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________________ सूत्र ११०-१११ शिष्य को विनय-प्रतिपत्ति ज्ञानाचार ७३ १०-से कितं षिक्वेवणा-विणए ? प्र.-भगवन् । विक्षेपणाविनय क्या है? उ-विक्खेवणा-विणए चउबिहे पाण। जहा T-विक्षेपणाविनय चार प्रकार का कहा गया है। जैसे१. अविट्ठ-धम्म विट्ठ-पुत्वगत्ताए विणयइसा भवइ, १. अदष्टधर्मा को अर्थात् जिस शिष्य ने सम्यक्त्वरूपधर्म को नहीं जाना है, उसे उससे अवगत कराके सम्यक्त्वी बनाना । २. विपुश्वगं साहम्मियताए विणयइत्ता भइ, २. दृष्टधर्मा यिष्य को सामिकता-विनीत (विनयसंयुक्त) करना । ३. चुय-धम्माओ धम्मे ठावहत्ता भवद, ३. धर्म से पयत होने वाले शिष्य को धर्म में स्थापित करना। ४. तस्सेब धम्मस्स हियाए, सुहाए, खमाए, निस्सेसाए, अणु- ४. उसी शिष्य के धर्म के हित के लिए, सुख के लिए, गामियत्साए अग्मुटुता भवाइ। सामथ्र्य के लिए, मोक्ष के लिए और अनुगामिकता अर्थात् भवा स्तर में भी धर्मादि की प्राप्ति के लिए अभ्युद्यत रहना। से तं विक्खवणा-विणए । यह विक्षेपणाविमय है। ५०-से कि तं वोस-निग्धावणा-विषए? प्र०-भगवन् ! दोषनिर्घातविनय क्या है ? उ.-बोस-निग्घायणा-विणए चविहे पण्णसे । तं जहा- उ०-दोषनिर्यातनाविनय चार प्रकार का कहा गया है। जैसे-- १. कुवस्स कोहं विगएता भवइ, १. ऋद्ध व्यक्ति के क्रोध को दूर करता। २. बुद्धस्स दोस णिगिहिता भवइ, २. दुष्ट व्यक्ति के दोष को दूर करना । ३. कंखियस्स कख छिदित्ता मवइ, ३. आकांक्षा वाले व्यक्ति की आकांक्षा का निवारण करता। ४. आय-सुपणिहिए यावि भवा, ४. आत्मा को सुप्रणिहित रखना अर्थात् शिष्यों को सुमार्ग पर लगाये रखना। से तं दोस-निग्घायणा-विणए। -दसा. द. ४, सु. १५-१६ यह बोषनितिनाविनय है। अंतेवासिस्स विणय पडिवत्ती शिष्य की विनय-प्रतिपत्ति-- १११. तस्स णं एवं गुणजाइयस्स अंतेवासिस्स इमा उम्बिहा विषय- १११. इस प्रकार के गुणवान अन्तेवासी शिष्य की यह चार पडियत्ती भवइ । तं महा प्रकार की विनय प्रतिपत्ति होती है । जैसे - १. उवगरण-उपायगया, १. उपकरणोत्पादनता-संयम के साधक वस्त्र-पात्रादि का प्राप्त करना। २. साहिलया, २. सहायता-अणक्त साधुओं की सहायता करना। ३. वरण-संजलणया, ३. वर्णसंज्वलनता-गण और गणी के गुण प्रकट करना। ४. भार पच्चोहगया। ४. मानत्यवरोहणतागण के भार का निर्वाह करना । १०-से कि तं जवगरण-उप्पायणश? प.--भगवन् ! उपकरणोत्पादनता क्या है ? १०--उबगरण-उत्पायणया चविहा पण्णता, सं जहा- 3०-उपकरणोत्पादनता चार प्रकार की कही गई है। असे१. अणुप्पण्णाणं उवगरणा उप्पाइता भवइ, १. अनुत्पन्न उपकरण उत्सादनता-नवीन उपकरणों को प्राप्त करना। २. पोराणाणं उवगरणा सारविवत्ता संगोविता भवह, २. पुरातन उपकरणों का संरक्षण और संगोपन करना।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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