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चरणानुयोग
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विइओ विणय णाणायारो
विषयावर पाउअरण-पणा
१०६. संजोगा विक्रस अथगारस्सो विजयंपाकरिस्में, अणाणुपत्रि सुणं
विषय पओगो
१०७. रायगिएन विनयं पढने
guitar * सययं न हायएज्जा ।
विनयाचार कहने की प्रतिमा
॥
-उस. अ. १. गा. १
द्वितीय विनय ज्ञानाचार
दिनवाचार कहने की प्रतिज्ञा
१०६. संयोग से विप्रमुक्त-रहित अणगार भिक्षु के विनय को मैं प्रगट का, हे शिष्य ! तू मुझसे अनुक्रम से मुन
विनय प्रयोग-
१०७. रानिकों के प्रति विनय का प्रयोग करे, वशीलता की कभी हानि न करे,
१ संजो प्रकार के ई- १.
संयोग, २. आभ्यंतर संयोग ।
( क ) माता-पिता आदि स्वजनों का तथा पदार्थों का संयोग बाह्य संयोग है ।
(ग) पोध आदि कषायों का संयोग आभ्यंतर संयोग है।
सूत्र १०६-१०७
अनगार और भिक्षु का प्रयोग विशेष अर्थ का चोतक है। अन्य दावा कुछ साधक अनगार होते हैं किन्तु भिक्षु नहीं होते हैं और कुछ भिक्षु होते हैं किन्तु अनगार नहीं होते हैं, अतः जो अनगार हो और भिक्षु हो उसका विनय यहाँ कहा जाएगा। यह विनय शब्द साजन-सेवित आचार अर्थात् अनुशासन, नम्रता और आचार के अर्थ में प्रयुक्त है ।
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३ लोकोपचार विनय, अर्थनिमित्त विनय कामहेतु विनय, भय विनय, मोक्ष विनय इन पांच प्रकार के विनय में से यहाँ मोक्ष विनय का अधिकार है ।
४ (क) पूर्व दीक्षित, आचार्य, उपाध्याय, सद्भाव के उपदेशक अथवा ज्ञानादि भाव रत्नों से अधिक समृद्ध हों, वे रालिक कहलाते हैं ।
(ग) स्थान अ. ४
२ ३२० में दुध संघ के लिए "ए" का प्रयोग हुआ है।
(भ). १ . १४ .
(ग) मुलाचार अधि. ५, गाथा १८७ में केवल साधुओं के लिए "रदिजिए और कणरादिणिए" का प्रयोग हुआ है । येष्ठ के लिए "रातिषिय" और वह दीव के लिए "समय" शब्द मिलता है। इस प्रकार दीक्षापयय की अपेक्षा से लोग प्रकार के होते हैं - १. रानिक पूर्व दीक्षित २ सहदीक्षित के उतरादित
(ङ) मूलाधार में "रादिभिय" का संस्कृत रूप "शनि" और "उमरादिशिय" का संस्कृत रूप "नरानिक दिया है।
५. टीकाकार सीता का अर्थ अष्टादश बहल लांग किया है
जे जो करंति मनसा पिविजय आहार-सत्रा सोइंदिए । पुढवीकायारंभे, खंतिजुत्ते ते मुगी बंदे ॥
यह एक गाथा है, इसी एक गाथा से १८००० गाथाएँ बनती हैं। गाथाओं का रचनाक्रम इस प्रकार है
"
प्रथम दस गाथाओं में दस धर्मों के नाम क्रमशः आयेंगे। पुनः "पुढवी" के साथ दस धर्मो की दस गाथाएँ होंगी इसी प्रकार "आउ, तेज, वाच, वणस्सइ, बेइंदिय, तेइंदिय, चरिदिय पंचिदिय और अजीव" इन सबके साथ दस धर्मों का कथन करने पर १० १० १०० गाथाएँ बनेगी, हम १०० गावाओं में "सोदिय" का प्रयोग हुआ, इसी प्रकार "विदिय पाणिदिय रपिदिय और फासिदिय के संयोग से १००x२= १०० साधाएं हो गई इस १०० गावाओं में "आहारसचा" का प्रयोग हुआ । इसी प्रकार "भयसना मेहुणसन्ना और परिग्गहसन्ना" के प्रयोग से ५०० x ४ = २००० गाथाएँ हुई। इन गाथाओं में "मणसा" का प्रयोग हुआ, इसी प्रकार "वयसा और कायसा" का प्रयोग करने पर २००० x ३६००० गाथाएँ हुई। इन ६००० करद" का प्रयोग करें, इसी प्रकार "कारत भर समगुजागंति" के प्रयोग से ६०००३१२००० गाथाएं बनती है।
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