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घरगानुयोग
शिष्य की विनय-प्रतिपत्ति
सूत्र १११
३. परितं जागित्ता परचुद्धरित्ता भवह,
४. अहायिहि संविभइता भवइ । से तं उवगरण-उप्यायणया?
१०-से कि तं साहिल्लया। .. उ०-साहिल्लया बस्विहा पक्ष्णता । ते जहा
१. अणुलोम-बह-सहिते यावि भवइ,
२. अणुलोम-काम-किरियत्ता यावि भवइ,
३. पउिहब-काय-संफासणया मावि मबह,
४. सम्वरयेसु अपडिलोमया यावि भवाइ ।
३. जो उपकरण परीत (अल्प) हों उनका प्रत्युद्धार करतः अर्थात् अपने गण के या अन्य गण से आये हुए साधु के पास यदि अल्प उपकरण हों, या न हों तो उसकी पूर्ति करना ।
४. शिष्यों के लिए यथायोग्य विभाग करके देना। यह उपकरणोत्पादनता है। प्रा-भगवन् ! सहायताविनय क्या है ? उ०-सहायताविनय चार प्रकार का कहा गया है । जैसे .
१. अनुलोम (अनुकूल) वचन-सहित होना । अर्थात् जो गुरु कहें उसे विनयपूर्वक स्वीकार करना।
२, अनुलोम काय की क्रिया वाला होना। अर्थात्-जैसा गुरु कहें वैसी काय की क्रिया करना।
३. प्रतिरूप कायसंस्पर्शनता--गुरु की यथोचित सेवासुथूया करना।
४. सर्वार्थ-अप्रतिलोमता-सर्वकार्यों में कुटिलता-रहित व्यवहार करना।
यह सहायता विनय है। प्र. भगवन् ! वर्णसंज्वलनताविनय क्या है ?
उ.--वर्णसंज्वलनताविनय चार प्रकार का कहा गया है। जैसे
१. यथातथ्य गुणों का वर्णवादी (प्रशंसा करने वाला) होना ।
२. अवर्णवादी (अयथार्थ दोषों के कहने बाले) को निरुत्तर करने वाला होना।
३. वर्णवादी के गुणों का अनुवृहण (संवर्धन) करना । ४. स्वयं वृद्धों की सेवा करना । यह वर्गसंज्वलनताविनय है। प्र.-भगवन् ! भारप्रत्यारोहणताविनय क्या है? उ.-भारप्रत्यारोहणताविनय चार प्रकार का कहा गया
से तं साहिल्लया। 4०-से कितं वरण-संजलणया? ज०-वषण-संजलणया चम्यिहा पण्णसा । जहा
१. अहातच्चाणं वष्ण-बाई भवइ, २. अवण्णवाहं पहिणित्ता भवइ,
३. वण्णवाई अणुकूहिसा मवड, ४. माय बुद्धसेवी यावि भवइ । से ते अण्ण-संजलणया । १०-से हित भार पच्चोहणया ? उ-मार-पच्चोहणया घडविहा पण्णता । तं जहा
१. असंगहिय-परिजण-संगहिता भवइ,
१. असंगृहित-परिजन-संग्रहीता होना (निराश्रित शिष्यों का
संग्रह करना)। २. सेहं मायार गोयर-संगहिता भवन,
२. नबीन दीक्षित शिष्यों को आचार और गोचरी की विधि
सिखाना। ३. साहम्मियस्स गिलायमाणस अहायानं यावरचे ३. सार्मिक रोगी साधुओं की यथाशक्ति द्यावृत्य के लिए अबुद्धिप्ता मया
__ अभ्युद्यत रहना। ४. साहम्मियाणं अहिगरफसि उप्पणसि सत्य अगिस्सितो- ४. सार्मिकों में परस्पर अधिकरण (कलह-क्लेश) उत्पन्न 'वस्सिए अपक्खागहिप-मन्नत्य-भावभूए सम्म ववहरमाणे हो जाने पर रागद्वेष का परित्याग करते हुए, किसी पक्ष-विशेष