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________________ ७४] घरगानुयोग शिष्य की विनय-प्रतिपत्ति सूत्र १११ ३. परितं जागित्ता परचुद्धरित्ता भवह, ४. अहायिहि संविभइता भवइ । से तं उवगरण-उप्यायणया? १०-से कि तं साहिल्लया। .. उ०-साहिल्लया बस्विहा पक्ष्णता । ते जहा १. अणुलोम-बह-सहिते यावि भवइ, २. अणुलोम-काम-किरियत्ता यावि भवइ, ३. पउिहब-काय-संफासणया मावि मबह, ४. सम्वरयेसु अपडिलोमया यावि भवाइ । ३. जो उपकरण परीत (अल्प) हों उनका प्रत्युद्धार करतः अर्थात् अपने गण के या अन्य गण से आये हुए साधु के पास यदि अल्प उपकरण हों, या न हों तो उसकी पूर्ति करना । ४. शिष्यों के लिए यथायोग्य विभाग करके देना। यह उपकरणोत्पादनता है। प्रा-भगवन् ! सहायताविनय क्या है ? उ०-सहायताविनय चार प्रकार का कहा गया है । जैसे . १. अनुलोम (अनुकूल) वचन-सहित होना । अर्थात् जो गुरु कहें उसे विनयपूर्वक स्वीकार करना। २, अनुलोम काय की क्रिया वाला होना। अर्थात्-जैसा गुरु कहें वैसी काय की क्रिया करना। ३. प्रतिरूप कायसंस्पर्शनता--गुरु की यथोचित सेवासुथूया करना। ४. सर्वार्थ-अप्रतिलोमता-सर्वकार्यों में कुटिलता-रहित व्यवहार करना। यह सहायता विनय है। प्र. भगवन् ! वर्णसंज्वलनताविनय क्या है ? उ.--वर्णसंज्वलनताविनय चार प्रकार का कहा गया है। जैसे १. यथातथ्य गुणों का वर्णवादी (प्रशंसा करने वाला) होना । २. अवर्णवादी (अयथार्थ दोषों के कहने बाले) को निरुत्तर करने वाला होना। ३. वर्णवादी के गुणों का अनुवृहण (संवर्धन) करना । ४. स्वयं वृद्धों की सेवा करना । यह वर्गसंज्वलनताविनय है। प्र.-भगवन् ! भारप्रत्यारोहणताविनय क्या है? उ.-भारप्रत्यारोहणताविनय चार प्रकार का कहा गया से तं साहिल्लया। 4०-से कितं वरण-संजलणया? ज०-वषण-संजलणया चम्यिहा पण्णसा । जहा १. अहातच्चाणं वष्ण-बाई भवइ, २. अवण्णवाहं पहिणित्ता भवइ, ३. वण्णवाई अणुकूहिसा मवड, ४. माय बुद्धसेवी यावि भवइ । से ते अण्ण-संजलणया । १०-से हित भार पच्चोहणया ? उ-मार-पच्चोहणया घडविहा पण्णता । तं जहा १. असंगहिय-परिजण-संगहिता भवइ, १. असंगृहित-परिजन-संग्रहीता होना (निराश्रित शिष्यों का संग्रह करना)। २. सेहं मायार गोयर-संगहिता भवन, २. नबीन दीक्षित शिष्यों को आचार और गोचरी की विधि सिखाना। ३. साहम्मियस्स गिलायमाणस अहायानं यावरचे ३. सार्मिक रोगी साधुओं की यथाशक्ति द्यावृत्य के लिए अबुद्धिप्ता मया __ अभ्युद्यत रहना। ४. साहम्मियाणं अहिगरफसि उप्पणसि सत्य अगिस्सितो- ४. सार्मिकों में परस्पर अधिकरण (कलह-क्लेश) उत्पन्न 'वस्सिए अपक्खागहिप-मन्नत्य-भावभूए सम्म ववहरमाणे हो जाने पर रागद्वेष का परित्याग करते हुए, किसी पक्ष-विशेष
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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