीं करना ।
११. मति - ज्ञान की आशातना नहीं करना । १२. श्रुत ज्ञान की आशातना नहीं करना । १३. अवधि ज्ञान की आशातना नहीं करना । १४. मनः पर्यव - ज्ञान की आशातना नहीं करना ।
१५. केवल ज्ञान की आशातना नहीं करना ।
इन पन्द्रह की भक्ति, उपासना, बहुमान के प्रति तीव्र भावामुराद्रभेद तथा इन (ग्रह) की यशस्विता, प्रमस्ति एवं गुणकीर्तन रूप और पन्द्रह भेद-यों अनत्याशातना - विनय के पैंतालीस होते हैं।