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________________ सूत्र १११-११२ विनम्र के ग्रेव-प्रभेद शानाचार [५ तस्स अधिगरणस्स खभावणाए विउसमणत्ताए सवा समियं को ग्रहण न करके मध्यस्थ भाव रखे और सम्यक व्यवहार का अम्मुट्टिता भवइ, पालन करते हुए उस कलह के क्षमापन और अपमान सदा ही अभ्युश्चत रहे। १०-कहं ण भंते ! साहम्मिया ? प्र०-भगवन् ! ऐसा क्यों करें? उ०-अल्पसद्दा, अप्पझंज्या, अप्पकलहा, अप्पकसाया, अप- 30- क्योंकि ऐसा करने से सार्मिक अनर्गल प्रलाप नहीं सुमंतुमा, संजमबहुला, संवरबहुला, समाहिबहला, करेंगे, झंझा (झंझट) नहीं होगी, कलह, कषाय और तू-तू-मैं-मैं अपमता, संजमेण तवसा अप्पाणं भावमाणा-एवं नहीं होगी तथा साधर्मिक जन संयम-बहुल, संघर-बहुल, समाधिच गं विहरेज्जा। बहुल और अप्रमत्त होकर संयम से और तप से अपने आत्मा की भाधना करते हुए विचरण करेंगे । सत भार-पच्चोमहगया। यह भारप्रत्यवरोहणताविनय है। एसा वस्तु थेरेहि भगवतेहिं अट्ठविहा गणि-संपया यग्णता। यह निश्चय से स्थविर भगवन्तों ने आठ प्रकार की गणि -दसा. द. ४, सु. २०-२५ सम्पदा कही है। विण्यस्स मेयप्पमेया बिनय के भेद-प्रभेद११२.५०--से कि तं विणए । ११२. प्र--विनय क्या है ? उ.-अमुट्ठाण अंजलिकरणं, तहेवासणदायणं । उ---अभ्युत्थान (खड़े होना), हाथ जोड़ना, आसन देना, गुरमसिभाषसुस्ससा, विणओ एस वियाहिओ गुरुजनों की भक्ति करना और भावपूर्वक शुश्रुषा करना विनय –उत्त. अ. ३०, गा, ३२ कहलाता है। विणए सत्तविहे पणत्ते । तं जहा . विनय सात प्रकार का बतलाया गया है१. जागविणए, २. सणविगए, ३. परित्तविणए, १. ज्ञान-विनय, २. दर्शन-विनय, ३. चारित्र-विनय, ४. मणविणए, ४. वइविणए, ६. कायविणए ४. मनोविजय, ५. ववन-विनय, ६. काय-विनय, ७. लोकोपचार७. लोगोषयारविणए। विनय । ५०–से कितं णाणविणए? प्र०-शान-विनय क्या है ? उ.-णाणविगए पंचबिहे पाणते, तं जहा 30-ज्ञान-विनय के पाँच भेद बतलाये गये हैं१. आभिणियोहियणाणविणए, २. सुयणाणविणए, १.आभिनिवोधिक ज्ञान -मतिज्ञान-विनय, २. श्रुतज्ञान३. ओहिणाणविणए, ४. मणपज्जवणागविषए विनय, ३. अवधिज्ञान-विनय, ४. मनःपवज्ञान विनय, ५. केवल५. केवलणाणविणए। ज्ञान-विनय । -इन जानों को यथार्थता स्वीकार करते हुए इनके लिए विनीतभाद से यथाशक्ति पुरुषार्थ या प्रयत्न करना । प०-से कि तं सपविणए? प्र०-दर्शन-विनय क्या है ? उ०-दसणविणए दुबिहे पण्णते । तं जहा-- उ०-दर्शन-विनय दो प्रकार का बतलाया गया है१. सुस्सुसणाविणए, २. अणञ्चासायणाविणए। १. शुश्रूषा-विनय, २. अनत्याशातना-विनय । 4.-से कि तं सुस्सुसणाविणए? प्र-शुश्रूषा-विनय क्या है ? उ-मुस्तूसाषिणए अगेगविहे पण्गत्ते । तं जहा उ.-शुश्रुषा-विनय अनेक प्रकार का बतलाया गया है, जो इस प्रकार है१. भवभुटाणे हवा। १. अभ्युत्थान --गुरुजनों या गुणी जनों के आने पर उन्हें आदर देने हेतु खड़े होना । r aditionation
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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